कल्याणपुर विधानसभा सीट : चुनावी इतिहास के दो अध्याय.., यहां पढ़िए जीत का संघर्ष और हार की कहानी

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RGAन्यूज़

कानपुर की कल्याणपुर विधानसभा सीट का इतिहास खासा रोचक रहा है। यहां पर पांच बार लगातार विधायक रहीं प्रेमलता कटियार वर्ष 2007 में मात्र 674 वोटों जीती थीं और फिर 2012 में परिसीमन के बाद समाजवादी पार्टी के सतीश निगम से हार मिली थी।

कल्याणपुर विधानसभा सीट का चुनावी इतिहास ।

कानपुर,। कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्र के चुनावी इतिहास के दो अध्याय ऐसे हैं जो यहां के बनते-बिगड़ते समीकरणों के बीच यहां एकछत्र राज करने वाली राजनीतिक हस्ती को संघर्ष से मिली जीत, फिर हार की कगार पर पहुंचने की कहानी कहते हैं। पांच बार लगातार विधायक रहीं प्रेमलता कटियार से जुड़े इन अध्यायों पर राजीव सक्सेना की रिपोर्ट...।

परिसीमन में कल्याणपुर से दूर हुए पनकी वाले बाबा

पनकी हनुमान मंदिर कानपुर के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है। कभी यह मंदिर कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा रहा। यहां खड़े होने वाले प्रत्याशी मंदिर की चौखट तक श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच न सिर्फ अपना प्रचार अभियान लेकर पहुंचते बल्कि संकट मोचन के सामने सिर झुका राजनीति में सफलता का आशीर्वाद लेते थे। 2012 के परिसीमन में कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्र का भूगोल बदल गया। संकट मोचन नए बने गोविंदनगर विधानसभा क्षेत्र की पहचान बन गए। इसके साथ ही 2012 में कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्र में ऐसी बड़ी राजनीतिक घटना हुई, जिसने सबको चौंका दिया

बेटी ने संभाला विधानसभा क्षेत्र

प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री व लगातार पांच बार भाजपा से विधायक रहीं प्रेमलता कटियार राजनीतिक जीवन का पहला और अंतिम दोनों, चुनाव हार गई थीं। इससे पहले 2007 के विधानसभा चुनाव में उन्हें सबसे कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। वह बसपा के निर्मल तिवारी से मात्र 674 वोटों से जीती थीं लेकिन, यह उनकी अंतिम जीत बनकर रह गई थी। हालांकि, उनकी ही सीट से अब उनकी बेटी नीलिमा कटियार विधायक हैं और प्रदेश में उच्च शिक्षा राज्यमंत्री भी बनीं।

विधानसभा सीट का रोचक है इतिहास

कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्र से बड़ी राजनीतिक हस्ती बनने वालीं प्रेमलता कटियार के चुनावी सफर की शुरुआत हार के साथ हुई थी। 1989 के अपने पहले चुनाव में वह इस सीट पर जनता दल के भूधर नारायण मिश्रा से हार गईं लेकिन, इसके बाद वह एक के बाद एक पांच चुनाव लगातार जीतीं। 1991 से उनकी विजय यात्रा शुरू हुई और उसके बाद 1993, 1996, 2002 में वह अच्छे अंतर से चुनाव जीतीं। 1993 में तो वह 35,791 वोटों से जीती थीं। 1993, 1996 और 2002 में उनकी जीत लगातार कांग्रेस के प्रत्याशियों के सामने हुई मगर, 2007 में चुनावी समीकरण बदले और बसपा प्रत्याशी निर्मल तिवारी उनके सामने मुख्य संघर्ष में आ गए। मतगणना शुरू होने तक उन्हें मुख्य संघर्ष में नहीं माना जा रहा था लेकिन, जैसे-जैसे मतगणना के चक्र बढऩे शुरू हुए, भाजपा नेताओं के पसीने छूट

मतगणना के दौरान कई बार स्थिति आई थी कि निर्मल तिवारी पहले नंबर पर हो गए लेकिन, आखिरकार मतगणना खत्म होते-होते वह 674 वोटों से जीत गईं। इसके बाद 2012 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के सतीश निगम ने उन्हें 2,383 वोटों से पराजित कर दिया। 2017 में उन्होंने अपनी जगह बेटी नीलिमा कटियार को टिकट के लिए आगे बढ़ाया और पार्टी ने उन्हें टिकट दिया। इस चुनाव में जीत कर नीलिमा कटियार विधायक भी बनीं और उच्च शिक्षा राज्यमंत्री भी। एक तरह से इस सीट पर भाजपा ने पिछले आठ चुनाव में प्रेमलता कटियार या उनके परिवार को प्रत्याशी बनाया है। इसमें सात चुनाव में प्रेमलता कटियार को टिकट मिला। वहीं 2017 में नीलिमा कटियार को टिकट मिला

कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्र की खासियत

3,49,567 मतदाताओं वाली इस विधानसभा क्षेत्र में शैक्षिक व शोध संस्थाएं सबसे ज्यादा हैं। यहां आइआइटी, छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय, चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, एचबीटीयू, गणेश शंकर विद्यार्थी स्मारक मेडिकल कालेज, राजकीय होम्योपैथी मेडिकल कालेज, दलहन अनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय शर्करा संस्थान के अलावा आसपास के कई जिलों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने वाला लाला लाजपत राय अस्पताल भी है जो कोविड के दौरान भी सबसे बड़े अस्पताल के रूप में सामने आया था। इसके साथ ही इससे संबद्ध आधा दर्जन और अस्पताल भी यहीं हैं। कानपुर प्राणि उद्यान, पर्यटन के रूप में विकसित अटल घाट भी यहीं है। कल्याणपुर और रावतपुर स्टेशन भी इसी क्षेत्र में हैं।

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