
RGA News संवाददाता
गोरखपुर व फूलपुर अखिलेश यादव व मायावती की हाल की दोस्ती का गवाह है तो 26 साल पहले इसी तरह का गवाह इटावा भी बना था। इटावा से पहली बार बसपा संस्थापक कांशीराम उपचुनाव में जीत कर संसद पहुंचे थे। इस जीत में मुलायम सिंह यादव ने उनकी खासी मदद की थी। यह उपचुनाव 1991 में हुआ था। सपा-बसपा की दोस्ती, फिर दुश्मनी और फिर दोस्ती में कई उतार चढ़ाव यूपी की जनता ने देखें हैं।
1993 में सपा-बसपा ने मिल कर लड़ा उपचुनाव
छह दिसंबर 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचा गिराये जाने के बाद केंद्र सरकार ने तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया। मंदिर मस्जिद मुद्दे की गर्माती सियासत में सपा-बसपा की दोस्ती परवान चढ़ने लगी और उस दौर में एक नारा 'मिले मुलायम कांशीराम,हवा में उड़ गये जय श्री राम' खूब चर्चित रहा। वर्ष 1993 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को रोकने के लिए सपा बसपा ने मिल कर चुनाव लड़ा। बसपा ने 164 प्रत्याशी उतारे थे तो सपा ने 256 प्रत्याशी। बसपा 67 सीटें जीते जबकि सपा 109 सीटें जीतने में कामयाब रही। भाजपा 177 सीटे ही ले पाई। इस तरह सपा बसपा ने मुलायम के नेतृत्व में सरकार बनाई। दोनों दलों के पिछड़, अति पिछड़ा व मुस्लिम वोटों ने हिंदुत्व की लहर को काटने का काम किया। पर सपा बसपा के रिश्ते जल्द बिगड़ने लगे। बसपा को अहसास हो गया कि सपा उनकी पार्टी में तोड़फोड़ में लगी है।
2 जून 1995 को हुआ गेस्ट हाउस कांड
वक्त के साथ दोनों दलों में दूरी बढ़ने लगी। इसका सरकार पर दिखने लगा। एक जून 1995 को लखनऊ का सियासी माहौल खासा गर्मा गया। साथ चले दो दल आमने सामने आ गये थे। उस वक्त बसपा ने सपा पर अपने कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न व अपहरण कराने का आरोप लगाते हुए सरकार से समर्थन वापस ले लिया। मायावती उन दिनों यूपी की प्रभारी व पार्टी उपाध्यक्ष थीं। वह मीराबाई मार्ग राजकीय गेस्टहाउस में ठहरी थीं। कहा जाता है कि उस वक्त सपा कार्यकर्ताओं ने वहां गेस्टहाउस पर हमला किया।
14 अप्रैल 1984 को बनी बसपा
कांशीराम ने 1984 में एक राजनीतिक दल के रूप में बहुजन समाज पार्टी का गठन किया। इससे पहले वह बामसेफ और दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (डीएस-4) बना कर दलितों को जागरूक करने में जुटे थे। कांशीराम ने मायावती को अपना उत्तराधिकारी बनाया और मायावती ने उनको आजीवन सम्मान दिया और उसके बाद उनके सम्मान में स्मारक बनवाया। मायावती तीन बार भाजपा की मदद से तो एक बार अपने बूते यानी चार बार यूपी की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं।
4 अक्टूबर 1992 को बनी सपा
मुलायम सिंह यादव पहली बार 1989 में यूपी के मुख्यमंत्री बने। उनकी सरकार जोड़तोड़ पर चलती रही। जब अप्रैल 1991 में कांग्रेस ने सरकार समर्थन वापस
ले लिया तो अल्पमत में आने के लिए उनकी सरकार गिर गई। 1991 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्ता में आ गई और मुलायम सिंह यादव की पार्टी चुनाव हार गई। इसके बाद मुलायम ने जनता परिवार से अलग होते हुए 4 अक्टूबर 1992 को लखनऊ में समाजवादी पार्टी बनाई और बसपा से दोस्ती कर मिल कर अगला विधानसभा चुनाव लड़ा और सीएम बन गये। बाद में मुलायम सिंह यादव तीसरी बार भी सीएम बने। जब उनकी पार्टी को 2012 में पहली बार पूर्ण बहुमत मिला तो उन्होंने अपने बेटे अखिलेश यादव को सीएम बनाया।