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कल यानी एक अप्रैल को देश नए वित्त वर्ष में प्रवेश कर जाएगा। वित्त वर्ष 2019-20। यह वह बहुप्रतीक्षित वर्ष है जिसका सपना डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने बीस बरस पहले दिखाया। ...
कल यानी एक अप्रैल को देश नए वित्त वर्ष में प्रवेश कर जाएगा। वित्त वर्ष 2019-20। यह वह बहुप्रतीक्षित वर्ष है, जिसका सपना डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने बीस बरस पहले दिखाया। विजन-2020। डॉ. कलाम ने तब कहा था- मैं आश्वस्त हूं कि नागरिकों और सरकार दोनों के प्रयासों से इस विजन को साल 2020 तक साकार किया जा सकेगा। 26 करोड़ लोगों को गरीबी से मुक्तकराना, हर चेहरे पर मुस्कान लाना और भारत को पूरी तरह विकसित राष्ट्र बनाना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। यही सबसे बड़ी चुनौती भी है। हम इस पर तभी विजय प्राप्त कर सकते हैं, जब हम सभी साधारण मुद्दों को भूलकर, एक देश के रूप में सामने आकर हाथ मिलाएं...। वित्त वर्ष 2019- 2020 का आगाज और वह भी तब जब दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत अपने 17वें लोकसभा चुनाव के रूप में सबसे बड़ा उत्सव मनाने जा रहा है, डॉ. कलाम के विजन-2020 की पूर्ति की समीक्षा न सही किंतु इसके निहितार्थ पर चिंतन समीचीन है।
मिसाइल मैन के नाम से दुनिया में मशहूर हुए महान वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने बीस साल पहले भारत के लिए एक बड़ा सपना देखा था। सपना था भारत के समग्र विकास का। यह केवल सपना नहीं बल्कि विजन था। कलाम ने भारत के लिए विजन-2020 तैयार किया था। उनके नेतृत्व में 500 एक्सपर्ट्स की एक टीम ने डिपार्टमेंट आफ साइंसेस एंड टेक्नोलॉजी के तहत विजन-2020 के नाम से विस्तृत डॉक्यूमेंट तैयार किया, जिसमें साल 2020 तक भारत को एक विकसित देश के रूप में स्थापित करने का तार्किक रोडमैप था। कलाम ने ‘इंडिया 2020 ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम’ नाम से इस पर किताब भी लिखी। लिखा, इसरो में जी-तोड़ परिश्रम करते हुए हमने जो साधन और तंत्र बनाए, विकसित किए और परीक्षण करके जिनकी जांच की, उनका एक ही उद्देश्य था- एक विकसित, शक्तिशाली और गर्व से भरे ऐसे भारत का निर्माण, जिसके प्रत्येक नागरिक को इसके जरिये उन्नत सहायताएं व सुविधाएं उपलब्ध हों...।
हमें इसका गर्व और प्रसन्नता है कि कृषि, विज्ञान, कला, संस्कृति और सामाजिक क्षेत्रों में कार्यरत अनेक व्यक्तियों के स्वप्न भी साकार हो चुके हैं। परंतु हमारी परिकल्पना अभी भी अधूरी ही है- गरीबी से रहित एक समृद्ध भारत की परिकल्पना, वाणिज्य तथा व्यापार में अग्रणी भारत की परिकल्पना, विज्ञान तथा तकनीकी के विविध क्षेत्रों में शक्तिशाली भारत की परिकल्पना, और नवपरिवर्तनशील ऐसे औद्योगिक भारत की परिकल्पना जिसमें प्रत्येक व्यक्तिको शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं उपलब्ध हों। सच्चाई यह है कि इनमें से कई विषयों पर आज निराशा ही व्याप्त है। इससे उबरने के लिए ही हमने विजन-2020 की रूपरेखा तैयार की है। सन 2020 तक या उससे पहले ही हमें इसे हासिल कर लेना है। विकसित भारत की कल्पना स्वप्न मात्र नहीं है। यह कुछ गिने-चुने भारतीयों की प्रेरणा मात्र भी नहीं होना चाहिए। यह हम सब भारतीयों का मिशन होना चाहिए, जिसे हमें पूर्ण करना है...।
डॉ. कलाम ने बीस साल पहले जिन विषयों को लेकर निराशा जताई थी, और जिससे उबरने के लिए विजन-2020 का समयबद्ध रोडमैप दिया था, गत बीस साल तक उस रोडमैप पर चलते हुए क्या उस निराशा से भारत उबर सका है?
ऐसा है कलाम के सपनों का भारत
विजन 2020 देते हुए डॉ. कलाम ने कहा था, एक ऐसा देश जहां ग्रामीण-शहरी विकास की विभाजन रेखा मिट जाए और देश के सभी हिस्से विकसित हो जाएं। एक ऐसा देश जहां ऊर्जा और पानी का समान वितरण और पर्याप्त पहुंच हो। एक देश जहां कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र एक साथ एक तारतम्य में काम करें। एक ऐसा देश जहां सामाजिक या आर्थिक भेदभाव के कारण किसी भी अच्छे उम्मीदवार के लिए एक अच्छी मूल्य प्रणाली वाली शिक्षा को अस्वीकार नहीं किया जाता हो। एक राष्ट्र जो दुनिया भर के सबसे प्रतिभाशाली विद्वानों, वैज्ञानिकों और निवेशकों के लिए सबसे अच्छा गंतव्य हो। एक ऐसा राष्ट्र जहां भारत के सभी नागरिकों के लिए स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध हो। एक ऐसा देश जहां शासन उत्तरदायी, पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त हो। एक ऐसा देश जहां गरीबी पूरी तरह से समाप्त हो गई हो, अशिक्षा को हटा दिया गया हो, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध अनुपस्थित हों और समाज में कोई भी अलग-थलग महसूस न करता हो। एक ऐसा राष्ट्र जो समृद्ध, स्वस्थ, सुरक्षित, आतंकवाद से रहित, शांतिपूर्ण और खुशहाल हो व सतत विकास पथ पर आगे बढ़ता जाए। एक ऐसा राष्ट्र जो अपने रहने के लिए सबसे अच्छे स्थानों में से एक हो और अपने नेतृत्व पर गर्व करता हो...।
2000-2020: आज कहां खड़े हैं हम
भारत की आर्थिक वृद्धि दर 2018-19 में 7.2 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2019- 20 में 7.5 प्रतिशत पर पहुंच जाने की उम्मीद है (आंकड़ा अप्रैल में जारी होगा)। वित्त मंत्रालय ने ऐसी उम्मीद जताई है। आर्थिक वृद्धि दर को दो अंकों में ले जाना अब भी चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। यह लक्ष्य जितना लंबा होता जाएगा यह चुनौती उतनी ही बढ़ती जाएगी। कृषि और विनिर्माण क्षेत्र के प्रदर्शन में सुधार की बदौलत वित्त वर्ष 2018-19 में भारतीय अर्थव्यवस्था की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान बताया गया। वित्त वर्ष 2017-18 में देश की आर्थिक वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रही थी। इससे पहले 2016- 17 में जीडीपी वृद्धि दर 7.1 प्रतिशत और उससे पहले यानी 2015-16 में 8.2 प्रतिशत रही थी।
केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के अनुमान के अनुसार 2018-19 में प्रति व्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय 11.1 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 1 लाख 25 हजार 397 रुपये पर पहुंच जाएगी, जो 2017-18 में 1 लाख 12 हजार 835 रुपये थी। निवेश का पैमाना समझे जाने वाली सकल स्थायी पूंजी सृजन (जीएफसीएफ) के मौजूदा मूल्य पर 55.58 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है जो 2017-18 में 47.79 करोड़ रुपये रहा था। स्थिर मूल्य (2011-12) पर जीएफसीएफ 45.86 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है, जो 2017-18 में 40.88 लाख करोड़ रुपये रहा था। जीडीपी के संदर्भ में चालू और स्थिर कीमत पर जीएफसीएफ की दर क्रमश: 29.5 प्रतिशत और 32.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो 2017-18 में क्रमश: 28.5 प्रतिशत और 31.4 प्रतिशत थी।
अगले वित्त वर्ष में खाद्य मुद्रास्फीति बढ़कर दो प्रतिशत तक पहुंच सकती है। चालू वित्त वर्ष 2018-19 में इसके 0.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। वहीं, विश्व बैंक के ताजा अनुमान के अनुसार, वित्त वर्ष 2019-20 में भारत की आर्थिक विकास दर 7.5 फीसद रह सकती है और भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में अपने दर्जे को बरकरार रखेगी।
आंकड़ों का पैमाना
विजन 2020 में कहा गया था कि हमें अगले 20 वर्षों (साल 2000 से 2020 तक) में 8.5 से 9 प्रतिशत की लक्षित वार्षिक जीडीपी विकास दर प्राप्त करना होगा। वहीं, 2011 में डॉ. कलाम ने कहा था, विजन-2020 के तहत अगर अगले नौ साल तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 10 से 11 प्रतिशत रहती है तो भारत आर्थिक रूप से विकसित देशों की कतार में शामिल हो सकता है।
योजना आयोग ने तय किए थे लक्ष्य
विजन 2020 को अपनाकर बीस साल पहले योजना आयोग ने सरकार को एक रोडमैप सौंपा था, जिन्हें आधार बनाकर इन दो दशकों में तमाम प्रयासों को अंजाम दिया जाता रहा
शिक्षा: योजना आयोग के डॉक्यूमेंट 2020 में कहा गया था- 2005 तक 75 फीसद साक्षरता हासिल करना। 100 प्रतिशत साक्षर भारत सर्वोपरि लक्ष्य। प्राथमिक शिक्षा में 77 प्रतिशत और माध्यमिक शिक्षा में 60 प्रतिशत हासिल करने के लिए 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के सभी बच्चों का 100 प्रतिशत नामांकन किया जाएगा। शिक्षा में निवेश को जीएनपी के वर्तमान स्तर 3.2 प्रतिशत से दोगुने से अधिक किया जाना होगा।
रोजगार : हमारे कार्यबल का ज्ञान और कौशल भारत की भविष्य की दर का एक प्रमुख निर्धारक होगा। वर्तमान में (2000 में), देश की केवल पांच प्रतिशत श्रम शक्ति (20-24 आयु वर्ग में) औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण से गुजरती है, जबकि मैक्सिको में यह 28 प्रतिशत से लेकर कोरिया में 96 प्रतिशत तक है। लिहाजा सरकार को एक व्यापक योजना के तहत देश के रोजगार योग्य कौशल को बढ़ाने के लिए समेकित रणनीति की आवश्यकता है। आवश्यक व्यावसायिक कौशल मुहैया कराने के लिए यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों की उपलब्धता सहित व्यावसायिक कौशल की सीमा को विस्तार देना होगा। कौशल वितरण में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाना होगा। ताकि हर साल एक करोड़ अप्रशिक्षित युवाओं को कम लागत, उच्च-गुणवत्ता वाले प्रशिक्षण केंद्रों में कौशल प्रशिक्षण मुहैया हो सके। देश के इंजीनियरिंग कॉलेजों और प्रौद्योगिकी संस्थानों को विश्वस्तरीय गुणवत्ता मानकों पर अपग्रेड करने की आवश्यकता है।
स्वास्थ्य: स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए देश के स्वास्थ्य ढांचे और मौजूदा कार्यबल का पुनर्गठन कर इसे और मजबूत करना होगा। एक दशक के भीतर मलेरिया की घटनाओं में 50 प्रतिशत या उससे अधिक की वृद्धि हुई है। टीबी, एड्स, डायरिया जैसी बीमारियों की रोकथाम के लिए स्वास्थ्य तंत्र को विस्तार देना होगा।
शहरीकरण-नागरिक सुविधाएं: भारत की शहरी आबादी के 28 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत होने की उम्मीद है, जिसके समायोजन के लिए 2020 तक देश के शहरी बुनियादी ढांचे पर बढ़ते दबाव को कम करते हुए दस लाख की आबादी वाले 60 से 70 बड़े शहरों में और उसके आसपास ध्यान केंद्रित करने की संभावना तलाशना होगा।
परिवहन: राष्ट्रीय राजमार्गों के मौजूदा 70,000 किलोमीटर के नेटवर्क पर वर्तमान के मुकाबले 2020 तक ट्रैफिक में लगभग पांच गुना की वृद्धि होगी। लिहाजा, देश में वन-वे राजमार्गों का जाल बढ़ाना होगा। इससे अधिकांश जिलों को जोड़ना होगा। इनसे ग्रामीण सड़कों तक पहुंच प्रदान करना होगा।
बिजली : अगले दो दशकों (2000-2020) में बिजली के उपभोग में 3.5 गुना या उससे अधिक की वृद्धि होगी, जिसके लिए 2020 तक एर लाख 10 हजार से 2 लाख 92 हजार मेगावाट तक उत्पादन क्षमता की स्थापना का लक्ष्य होगा। पर्यावरण हितैषी स्नोतों का विकास करना होगा।
भारत का समावेशी विकास चाहते थे डॉ. कलाम...
पिछले एक दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक विकास में सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से एक रही है, जो आर्थिक गतिविधियों में दुनिया की वृद्धि के लगभग 10 फीसद के लिए जिम्मेदार है। परचेसिंग पावर पेरटि (पीपीपी) में भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। हमारी जीवन प्रत्याशा दोगुनी से अधिक हो गई है। साक्षरता दर 4 गुना बढ़ गई है। स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार हुआ है। लेकिन बावजूद इसके देश में असमानता में वृद्धि देखी गई है, जो मुख्य रूप से आय और लिंगभेद के कारण है। यूएनडीपी ने भारत को 45 फीसद वंचित जनता का घर बताया है। ये कुपोषित, अशिक्षित और अनियोजित हैं।
भारत का ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स 131वें स्थान पर है, जो निचले पायदान पर है। विकास की वर्तमान दर पर हमें चीन की बराबरी करने में और 20 साल लगेंगे। 2018 में भारत के सबसे अमीर एक फीसद लोग 39 फीसद से अधिक अमीर हो गए। जबिक शेष महज 3 फीसद। भारत की शीर्ष 10 फीसद आबादी के पास कुल राष्ट्रीय धन का 77.4 फीसद हिस्सा है। इसके विपरीत, शीर्ष एक फीसद लोगों के पास 51.53 फीसद हिस्सा है। शीर्ष 9 अरबपतियों का धन नीचे की 50 प्रतिशत आबादी के धन के बराबर है। हाल ही में एक सरकारी अध्ययन ने पुष्टि की है कि 12 बेहद वित्तपोषित समर्थक गरीब योजनाएं असफल रही हैं। भ्रष्टाचार और खराब कार्यान्वयन इसका प्रमुख कारण हैं। लिहाजा, डॉ. कलाम के विजन 2020 का धरातल पर आकलन करने के लिए हमें आंकड़ों पर नहीं बल्कि इस बात पर आकलन करना होगा कि भारत का मौजूदा विकास समावेशी है या नहीं। भारत में मौजूद 80 फीसद से अधिक नौकरियां न्यूनतम मजदूरी स्तर को पार नहीं कर सकी हैं।