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पुत्रवती महिलाओं ने कुस बैर व छ्यूल की टहानियां जमीन में गाड़ कर उस में कुंड बनाया। कुंड में पानी डालकर भुने अनाज को महुआ पत्ते के दोना व मिट्टी के कुल्हड़ में डालकर मुहूर्त के अनुसार विधि विधान से पूजन अर्चना की।
ललही या हल छठ का पर्व श्रद्धा से मनाया जा रहा है। महिलाएं पूजन-अर्चन कर रही हैं।
प्रयागराज, भाद्रपद कृष्णपक्ष की षष्ठी तिथि ललही/हल छठ का पर्व श्रद्धा से मनाया जा रहा है। इस अवसर पर महिलाओं ने शनिवार को निर्जला व्रत रखकर छठ मइया से पुत्र के कल्याण की कामना की। ज्योतिर्विद आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं कि षष्ठी तिथि शुक्रवार की शाम 6.37 बजे लग चुकी है और शनिवार रात 8.14 बजे तक रहेगी। पराशर ज्योतिष संस्थान के निदेशक आचार्य विद्याकांत पांडेय बताते हैं कि शनिवार को दिन भर षष्ठी तिथि का प्रभाव रहेगा। व्रती महिलाएं किसी भी समय पूजन कर सकती हैं।
मत्था टेक महिलाओं ने मन्नत मांगी
पुत्रवती महिलाओं ने कुस बैर व छ्यूल की टहानियां जमीन में गाड़ कर उस में कुंड बनाया। कुंड में पानी डालकर महुआ व अन्य कई प्रकार के भुने गए अनाज को महुआ पत्ते के दोना व मिट्टी के कुल्हड़ में डालकर मुहूर्त के अनुसार विधि विधान से पूजन अर्चना की। व्रती महिलाओं ने अपने पुत्र की दीर्घायु के लिए छठ महारानी से श्रद्धा भाव से कुंड के पास मत्था टेक कर मन्नत मांगी। व्रती महिलाओं ने महूआ के टहनियों का दातुन किया। व्रत रखने वाली महिलाएं बिना हल चलें धरती का अन्न को पकाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। इसमें पसई के चावल, भैंस का दूध दही, महुआ आदि रहे।
हलसे उगाए गए अनाज व सब्जियों का सेवन वर्जित
यह त्योहार श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। प्रचलित कथा के अनुसार आज के दिन बलराम जी का जन्म हुआ था। बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल है। इसलिए इस व्रत को हलछठ भी कहते हैं। इस व्रत में हल से उगाए गए अनाज व सब्जियों का सेवन नहीं किया जाता है। इसलिए महिलाएं इस दिन तालाब व नदी में उगे पसई का चावल खाकर व्रत रखती है। इस व्रत में गाय का दूध व दही का उपयोग नहीं किया जाता है।