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Janmashtami 2022 जब शंकर भगवान को पता चला कि गोकुल में नन्द जी के यहां साक्षात् नारायण ने जन्म लिया है तो वे उनकी एक झलक की लालसा से गोकुल की ओर दौड पड़े। गले में सर्प भव्य जटा और हाथ में त्रिशूल देखकर माता यशोदा डर ज
बाल कृष्ण की पहली झलक को व्याकुल भगवान शिव ने साधु का वेष बदलकर ऐसे किया दर्श
Janmashtami 2022: नारायण यानि विष्णु भगवान हर युग में अलग अलग रूप धारण कर धरती पर प्रकट हुए और दुष्टों का संहार कर मानवों का उद्धार किया। द्वापर युग में कंस का वध करने के लिए भगवान विष्णु श्री कृष्ण का अवतार लेकर धरती पर प्रकट हुए।
यूं तो उनका जन्म मथुरा के कारागार में हुआ, लेकिन मान्यता के अनुसार उनके पिता वासुदेव उन्हें गोकुल के निवासी नन्द और उनकी पत्नी यशोदा की बच्ची के साथ बदल लेते हैं। जिसके बाद नंद और उनकी पत्नी यशोदा ही कृष्ण का लालन पालन करते हैं।
भगवान शिव को नारद मुनि बाल कृष्ण के बारेमें जैसे ही बताते हैं तो शिव जी कैलाश से गोकुल की ओर दौड़ पड़ते हैं। बाल कृष्ण की एक झलक पाने के लिए महादेव वेश बदलते हैं और साधु का रुप धारण कर भीक्षा मांगते हुए माता यशोदा के पास पहुंचते हैं।
भगवान शिव का रूप देखकर माता यशोदा डरीं
श्रीकृष्ण के नाम जपते भगवान शिव मैया यशोदा के चौखट पर पहुंचते हैं और आवाज लगाते हैं। यशोदा माता को जैसे ही पता चलताहै कि कोई साधु दरवाजे पर आया है तो वह उनके लिए भिक्षा लेकर जाती हैं। गले में सर्प, भव्य जटा और हाथ में त्रिशूल देखकर माता यशोदा एक पल के लिए चौंक जाती है
फिर वह भिक्षा में भगवान शिव को हार देती है। मगर भगवान शिव हार लेने माना कर देते हैं और कहते हैं की मुझे सिर्फ़ भिक्षा के तौर पर बाल कृष्ण के दर्शन करने हैं। यशोदा माता ने साधु को आग्रह करते हुए कहती है कि हे साधु आप महान पुरुष लगते हैं। क्या भिक्षा में कोई कमी लग रही है? आपको जो चाहिए, आप मांगिए, मैं आपको दूंगी। पर मैं कान्हा को बाहर नहीं ल
कान्हा के दर्शन की जिद पर अड़े शिव
यशोदा माता को भय था कि साधु का रूप देखते ही कान्हा भयभीत हो जाएगा। वह शिव जी को साफ तौर पर कृष्ण के दर्शन के लिए मना कर देती हैं और जाने के लिए कहती हैं। मगर भगवान शिव भी कान्हा के दर्शन की जिद नहीं छोड़ते हैं।
फिर पूरणमासी काकी माता यशोदा को मनाती है की एक बार साधु को कान्हा के दर्शन कर लेने दो। काकी की बात सुनकर यशोदा माता मान जाती है और अपने लल्ला को बाहर ले आती हैं। भगवान शिव श्री कृष्ण से मिलकर वापस चले जाते हैं। जाते जाते महादेव अपने चरणों को छाप छोड़ जाते हैं जिसे देख यशोदा और नंदराय समझ जाते हैं की ये कोई आम ब्राह्मण नहीं थे कोई दिव्य पुर