कानपुर: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने गुरुओं के पैर छूकर लिया आशीर्वाद

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​RGA News कानपुर

तमाम उपलब्धियों को समेटे बीएनएसडी कालेज का हराभरा मैदान सोमवार को खूबसूरत पलों का गवाह बना। दुनिया के सबसे सशक्त राष्ट्रों में से एक हिन्दुस्तान के राष्ट्राध्यक्ष रामनाथ कोविन्द ने अपने तीन गुरुओं का सम्मान पैर छूकर किया। इस नजारे को देख आह्लादित छात्र-छात्राओं से लेकर बुजुर्ग खुद को रोक नहीं सके और राष्ट्रपति का अपने शिक्षकों के प्रति ऐसा प्रेम देख खड़े होकर करतल ध्वनि से स्वागत किया। भाव विह्लल गुरुओं ने अपने शिष्य को गले लगाकर जीभरकर आशीर्वाद दिया। गुरु-शिष्य सम्मान व प्रेम के ये अद्भुत क्षण बीएनएसडी शिक्षा निकेतन में आयोजित पूर्व छात्र सम्मेलन में दिखाई दिए। 

सोमवार को बीएनएसडी शिक्षा निकेतन के प्रांगण में राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने अपने तीन पूर्व अध्यापकों त्रिलोकी नाथ टंडन,हरि राम कपूर एवं प्यारे लाल वर्मा को सम्मानित किया। त्रिलोकी नाथ टंडन गणित के अध्यापक थे। हरिराम कपूर एकाउंट्स के अध्यापक थे और प्यारे लाल वर्मा कामर्स पढ़ाते थे। दो अध्यापकों के लिए मंच पर कुर्सी लगवाई गई और राष्ट्रपति ने अंगवस्त्र पहनाने के बाद दोनों के चरण छुए। 96 वर्ष के प्यारेलाल मंच पर आने में असमर्थ थे तो राष्ट्रपति खुद मंच से नीचे आए। अपने वयोवृद्ध गुरु के चरण स्पर्श किए और उनसे आशीर्वाद लिया। राम नाथ कोविंद ने कहा कि अपने गुरुओं को सम्मानित कर वह स्वयं गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।

अपने गुरुओं को महाअध्यापक और महागुरु का दर्जा देते हुए कहा कि अपने गांव परौंख से आगे की पढ़ाई के लिए कानपुर आया था। गरीब परिवार से आए विद्यार्थी के लिए कानपुर में रहकर पढ़ना आसान नहीं था। वजीफे और अध्यापकों की सहयोग से आगे की अध्ययन कर सका। ऐसे शिक्षकों की बदौलत ही जिंदगी संवर सकी। उन्होंने जिंदगी का फलसफा बताते हुए कहा कि सकारात्म सोचें, सकारात्मक कार्य करें और सकारात्मक रूप से जिएं। सकारात्मक सोच हमें मुश्किल वक्त में आगे बढ़ने का हौसला देती है।

इससे पहले पुलवामा हमले में सभी 40 शहीदों को श्रद्धांजलि उन्होंने अर्पित की। इस हमले में कानपुर देहात के शहीद श्याम बाबू का जिक्र किया। इस अवसर पर उन्होंने सांसद डॉ मुरली मनोहर जोशी, औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना, वीरेन्द्रजीत सिंह, सनातन धर्म शिक्षा महा मंडल के अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह,आदित्य शंकर बाजपेयी,सुंरेन्द्र कक्कड़, डॉ.दिवाकर मिश्रा सहित तमाम लोग मौजूद थे। डा.गौरव दुबे ने उनके पूराने कालेज बीएनएसडी इंटर कालेज में नेत्र स्वास्थ्य परीक्षण शिविर लगाने का वचन दिया।

जानबूझकर कक्षा में पीछे बैठता था
तीन अध्यापकों के सम्मान पर भावुक राष्ट्रपति बोले कि जानबूझकर कक्षा में सबसे पीछे बैठते था या बीच में बैठते थे क्योंकि आगे बैठने वाले बच्चों से सवाल पूछे जाते थे। शिक्षक के सवालों से बचने के लिए पीछे बैठते थे। कहा कि जितनी खुशी आपको हो रही है, उससे ज्यादा खुशी मुझे हो रही है। यहां आकर तमाम यादें ताजा हो गईं। 

ये यादें केवल आपके साथ साझा कर सकता हूं
बीएनएसडी शिक्षा निकेतन में आकर राष्ट्रपति भावुक हो गए। बचपन की यादों में खोए कोविन्द ने कहा कि ये स्मृतियां ऐसी हैं, जिन्हें किसी भी मंच से साझा नहीं कर सकता, केवल आपसे कह सकता हूं। रास्ते में बृजेन्द्र स्वरूप पार्क देखा तो बचपन आंखों के सामने आ गया। 1960 का दौर याद करते हुए कहा कि कालेज सुबह सात-आठ बजे लगता था। गर्मी का सीजन था। यहां पढ़ाई के दौरान मकराबर्टगंज में अपने बहन-बहनोई के पास रहता था, जो लाल इमली में नौकरी करते थे। वहीं रहकर आगे की पढ़ाई की। बहुत मुश्किलों का सामना किया।

रोड लैम्प के नीचे पढ़ाई की
यादों में खोए राष्ट्रपति ने कहा कि लालइ इमली के उन क्वार्टर्स में तब बिजली नहीं थी। ऐसे में रात में रोड लैम्प के नीचे पढ़ाई करते थे। सुबह गर्मी बहुत होती थी इसलिए घर से बाहर बैग लेकर निकलते थे। गंदा नाला पारकर बृजेन्द्र स्वरूप पार्क आते थे। वहां पेड़ों की छांव में पढ़ाई करते थे। उन्होंने कहा कि इन बातों का उल्लेख इसलिए कर रहा हूं कि आज जो छात्र बैठे हैं, उन्होंने ऐसी मुश्किलों का सामना नहीं किया है लेकिन संघर्ष और परिश्रम करने की क्षमता बनाए रखिए। 

शिक्षा का उद्देश्य डिग्री नहीं बल्कि अच्छा इंसान बनाना
राष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा का मूल उद्देश्य अच्छी डिग्री प्राप्त करना या अच्छी नौकरी करना ही नहीं है। शिक्षा का मूलभूत उद्देश्य है-एक छात्र अच्छा इंसान बने। एक अच्छा इंसान होगा, तभी अच्छा शिक्षक बनेगा..एक अच्छा पति बनेगा..बेटी होगी तो एक अच्छी पत्नी और मां बनेगी। 

सफल होने पर अपने लोगों को न भूलें
राष्ट्रपति ने बच्चों को नसीहत दी कि जिंदगी में जितनी भी ऊंचाई पर क्यों न पहुंच जाएं, जमीन से जुड़े रहें। उन लोगों को न भूलें, जिन्होंने आपका साथ दिया है। उन्होंने कहा कि आप जहां भी पहुंचे हैं, उसमें समाज का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष योगदान है। अगर समाज का योगदान न होता तो आप आज जहां पर हैं, वहां नहीं होते। इसलिए हमेशा जरूरतमंदों की मदद करें। जितनी आपकी क्षमता हो, मुश्किल वक्त में लोगों के साथ खड़े रहें।

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