Loksabha Elections 2019: प्रियंका के आने से बदले समीकरण, इन राज्यों को लेकर BJP को है चिंता

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RGA न्यूज़ उत्तर प्रदेश

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में दो बड़े क्षेत्रीय दलों समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और बहुजन समाज पार्टी (BSP) के गठबंधन से जूझ रही भाजपा (BJP) को अब कांग्रेस में प्रियंका गांधी वाड्रा के सक्रिय राजनीति में आने से बने समीकरणों का भी सामना करना पड़ रहा है। भाजपा की चिंता लगभग एक दर्जन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को लेकर है। यहां पर उसके व कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होता है।

इनकी 112 लोकसभा सीटों (Loksabha Elections 2019) में से भाजपा के पास 109 सीटें हैं, जबकि कांग्रेस के पास तीन सीटें हैं। नई चुनौतियों से निपटने के लिए भाजपा अन्य तैयारियों के साथ अपने काडर व पुराने नेताओं की पूछ परख में जुट गई है। देश के 11 राज्य व केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं, जिनमें कांग्रेस व भाजपा में सीधा मुकाबला होता रहा है। इनमें गोवा (2), गुजरात (26), हिमाचल प्रदेश (4), मध्य प्रदेश (29), राजस्थान (25), छत्तीसगढ़ (11), उत्तराखंड (5), दिल्ली (7), अंडमान निकोबार (1), दादरा नगर हवेली (1), दमन दीव (1) हैं।

तीन राज्यों में हार से बढ़ी चिंता

भाजपा की चिंता इस बात को लेकर है कि बीते पांच साल से सीधे मुकाबले में वह कांग्रेस पर भारी पड़ रही थी। मगर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उसे कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिलने लगी है। पिछले महीने उसके तीन मजबूत गढ़ों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में कांग्रेस से विधानसभा चुनावों में हार झेलनी पड़ी। 

राज्यों के प्रमुख नेताओं की पूछ बढ़ी

भाजपा इससे चिंतित तो है, लेकिन ज्यादा परेशान नहीं है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पिछले चुनाव में भाजपा कई राज्यों में नहीं थी, उनमें अब वह अच्छी बढ़त हासिल करेगी। ऐसे में अगर कहीं कुछ सीटें कम हुई तो दूसरी जगह से बढ़ेंगी भी। पार्टी के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सबसे बड़ा ट्रंप कार्ड है। साथ ही पार्टी ने नए हालातों को देखते हुए अपने काडर को सक्रिय करने के साथ राज्यों के बुजुर्ग नेताओं की भी पूछ परख शुरू कर दी है। इस बार का लोकसभा चुनाव न लड़ने वाले वरिष्ठ नेताओं को विशेष सम्मान व जिम्मेदारी दी जा रही है ताकि पार्टी को लाभ मिले। 

कांग्रेस को दक्षिण में मिल सकता है लाभ

भाजपा के एक प्रमुख नेता का मानना है कि कांग्रेस का इस कार्ड का ज्यादा असर दक्षिण भारत में हो सकता है। उनके मुताबिक उत्तर भारत में जातीय व सामाजिक समीकरणों में कांग्रेस के लिए ज्यादा संभावनाएं नही हैं, लेकिन दक्षिण में इस तरह का कार्ड चलता है। इंदिरा गांधी के समय भी जब कांग्रेस कुछ कमजोर पड़ती थी, तो दक्षिण से उसे ताकत मिलती थी। यही वजह है कि 1977 में रायबरेली से हारने के बाद इंदिरा गांधी ने उपचुनाव कर्नाटक के चिकमंगलूर से लड़ा और जीता। 1980 में भी वह रायबरेली व मेढक (आंध्र प्रदेश) से लड़ीं और दोनों जगह से जीतने पर मेढक को अपने पास रखा। बाद में सोनिया गांधी ने भी बेल्लारी से लोकसभा चुनाव जीता। 

  

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