सपा के साथ ‘खेला’ हो गया, जानिए विस्‍तार से, पढ़िए पूरी खबर

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RGA न्यूज़

अलीगढ़ में अधिकारियों से नोकझोंक करते सपा नेता।

पिछले दाे चुनावों से लगातार अध्यक्ष पद पर बसपा का कब्जा रहा है। इस बार हैट्रिक लगाने का मौका था। इस बार चुनाव लड़ने से पहले ही पार्टी ने मैदान छोड़ दिया। 2010 में बसपा प्रत्याशी सुधीर चौधरी ने जीत हासिल की।

अलीगढ़, जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर कौन बैठेगा इसकी तस्वीर उसी दिन साफ हो गई थी जब जिम कार्बेट नेशनल पार्क की तस्वीरें वायरल हुईं थीं। जिसमें जीते हुए सदस्य भाजपा नेताओं के साथ सैर सपाटा करते हुए नजर आए थे। पार्टी ने दावा भी किया 40 सदस्य हमारे पास हैं। सपा ने फिर भी मैदान नहीं छोड़ा। अर्चना यादव को प्रत्याशी उतारकर भाजपा को संदेश दिया कि हम किसी से कम नहीं। पार्टी ने ये दम अपने नौ और रालोद के आठ सदस्यों के भरोसे पर भरा था। कुछ निर्दलीयों पर भी आस थी। लेकन पार्टी के साथ ‘खेला’ हो गया। सपा प्रत्याशी को आठ ही वोट मिले। यानि अपने ही सदस्यों ने वोट नहीं दिए। आठ मतों में सपा और रालोद के कितने-कितने हैं ये भी शोध का विषय हो सकता है। इसकी तह में जाना चाहिए, ताकि ऐसे कर्मठ सदस्यों के बारे में अन्य भी जान सकें।

बसपा ने छोड़ दिया मैदान

पिछले दाे चुनावों से लगातार अध्यक्ष पद पर बसपा का कब्जा रहा है। इस बार हैट्रिक लगाने का मौका था। इस बार चुनाव लड़ने से पहले ही पार्टी ने मैदान छोड़ दिया। 2010 में बसपा प्रत्याशी सुधीर चौधरी ने जीत हासिल की। 2015 में बसपा के उपेंद्र सिंह नीटू ने जीत हासिल की थी। नीटू तब जीत दर्ज की जब सपा की सरकार थी। जबकि जिला पंचायत के चुनाव को सत्ता का चुनाव कहा जाता है। लेकिन इस चुनाव में बसपा ने प्रत्याशी उतारने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। पार्टी के लिए यह हैट्रिक लगाने का भी मौका था। बसपा ने चुनाव लड़ने के बारे में शायद सोचा हो। वैसे भी पार्टी के लिए ये सफर आसान नहीं था। क्योंकि पिछले चुनाव में पूर्व मंत्री ठा. जयवीर सिंह बसपा में थे। उन्होंने ही चुनाव की कमान संभाली थी। अब वो भाजपा में है। प्रत्याशी की जीत में अहम भूमिका भी निभाई।

हर चुनाव की तरह कांग्रेस

चुनाव कोई भी हो कांग्रेस की हालत पतली ही होती है। जिला पंचायत चुनाव में भी कांग्रेस का बुरा हस्र हुआ। पार्टी का जिले में एक भी प्रत्याशी नहीं जीत पाया। एक सदस्य को पार्टी ने जरूर अपना होने का दावा किया था। इस चुनाव में कांग्रेस ने किसी तरह मुकाबला किया। इसका अंदाज इससे ही लगाया जा सकता है कि सभी 47 सीटों पर पार्टी अपने प्रत्याशी ही नहीं उतार पाई। जो प्रत्याशी चुनाव लड़े उन्होंने अपने बूते ही दम दिखाया। वरिष्ठ नेताओं का उन्हें कितना सहारा मिले ये तो वो ही जाने हैं, वैसे नेताओं की जमात प्रत्याशियों के साथ दिखाई नहीं दी। जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में कांग्रेस पूरी तरह से अलग थी। जिस समय अध्यक्ष पद के लिए भाजपा और सपा जोड़तोड़ में जुटी थी, कांग्रेस में जिलाध्यक्ष व महानगर अध्यक्ष को लेकर घमासान मचा था, जो नतीजों से ठीक पहले हटा दिए गए।

राजनीति का इसे स्वर्णिम काल 

भाजपा के लिए राजनीति का इसे स्वर्णिम काल ही कहा जा सकता है। महापौर को छोड़कर ऐसा कोई पद नहीं जिस पर भाजपा का कब्जा न हो। सांसद, सात विधायक, एमएलसी के बाद अब जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर भी भाजपा का कब्जा हो गया है। इस जीत के साथ भाजपाई जश्न में डूबे हुए हैं। ऐसा होना भी चाहिए। इस जीत के बाद अब पार्टी की ब्लाक प्रमुख चुनाव पर टिकी हुई हैं। माहौल को देखते हुए तो यही लग रहा है कि इस चुनाव में भी भाजपा विपक्ष पर भारी पड़ सकती है। पार्टी ने इसकी तैयारी भी शुरू कर दी है। लेकिन पार्टी के लिए असली परीक्षा 2022 का विधानसभा चुनाव होगा। इस चुनाव में सभी सीटों को बचा पाना पार्टी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। विपक्ष के पास महंगाई, किसान अंदोलन से लेकर भाजपाइयों को घेरने के लिए कई मुद्दे भी हैं।

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