टोक्यो में जलवा बिखेरेंगे जालंधर के 4 धुरंधर, हाकी कप्तान मनप्रीत समेत ये खिलाड़ी हैं भारतीय टीम का हिस्सा

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RGA news

 रहने वाले मनप्रीत मनदीप व वरुण और खुसरोपुर के हार्दिक को जालंधरियों ने गुडलक कहा है। मनप्रीत टीम के कप्तान भी हैं और भारत के ध्वजवाहक भी

ओलिंपिक-2020 में इस बार हाकी में जालंधर के चार खिलाड़ी हैं।

 जालंधर। खेलों का महाकुंभ कहलाया जाने वाला ओलिंपिक आज से टोक्यो में शुरू हो रहा है। इस बार सबसे ज्यादा उम्मीदें भी हाकी से हैं। भारत के पहले मैच की शुरुआत भी हाकी से ही हो रही है। 24 जुलाई को हाकी का यह मैच न्यूजीलैंड बनाम भारत में शाम साढ़े छह बजे शुरू होगा। कोरोना के कारण एक साल लेट हो रहे ओलिंपिक-2020 में इस बार हाकी में जालंधर के चार खिलाड़ी हैं। मिट्ठापुर के रहने वाले मनप्रीत, मनदीप व वरुण और खुसरोपुर के हार्दिक को जालंधरियों ने गुडलक कहा है। मनप्रीत टीम के कप्तान भी हैं और भारत के ध्वजवाहक भी। उसी कारण उनसे व टीम से पूरे देश को काफी उम्मीदें हैं।

अब तक के उनके प्रदर्शन ने उम्मीद जताई है कि टीम चार दशक बाद मेडल जरूर लेकर आएगी। इसी उम्मीद के साथ शहर के ओलंपियिंस, यूथ, प्रशासनिक अधिकारी व चारों खिलाडिय़ों के परिजनों व उनके गांव के लोगों ने दैनिक जागरण के जरिए सभी के लिए गुडलक भेजा है। सभी ने उम्मीद जताई कि इन खिलाडिय़ों का ओलंपिक में प्रदर्शन सबसे बेेहतर होगा और वे नए रिकार्ड कायम करेंग

मनप्रीत अपनी मां मनजीत कौर के साथ।

'बचपन की उसी जिद को दोहराना है, इस बार दीवार नहीं फांदनी, मैदान फतेह करना है'

मनप्रीत की मां मनजीत कौर ने कहा कि हरेक खिलाड़ी के लिए ओलिंपिक ही अंतिम लक्ष्य होता है, जोकि उनके बेटे ने कड़ी मेहनत व लगन से प्राप्त कर लिया है, वह भी तब जब परिवार मनप्रीत के हाकी खेलने के पक्ष में नहीं था। बचपन में मनप्रीत अपने भाईयों को खेलते हुए देखने के लिए मिट्ठापुर के खेल मैदान में पहुंच जाता था। वे नहीं चाहते थे कि सात-आठ वर्ष की आयु में मनप्रीत हाकी स्टिक हाथ में पकड़े। चिंता रहती थी कहीं चोट न लग जाए इसलिए कमरे में भी बंद कर देते थे। पर वह काफी जिद्दी था और घर की दीवार फांद मैदान में पहुंच जाता था। आज उसे अपनी उसी जिद को दोहराना है। इस बार दीवार नहीं फांदनी बल्कि मैदान फतेह करते ही घर लौटना है। उन्होंने कहा कि मनप्रीत ने हाकी स्टिक पकडऩे के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे चाहती हैं कि बिना मेडल लाए वह न लौटे।

मनदीप सिंह मां दविंदरजीत कौर के साथ।

'इस बार गले में हार नहीं, मेडल पहने देखना चाहती हूं'

मनदीप सिंह के पिता रविंदर सिंह के ताया कैप्टन ओंकार सिंह, हरबख्श सिंह व चाचा मनजीत सिंह हाकी के बेहतर खिलाड़ी रहे है। बड़े भाई हमिंदर सिंह भी हाकी खेलते थे। मां दविंदरजीत कौर ने बताया कि आठ साल की आयु में मनदीप बिना किसी को बताए चला गया। कई जगह ढूंढा लेकिन नहीं मिला। बाद में पता चला कि वह स्टेडियम में हाकी खेल रहा है। हाकी के प्रति इतना जुनून था कि गर्मी-सर्दी कोई मायने नहीं रखती थी। स्कूल में छुट्टी होने के बाद तपती धूप में हाकी खेलने चला जाता था। आज उसके उसी जुनून की अंतिम परीक्षा है। कहा कि हर बार टूर्नामेंट जीतने पर वह उसका हार पहनाकर स्वागत करती थी लेकिन इस बार हार नहीं ओलिंपिक मेडल पहनाना चाहती हूं। पूरी टीम को मेरी ओर से बधाई। पिता रविंदर सिंह ने कहा कि टीम ने बहुत मेहनत की है। मनदीप बाप-दादाओं का नाम जरूर रोशन करे

हार्दिक मां कमलजीत कौर के साथ

'दादा का सपना व 41 साल का इंतजार पूरा करके लौटना है'

हार्दिक के पिता एसपी वरिंदर प्रीत सिंह राय ने बताया कि चार वर्ष की आयु में दादा प्रीतम सिंह राय ने हार्दिक को हाकी थमाई थी। आज पिता प्रीतम सिंह तो दुनिया में नहीं है लेकिन वे जहां भी होंगे हार्दिक को ओलिंपिक के मैदान में देखकर सबसे खुश होंगे। ये उन्हीं का सपना था कि उनका पोता ओलिंपियन बने। हार्दिक कल उनका वह सपना पूरा करेगा। जापान में होने वाली ओलंपिक गेम्स में टीम बेहतर प्रदर्शन करेगी। जालंधर के साथ-साथ देशवासियों की शुभकामनाएं है। टीम के पास बढ़िया मौका है कि शानदार प्रदर्शन पर पदक पर मुहर लगाए। देश 41 साल से इस दिन का इंतजार कर रहा है। मां कमलजीत कौर ने बताया कि गर्मी में बच्चे को पापा (प्रीतम सिंह) स्टेडियम ले जाते थे, तब ममता जाग उठती थी और दुख होता था। पर अगर वे तब हार्दिक को न ले जाते तो आज हार्दिक टोक्यो में न होता।

 

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वरुण कुमार  पिता ब्रहमानंद व मां शंकुतला देवी के साथ।

'वरुण को भी मिलेगा मौका, बचपन की हर बात आ रही याद'

मिट्ठापुर के वरुण कुमार को अतिरिक्त खिलाड़ी के रूप में टीम में शामिल किया गया है। उनके पिता ब्रहमानंद व मां शंकुतला देवी ने बताया कि वरुण को ओलिंपिक में खेलने का मौका जरूर मिलेगा। दस वर्ष की आयु में वरुण गांव कुक्कड़ पिंड व धन्नोवाली में होने वाले हाकी टूर्नामेंट खेलने के लिए साइकिल पर अकेला ही पहुंच जाता था। जुनून इतना था कि रिश्तेदारों के घर में होने वाले समारोह में भी नहीं जाता था। खाना तक छोड़ देता था। इतने साल बाद जब बेटा ओलिंपिक खेलने जा रहा है तो बचपन की हर एक याद ताजा हो रही है। उसके पुराने मेडल व ट्राफी को बार-बार देख रहे हैं। चाहते हैं कि इन मेडलों में एक मेडल ओलिंपिक का भी हो।

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