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RGA न्यूज़ (असम) गुवाहाटी
असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल की रैली के दौरान पुलिस द्वारा एक 3 साल के बच्चे की काली जैकेट उतरवाने का मामला सामने आया है। कहा जा रहा है कि पुलिस ने किसी विरोध-प्रदर्शन की आशंका के चलते काले कपड़े उतरवाए थे।
असम में सीएम सर्बानंद सोनोवाल की रैली में नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन से आशंकित थी पुलिस
पुलिस ने रैली में शामिल होने आई एक महिला को उसके एक तीन साल के बच्चे की काली जैकेट उतारने को कहा था
असम सरकार ने कहा कि उसकी ओर से पुलिस को ऐसे आदेश नहीं दिए गए, मामले में सरकार ने जांच के आदेश दिए
गुवाहाटी
असम में सीएम सर्बानंद सोनोवाल की रैली में नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ किसी तरह के विरोध-प्रदर्शन की आशंका के चलते सुरक्षाकर्मियों ने कथित रूप से एक महिला को उसके तीन साल के बेटे की काली जैकेट उतारकर रैली में शामिल होने को कहा। पुलिस काले रंग को विरोध स्वरूप मान रही थी।
दरअसल, पिछले कुछ हफ्तों से असम में नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ सीएम सोनोवाल और दूसरे बीजेपी मंत्रियों को कई सार्वजनिक मौके पर काले झंडे दिखाए जा रहे हैं। रैली का एक विडियो भी वायरल हो रहा है, जिसमें कुछ दूसरे लोगों भी अपने काले कपड़े उतारते दिख रहे हैं। मामले के टीवी न्यूज चैनल में प्रसारित होने के बाद सोनोवाल ने घटना की जांच के आदेश दिए हैं।
नागरिकता संशोधन बिल का विरोध
सरकार की सफाई
सीएम सोनेवाल की रैली असम के बिश्वनाथ जिले में मंगलवार को हुई। उस दौरान वहां शीतलहर चल रही थी और तापमान 13 डिग्री सेल्सियस तक था। सर्बानंद सोनोवाल की जनरैली बिश्वनाथ के बेहाली में थी। यहां उन्होंने एक सिल्क मिल का शिलान्यास किया। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रंजीत दास ने कहा कि सरकार की तरफ से पुलिस को ऐसे कोई निर्देश नहीं दिए गए थे।
उन्होंने कहा, 'लोगों के काले कपड़े पहनने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। मुझे नहीं पता कि पुलिस ऐसा क्यों कर रही है। इस तरह के निर्देश न तो सरकार और न ही पार्टी की ओर से जारी किए गए थे।' पुलिस ने भी ऐसे किसी तरह के ऐक्शन से इनकार कर दिया। बिश्वनाथ के एसपी राकेश रोशन ने कहा, 'यह एक गलत रिपोर्ट है। हमने महिला का बयान लिया है और उसने कहा कि उसके बेटे को गर्मी लग रही थी और इसलिए उसने उसकी जैकेट उतार दी।'
क्या है नागरिकता (संशोधन) बिल?
नागरिकता (संशोधन) बिल, 2016 के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता मुहैया कराने का प्रावधान है। 1985 के असम समझौते में नागरिकता प्रदान करने के लिए कटऑफ तिथि 24 मार्च 1971 थी। नागरिकता बिल में इसे बढ़ाकर 31 दिसंबर 2014 कर दिया गया है।
नागरिकता कानून को पूर्वोत्तर के दूसरे राज्य कैसे देखते हैं?
बंगाली बहुल पूर्वोत्तर के सभी राज्य (आंशिक रूप से त्रिपुरा) इसके खिलाफ हैं। मेघालय और नगालैंड (जहां क्षेत्रीय पार्टी के साथ बीजेपी की सरकार) के अलावा मिजोरम जहां एनडीए की सहयोगी एमएनएफ (मिजो नैशनल फ्रंट) सत्ता में है, वे इस पर पुनर्विचार के पक्ष में हैं। मिजोरम को डर है कि बांग्लादेश के चकमा बौद्ध इस कानून का फायदा उठा सकते हैं।
मेघालय और नगालैंड को बंगाली शरणार्थियों की बहुलता की आशंका है। बीजेपी शासन वाले अरुणाचल प्रदेश में नए कानून से चकमा और तिब्बती लोगों को लाभ होने का डर है। मणिपुर चाहता है कि इनर लाइन परमिट सिस्टम के जरिए राज्य में बाहरी लोगों का प्रवेश रोका जाए। त्रिपुरा में बीजेपी की सहयोगी आईपीएफ और विपक्षी आईएनपी, केंद्र सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे हैं।