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RGA न्यूज़
विश्वविद्यालय में 13 अगस्त को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी और इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के केंद्रीय सांस्कृतिक समिति व उर्दू विभाग के संयुक्त तत्वावधान में अखिल भारतीय मुशायरा एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसे विवाद उठने की वजह से रद किया गया था
केंद्रीय सांस्कृतिक समिति की वजह से विश्वविद्यालय प्रशासन की हुई थी काफी किरकिरी
प्रयागराज, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के सीनेट हाल में 13 अगस्त को निरस्त हुए मुशायरे में अब नया मोड़ आ गया है। कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव के निर्देश पर रजिस्ट्रार प्रोफेसर एनके शुक्ल ने नोटिफिकेशन जारी कर विवाद को जन्म देने वाली केंद्रीय सांस्कृतिक समिति को ही भंग कर दिया है। इसी समिति की वजह से विश्वविद्यालय प्रशासन की काफी किरकिरी हुई थी। सवाल यह उठ रहा है कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि शहर से बाहर होकर कुलपति को इस समिति के भंग किए जाने का निर्देश जारी करना पड़ा
13 अगस्त को मुशायरा कराने के लिए की गई थी तैयारी
विश्वविद्यालय में 13 अगस्त को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी और इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के केंद्रीय सांस्कृतिक समिति व उर्दू विभाग के संयुक्त तत्वावधान में अखिल भारतीय मुशायरा एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इसके लिए उर्दू विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर शबनम हामिद को अकादमी ने दो लाख रुपये दिए थे। विश्वविद्यालय के केंद्रीय सांस्कृतिक समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर संतोष भदौरिया ने समिति के सदस्यों के साथ बैठक कर सम्मेलन में आने वाले कवियों और शायरों की सूची तैयार की। फिर कुलपति से प्रस्ताव पर मंजूरी लेने के साथ कार्यक्रम की अध्यक्षता पर सहमति मांगी गई तो उन्होंने सहमति भी दे दी।
ऐन मौके पर रद किया गया था मुशायरा
मुख्य अतिथि के तौर पर कमिश्नर संजय गोयल ने भी आने की स्वीकृति दे दी। हालांकि, बाद में सम्मेलन में सीएए और प्रधानमंत्री के खिलाफ शाहीनबाग में आवाज बुलंद करने वाले उर्दू शायर हाशिम फिरोजाबादी तथा शबीना अदीब का नाम भी जोड़ लिया गया। यह मसला इंटरनेट मीडिया पर वायरल हुआ तो कमिश्नर सम्मेलन में शामिल होने से मुकर गए। फिर कुलपति ने भी आने से मना कर दिया तो सम्मेलन निरस्त कर दिया गया। इस बीच तकरीबन सभी कवि और शायर भी परिसर में पहुंच गए थे। अगले दिन कुलपति ने सम्मेलन से पल्ला झाड़ लिया था। इसी बीच 15 दिसंबर 2020 को गठित समिति ही तत्काल प्रभाव से भंग कर दी गई। हालांकि, इस संदर्भ में विश्वविद्यालय के प्रशासनिक अफसर कुछ भी बोलने से कतराते रहे।