हिमालय की तलहटी में बनीं छानियां पर्यटकों का नया ठिकाना उत्‍तराखंड प्राकृतिक सौंदर्य

Praveen Upadhayay's picture

 

RGAन्यूज़ उत्तराखंड देहरादून संवाददाता

भागदौड़ के जीवन से दूर हरी-भरी वादियों के बीच पहाड़ी संस्‍कृति के साथ समय बिताकर पर्यटक नए अनुभव का अहसास कर रहे हैं। उत्‍तराखंड आ रहे पर्यटक यहां का रुख कर पहाड़ी जीवनशैली का लुत्‍फ उठा रहे हैं। 

देहरादून :  हिमालय की तलहटी में बनीं छानियां पर्यटकों का नया ठिकाना बन रही हैं। उत्‍तराखंड आ रहे पर्यटक यहां का रुख कर पहाड़ी जीवनशैली का लुत्‍फ उठा रहे हैं। यहां उन्‍हें पहाड़ी भोजन परोसा जा रहा है। भागदौड़ के जीवन से दूर हरी-भरी वादियों के बीच पहाड़ी संस्‍कृति के साथ समय बिताकर पर्यटक नए अनुभव का अहसास कर रहे हैं।

उच्च हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोग साल के चार से छह माह अपने मवेशियों के साथ छानी में निवास करते हैं। ऊंचाई वाले क्षेत्रों छानी पहाड़ की संस्कृति का भी अभिन्न अंग होती है। छानियों में रहकर पशुपालन और पर्यावरण संरक्षण के साथ ही यह लोग ट्रेकरों के लिए भी बहुत सहायक होते हैं।

  • पहाड़ी इलाकों में खेत की जोत कम होती है। जमीन छोटे-छोटे टुकड़ों में दूर-दूर तक फैली रहती है। इसलिए इन खेतों के पास ग्रामीणों द्वारा छानियां बनाई जाती हैं।
  • इन छानियों में लोग अपने मवेशियों को रखते हैं। हल और बिजाई, निराई-गुड़ाई का सामान, पशुओं का चारा, पानी आदि को रखा जाता है।
  • इतना ही नहीं यहां वह अपने खाने-पीने और रहने की व्‍यवस्‍था भी करते हैं।
  • पलायन और बाजारवाद का प्रभाव भी इन छानियों पर पड़ा, जो अब धीरे-धीरे कम हो रहा है। इन्‍हें आय का जरिया बनाया जा रहा है।
  • घास-फूस के छप्पर से छानियां बनाई जाती हैं। छानी बनाने से दो फायदे होते हैं एक तो पशुओं के लिए नजदीक में भरपेट चारा मिल जाता है और दूसरा खेती के लिए गोबर की खाद मिल जाती है।
  • सर्दियां बढ़ने पर ग्रामीण अपने मवेशियों के साथ अपने मूल गांवों को लौट आते हैं। अब इन्‍हीं छानियों में पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • वहीं छानी स्‍टे को लेकर पर्यटकों में काफी उत्‍सुकता देखने को मिल रही है। भले ही शहरों में कितने अच्छे रेस्टोरेन्ट हों, लेकिन पहाड़ के पानी में बने खाने के स्‍वाद में यह कहीं नहीं टिकते।
  • उत्‍तरकाशी जिले में स्थित यमुनोत्री धाम के निकट स्थित गुलाबी कांठा को जोड़ने वाले मार्ग पर घास और लकड़ी से बनी पारंपरिक छानियां बनाई गईं हैं। जहां ठहरना और पारंपरिक खाने का स्वाद पर्यटकों को खासा पसंद आता है।
  • यहां दो किमी की दूरी पर निसणी गांव है, जहां ग्रामीण पर्यटकों का स्वागत करते हैं। कंडोला बुग्याल में निसणी के ग्रामीणों की छानियां हैं। जिन्‍हें ग्रामीणों ने पर्यटकों के ठहरने के लिए तैयार किया है।
  • छानियों में पर्यटकों के लिए ग्रामीणों द्वारा खास पहाड़ी पकवान बनाए जाते हैं। यहां मंडवे की रोटी, राजमा की दाल, पहाड़ी आलू के गुटके, लाल चावल और झंगोरे की खरी जैसे पकवान परोसे जाते हैं।
  • ग्रामीणों के अधिकांश मवेशी भी इन्‍हीं छानियों में रहते है। जिस वजह से यहां आने वाले पर्यटक दूध, दही, घी, मक्खन व मट्ठे का भी आनंद उठाते हैं।
  • देहरादून में भी छानी होम स्‍टे हैं। जहां जाकर आप नजदीक के पहाड़ी संस्‍कृति के बीच समय बिता सकते हैं। इन छानियों में रहने का खर्चा एक हजार से पांच हजार रुपये तक होता है।
  •  

छानी स्टे पहाड़ में पर्यटन विकास में बहुत महत्वपूर्ण

बीज बम अभियान और गढ़ भोज अभियान के प्रणेता द्वारिका प्रसाद सेमवाल और डा. अरविंद दरमोड़ा छानियों को पर्यटकों के लिए एक बेहतर स्टे के रूप में पहचान दिलाने के साथ ही छानी एक्ट बनवाने का प्रयास कर रहे हैं। छानी स्टे पहाड़ में पर्यटन विकास में बहुत महत्वपूर्ण भी हैं।

इस छानी अभियान में अभी तक 500 से अधिक छानी स्वामी जुड़ चुके हैं। छानियों को पुनर्जीवित करने के साथ ही उन्हें सशक्त बनाकर सीमाओं की सुरक्षा में जहां सहयोग मिलेगा, वहीं जंगलों की सुरक्षा के साथ ही जंगलों को वन्यजीव तस्करों से भी बचाया जा सकता है।

News Category: 

Scholarly Lite is a free theme, contributed to the Drupal Community by More than Themes.