प्रतिबंधित पालीथीन के अंधाधुंध प्रयोग से पट रही नालियां

Praveen Upadhayay's picture

महाराजगंज समाचार सेवा

महाराजगंज: स्थानीय उपनगर सहित तहसील क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में पालीथीन का प्रयोग दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। इसके अंधाधुंध प्रयोग से समस्या लाइलाज होने के साथ भारत स्वच्छता मिशन को धक्का पहुंच रहा है। पालीथीन प्रयोग से उपनगर की नालियां पटी हुई हैं । जिससे आए दिन सीवर लाइनों के जाम होने से कुछ मोहल्लों में गंदा पानी सड़क पर बहता हुआ देखा जा सकता है। पर्यावरण के दोहन से भविष्य की दिखती भयावह तस्वीर और क्षेत्र में सक्रिय सैकड़ों स्वयंसेवी संस्थाओं का प्रयास भी लोगों का मोहभंग करने में विफल साबित हो रहा है। आलम यह है कि पालीथीन में ही घरेलू उपयोग के लिए बाजार से दैनिक वस्तुएं जिनमें चाय, तेल, जूस, सब्जियां अन्य कई खाद्य सामग्री खरीद कर लटकाए हुए जाना फैशन बना हुआ है। हालांकि शासन ने इससे होने वाले नुकसान को देखते हुए 20 माइक्रोन से कम पतली पालीथीन से बने बैग वर्ष 2005 से ही प्रतिबंधित कर रखा है। उच्चतम न्यायालय से भी इस पर रोक लगाने की बात कही गई हैलेकिन अभी भी धड़ल्ले से पालिथीन का निर्माण व उपयोग किया जा रहा है। समय-समय पर शासन सहित अधिकारियों द्वारा इस बात के निर्देश दिए जाते हैं कि रीसाइकि¨लग कर पालिथीन बैग बनाने वालों के यहां छापे मारकर निर्माण बंद कराए जाएं ताकि इस पर प्रभावी अंकुश लग सके , लेकिन इन आदेश और निर्देशों का पालन होते नहीं दिखता कई स्वयंसेवी संस्थाओं ने इसके लिए जन जागरण अभियान भी चलाया । यहां तक कि पालीथीन में सब्जी खरीदने से रोकने का प्रयास भी किया गया और इसके लिए झोला या कपड़े के थैले के प्रयोग हेतु लोगों को प्रोत्साहित भी किया गया । जबकि कूड़े के ढेर में सबसे ज्यादा कचरा प्लास्टिक के रूप में ही होता है। दुखद पहलू यह भी है कि कूड़े के ढेर में चारे की तलाश करते छुट्टा पशु खाद्य पदार्थों के साथ-साथ प्लास्टिक खा बीमार हो जाते हैं और असमय उनकी मृत्यु हो जाती है। उपजिलाधिकारी व नगर पंचायत के प्रभारी अधिशासी अधिकारी देवेश कुमार गुप्त का कहना है कि पालीथीन के प्रयोग पर अंकुश तभी लगेगा जब प्रत्येक नागरिक समाज पर्यावरण के प्रति अपने दायित्वों को समझें।

Place: 

Scholarly Lite is a free theme, contributed to the Drupal Community by More than Themes.