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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि वह शांति कायम करने के इरादे से अभिनंदन को भारत को सौंप रहे हैं। हालांकि इस संबंध में उन्होंने जिस तरह बयान बदले, उससे लगा कि इस फैसले के लिए उन पर काफी दबाव था
विंग कमांडर अभिनंदन की वापसी के साथ भारत-पाक के बीच चला आ रहा तनाव कम होने की उम्मीद है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि वह शांति कायम करने के इरादे से अभिनंदन को भारत को सौंप रहे हैं। हालांकि इस संबंध में उन्होंने जिस तरह बयान बदले, उससे लगा कि इस फैसले के लिए उन पर काफी दबाव था। अंतरराष्ट्रीय जनमत अपनी सीमाओं की रक्षा कर रहे एक पायलट की गिरफ्तारी के खिलाफ था। अभिनंदन भारतीय सीमा में घुसे पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों का पीछा करते हुए पाकिस्तान की सीमा में चले गए थे। वहां दुर्घटना में अपना विमान खो देने के बाद भी एक जांबाज सिपाही की तरह उन्होंने अपना धैर्य बनाए रखा। अब उनकी वापसी के फैसले के बाद दोनों देशों के रुख से लगता है कि वे युद्ध से हटकर समाधान खोजने को तैयार हैं।
भारत ने पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले से संबंधित डोजियर पाकिस्तान के कार्यवाहक उच्चायुक्त को सौंप दिया है, जिसमें हमले के पाकिस्तानी सूत्रों से जुड़े सारे सबूत मौजूद हैं। इसे हम बातचीत की शुरुआत के लिए एक भूमिका के रूप में देख सकते हैं। इमरान खान पुलवामा हमले के बाद से ही कहते रहे हैं कि उन्हें हमले का पुख्ता सबूत चाहिए। अब सबूत सौंप दिए गए हैं तो उन्हें घटना के लिए जवाबदेह आतंकी संगठनों के खिलाफ ठोस कार्रवाई शुरू कर देनी चाहिए। सचाई यह है कि करगिल की लड़ाई के बाद दोनों मुल्कों के बीच इतना बड़ा तनाव पहली बार ही देखने को मिला है। इस बीच संसद पर हमला और मुंबई अटैक जैसी घटनाएं हुईं लेकिन तब भी हालात इस मुकाम तक नहीं पहुंचे थे। दरअसल भारत ने अपने रुख में बड़े बदलाव का संकेत न सिर्फ पाकिस्तान को बल्कि पूरी दुनिया को दिया है।
उसने स्पष्ट कर दिया है कि एटमी युद्ध का खतरा भांपकर दहशतगर्दी को बर्दाश्त करते जाना उसकी नीति नहीं है, और अपने यहां होने वाली किसी आतंकी वारदात की जड़ पर चोट करने के लिए दूसरे देश की सीमा में घुसने से भी उसे कोई गुरेज नहीं है। अभिनंदन की गिरफ्तारी के बाद जिस तरह भारतीय सेना के तीनों अंगों ने सम्मिलित बैठक की, उससे पाकिस्तान को लगा कि दाएं-बाएं करने का कोई रास्ता उसके पास नहीं बचा है। आर्थिक बदहाली के इस दौर में वह कूटनीतिक रूप से भी घिर चुका है। यह सब देखकर वह बातचीत की पेशकश न करता तो और भला क्या करता। बहरहाल, इस पेशकश को हमें सकारात्मक रूप में देखना होगा और पाक हुक्मरानों को समझना होगा कि बातचीत अब रस्म अदायगी की तरह नहीं होगी। वार्ता के केंद्र में आतंकवाद ही होगा और पाकिस्तान सरकार को अपनी बेबसी जताने के बजाय आतंकी ढांचों की कमर तोड़नी होगी।