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उत्तरकाशी जिले के ग्राम लोदन निवासी गिरधारी लाल 106 साल के हो चुके हैं। बावजूद इसके गुलामी के दौर से लेकर आजाद भारत में लोकतंत्र के महापर्व की पूरी कहानी उन्हें सिलसिलेवार याद है।...
उत्तरकाशी: -उत्तरकाशी जिले के ग्राम लोदन निवासी गिरधारी लाल 106 साल के हो चुके हैं। वह गांव ही नहीं, पूरे इलाके में सबसे उम्रदराज हैं। बावजूद इसके गुलामी के दौर से लेकर आजाद भारत में लोकतंत्र के महापर्व की पूरी कहानी उन्हें सिलसिलेवार याद है। 11 अप्रैल को 17वीं लोकसभा के लिए होने वाले प्रथम चरण के मतदान को लेकर गिरधारी लाल खासे उत्साहित हैं। कहते हैं, इस बार लोदन गांव में ही पोलिंग बूथ बनाया गया है, इसलिए मतदान के लिए उन्हें तीन किमी दूर ओढग़ांव नहीं जाना पड़ेगा। वैसे, मतदान केंद्र ओढग़ांव में भी होता तो वह वोट डालने जरूर जाते।
जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 145 किमी दूर स्थित लोदन गांव टिहरी गढ़वाल संसदीय सीट के पुरोला विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है। लोदन को जोडऩे के लिए छह वर्ष पहले सड़क बन चुकी है। गांव में 160 परिवार निवास करते हैं और मतदाताओं की संख्या 600 के आसपास है। इन मतदाताओं में गिरधारी लाल अकेले शतायु हैं। कहते हैं, जब उनकी उम्र 25 साल की थी, तब वे खरीदारी के लिए पहली बार देहरादून गए। वहां रोजगार दिलाने के नाम पर अंग्रेज उन्हें अपने साथ मुंबई ले गए। अंग्रेज उनसे घर का सारा काम कराते थे। मुंबई के बाद प्रयागराज, कानपुर, कोलकाता और मसूरी में भी अंग्रेजों ने उनसे काम कराया। मसूरी में वह चौकीदारी करते थे। वर्ष 1946 के आसपास जब मसूरी में अंग्रेजों ने हिंदू-मुसलमान को आपस में लड़ाया तो वे मौका देखकर वहां से भाग निकले। करीब सात-आठ साल तक उन्होंने अंग्रेजों की गुलामी झेली। दिन-रात काम करने के बावजूद अंग्रेज उन्हें महीने में आठ आना (50 पैसे) से कम मेहनताना देते थे। सो, वह फिर घर से कहीं नहीं गए। जब मुल्क के आजाद होने का समाचार मिला, तब अंग्रेजों के खौफ से निजात मिली।
बकौल गिरधारी लाल, 'वर्ष 1951-52 में जब पहली बार चुनाव हुए तो मैंने भी मतदान किया। वर्ष 1955 में मैं सहारनपुर चला गया और दो-तीन वर्ष वहीं रहा। वहां से लौटने के बाद मैंने आजीवन गांव में ही रहकर कृषि व पशुपालन किया। इस कालखंड में मैंने प्रधान से लेकर सांसद तक के लिए कई बार मतदान किया। हालांकि, यह ठीक-ठीक बता पाना मुमकिन नहीं कि कितनी बार मतदान किया, लेकिन इतना जरूर याद है कि किसी भी चुनाव में मैं मतदान से वंचित नहीं रहा।' कहते हैं, उनकी आंखों के सामने काफी-कुछ बदल चुका है। पहले गांव से देहरादून तक पैदल जाना पड़ता था, जबकि अब गांव तक सड़क व बिजली पहुंच चुकी है।
गिरधारी ने जिया सादा जीवन
गिरधारी लाल कहते हैं कि उनकी दिनचर्या आज भी पहले जैसी ही है। हालांकि, अब वे खेतों में काम करने नहीं जा पाते, लेकिन घर पर पशुओं को चारा खिलाने से लेकर अन्य छोटे-मोटे कार्य स्वयं ही करते हैं। सुबह उठकर सबसे पहले वे गाय को रोटी खिलाते हैं और चिडिय़ाओं को दाना देते हैं। नाश्ता करने से पूर्व वे कुत्ते को रोटी देना नहीं भूलते। कहते हैं, उन्होंने अपना जीवन काफी गरीबी में गुजारा। कभी बाजारी खानपान का मौका नहीं मिला और गांव में ही पैदा होने वाले मंडुवा, झंगोरा आदि अन्न से पेट भरा। हां! दूध, दही, घी की घर में कभी कमी नहीं रही। संभव है उसी खानपान के कारण ही आज भी चल-फिर रहे हैं।
102 साल में हुआ शतायु मतदाता के रूप में सम्मान
गिरधारी लाल कहते हैं, जब वे 102 साल के थे, तब शतायु मतदाताओं के साथ एसडीएम बडकोट ने उन्हें भी सम्मानित किया था। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी राजस्व विभाग की टीम ने उन्हें घर पर आकर सम्मानित किया। गिरधारी लाल के परिवार में आठ सदस्य हैं। इस बार लोदन गांव की प्रधान भी गिरधारी लाल की बहू ही हैं।
102 साल के हैं रामरतन दास
गंगोत्री विधानसभा क्षेत्र के भटवाड़ी निवासी 102-वर्षीय रामरतन दास कहते हैं कि वे शारीरिक रूप से अक्षम जरूर हुए हैं, लेकिन मतदान के महत्व को भली-भांति समझते हैं। इसलिए, जब से देश स्वतंत्र हुआ, तब से वोट देते आ रहे हैं। कहते हैं, हमें ऐसे व्यक्ति को विधानसभा व संसद में भेजना चाहिए, जो वहां हमारी आवाज बुलंद कर सके। संन्यासी रामरतन दास पिछले 30 वर्षों से भटवाड़ी में कुटिया बनाकर रह रहे हैं। कहते हैं कि वह एक संन्यासी हैं, इसलिए संपूर्ण संसार ही उनका घर है।
उत्तरकाशी जिले में शतायु मतदाता
- विस क्षेत्र, मतदाता
- गंगोत्री, 04
- यमुनोत्री, 02
- पुरोला, 04
बोले अधिकारी
डॉ. आशीष चौहान (जिला निर्वाचन अधिकारी, उत्तरकाशी) का कहना है कि 'शतायु और दिव्यांग मतदाताओं को आवश्यक रूप से मतदान कराने के लिए बीएलओ समेत अन्य अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं। ऐसे मतदाताओं को मतदान केंद्र तक पहुंचाने और वहां से घर लाने के लिए एनसीसी व एनएसएस के स्वयं सेवियों की मदद ली जाएगी