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आसमान से आग उगल रही है। पारा 45 डिग्री के करीब है। जनजीवन ठंडे पानी के लिए परेशान हैं। सबसे बुरा हाल तो रोडवेज बस अड्डे और हाथरस सिटी स्टेशन का है। इन सर्वाजनिक स्थलों पर ठंडे पानी से गला तर करना है तो जेब ढीली करनी
अड्डा परिसर में वाटर कूलर भी है। मगर वह कभी चालू तो कभी बंद नजर आता है।
हाथरस आसमान से आग उगल रही है। पारा 45 डिग्री के करीब है। जनजीवन ठंडे पानी के लिए परेशान हैं। सबसे बुरा हाल तो रोडवेज बस अड्डे और हाथरस सिटी स्टेशन का है। इन सर्वाजनिक स्थलों पर ठंडे पानी से गला तर करना है तो जेब ढीली करनी ही होगी। ऐसा लगता है कि इन स्थानों पर पेयजल व्यवस्था की कमान पानी माफियाओं के हाथ में हो। अगर ऐसा नहीं तो फिर बस अड्डे दो सरकारी नल बंद क्यों हैं और नगर पालिका की प्याऊ का निर्माण दो साल में भी क्यों पूरा नहीं हो सका
यह हैं हालात
मंगलवार की दोपहर 12 बजे भयंकर गर्मी का आलम था। दोपहर में तमाम सवारियां बसों की तलाश में हाथरस बस अड्डे पर खड़ी थीं। गर्मी में मुसाफिरों को पानी की तलाश थी। बस अड्डे के दोनों गेटों पर सरकारी नल तो दिखाई दिए मगर दोनों के खुद के कंठ सूखे थे भला दूसरों की प्यास कैसे बुझाते। दोनों गेटों के बीच में अधूरी प्याऊ का ढांचा नजर आया। जानने पर पता चला कि दो साल पहले नगर पालिका ने प्याऊ का निर्माण शुरू कराया था जो दो साल बाद भी पूरा नहीं हो सका। दोनों बंद सरकारी हैडपंप को लेकर न तो रोडवेज अफसर न नगर पालिका प्रशासन गंभीर है। ऐसे में खोखों से 20 रुपये में पानी की बोतल मुसाफिरों की मजबूरी
बस अड्डा आगे,प्याऊ पीछे
किसी भी रोडवेज बस अड्डे पर पेयजल का इंतजाम बाहर के हिस्से में होता है। मगर यहां भवन के पिछले हिस्से में प्याऊ है जो बस का इंतजार करते लोगों को नजर ही नहीं आती। अड्डा परिसर में वाटर कूलर भी है। मगर वह कभी चालू तो कभी बंद नजर आता है। यही कारण है कि यहां मुसाफिरों को या तो 20 रुपये की बोतल खरीदनी पड़ती है या फिर पानी का पाउच जिसे बसों में वेंडर बेचते नजर आते हैं। रोडवेज की ओर से एक रुपये में पानी की बोतल में पानी मुहैया कराने की व्यवस्था कभी पहले शुरू की गई थी मगर पानी माफियाओं ने उसे भी नहीं चलने दिया। यहां आसपास लोग बताते हैं कि नगर पालिका की ओर से मोबाइल प्याऊ भी कुछ महीने पहले खड़ी होती थी जिसे पानी के मुनाफाखोरों से खड़ा ही नहीं होने
यहां दोनों प्याऊ पर बंदरों का वास
हाथरस सिटी स्टेशन के मुख्य गेट पर सरकारी हैंडंपप है मगर वह महीनों से बंद है। गेट के पास ही ढकेल पर 20 रुपये में पानी की बोतल से मुसाफिर पानी खरीदने को मजबूर हैं। अंदर प्लेटफार्म एक पर तीन प्याऊ हैं। एक प्याऊ गेट से दूर है और चालू भी है। मगर बाकी दो प्याऊ बंद हैं और यहां बंदरों का कब्जा है। इसलिए यहां मुसाफिर भी जाने से खौफ खाते हैं। अंदर पानी की स्टाल से ठंडी बोतल खरीदना मज
मुसाफिरों के बोल
बस अड्डा जैसी महत्वपूर्ण जगह जहां दिनभर हजारों यात्रियों का आवागमन रहता है वहां गर्मी में ठंडे पानी की व्यवस्था नहीं है। लगता है रोडवेज महकमे का पूरा सिस्टम ही कुंभकरणी नींद में है।
राजकुमार।
बस अड्डे पर दोनों हैंडपंप खराब हैं। बाहरी हिस्से में प्याऊ का निर्माण अधूरा है। जो प्याऊ चालू है वह अंदर के हिस्से में है जिसके बारे में पता नहीं चलता तब पानी की बोतल खरीदन
बस अड्डे पर यात्रियों को पानी जैसी सुविधा नहीं मिल रही है। जहां पानी है वहां मुसाफिर नहीं और जहां मुसाफिर हैं वहां पानी नहीं। पेयजल व्यवस्था समुचित होनी चाहिए।
अशोक कुमार।
स्टेशन पर गजब स्थिति है। गेट के एक तरफ सरकारी हैंडपंप बंद है और दूसरी ओर ढकेल पर पानी की बोतल बिक रही है। अंदर स्टेशन पर दो प्याऊ पर बंदर हमलावर मुद्रा में नजर आते हैं।