राम नगर का मंदिर

Raj Bahadur's picture

RGAन्यूज़  रेली की आंवला तहसील ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है।महाभारत काल में आंवला क्षेत्र पांचाल राज्य का हिस्सा रहा है।इसके साथ ही आंवला के रामनगर में जैन धर्म के इष्ट भगवान पार्श्वनाथ की तपस्थली भी है, जिसे पार्श्वनाथ जैन मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान ने इस स्थान पर मुनि रूप में तप कर ज्ञान को प्राप्त किया था. मंदिर में जैन धर्म के अन्य देवी देवताओं के भी दर्शन होते हैं।यहां पर पार्श्वनाथ की श्यामवर्ण मूर्ति के दर्शन होते हैं. साथ ही यहां मौजूद कुएं का पानी पीकर असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। दक्षिण भारतीय और आधुनिक शैली में बनाये गये श्री अहिछत्र पार्श्वनाथ जैन मन्दिर के दर्शन के लिए देश विदेश से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।

10 जन्मों पर बने तीर्थंकर

पार्श्वनाथ जी का जन्म तीन हजार साल पूर्व पौष कृष्ण एकादशी वाले दिन वाराणसी में हुआ था. इनके पिता का नाम अश्वसेन और माता का नाम वामादेवी था. जैन पुराणों के अनुसार पार्श्वनाथ जी को तीर्थंकर बनने के लिए इन्हें पूरे नौ जन्म लेने पड़े।

पूर्व जन्म के संचित पुण्यों और दसवें जन्म के तप के फलस्वरूप पार्श्वनाथ जी 23वें तीर्थंकर बने. जैन ग्रंथों में तीर्थंकर पार्श्वनाथ के नौ पूर्व जन्मों का वर्णन मिलता है।

पहले जन्म में वो ब्राह्मण , दूसरे जन्म में हाथी, तीसरे में स्वर्ग के देवता, चौथे में राजा, पांचवे में देव, छठवे में चक्रवर्ती सम्राट, सातवें में देवता, आठवें में राजा और नौवें जन्म में राजा इंद्र. इसके बाद दसवें जन्म में उन्हें तीर्थंकर बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

चमत्कारी है कुआं -  से गंभीर बीमारियां दूर हो जाती हैं. यहां दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु इस कुएं के जल को अपने साथ ले जाते हैं।

बताया जाता है कि इस मंदिर पर आक्रमण हुआ था. उस समय मंदिर का कर्मचारी पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा को लेकर इसी कुएं में तीन दिन तक लेकर बैठा था।

News Category: 

Scholarly Lite is a free theme, contributed to the Drupal Community by More than Themes.