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Shailputri Chaitra Navratri 2019 6 अप्रैल को घट स्थापना के बाद मां दुर्गा के नौ रूपों में प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा करके अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त करें।...
6 अप्रैल को घट स्थापना के बाद मां दुर्गा के नौ रूपों में प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा करके अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त करें।
हिमराज की बेटी हैं शैलपुत्री
नवरात्रि के पहले दिन नवदुर्गा में दुर्गा मां का प्रथम स्वररूप शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है। पंडित दीपक पांडे के अनुसार इनका नाम शैलपुत्री इसलिए पड़ा क्यों कि इनका जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ था। शैलपुत्री
का वाहन वृषभ बताया गया है, इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता हैं। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं में कमल होता है। नवरात्रि में नौ दिनों की पूजा और व्रत का अपना महत्वं होता है और हर दिन देवी की
आराधना की जाति है। इनमें प्रत्येअक दिन हर देवी स्वरूप की पूजा का अपना अलग विधान होता है। आइये आज जाने प्रथम देवी शैलपुत्री की पूजा विधि के बारे में।
घट स्थापना मुहूर्त
इस साल 6 अप्रैल शनिवार से नवरात्र शुरू हो रहे हैं। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन अभिजीत मुहूर्त में 11 बजकर 44 मिनट से लेकर 12 बजकर 34 मिनट के बीच घट स्थापना करना बेहद शुभ होगा। घट की स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा आरंभ करें।
अखंड सौभाग्य के लिए पूजा
कहते हैं कि नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्तिि होती है। उनके पूजन से जीवन में स्थिरता और शक्ति का प्रादुर्भाव होता है। यही कारण है महिलाओं के लिए शैलपुत्री की पूजा काफी शुभ समझी जाती है। इसलिए देवी के इस स्वओरूप की पूजा किस प्रकार करें ये समझना आवश्यतक है। इसके लिए सबसे पहले पूजा के स्थािन ठीक से साफ और शुद्ध करें। इसके बाद माता की तस्वीर भी साफ जल से शुद्ध करें, इसके बाद लकड़ी के पाटे पर लाल वस्त्र बिछा कर उस पर कलश रखें और माता की तस्वीदर भी
स्थापित करें। अब एक मुट्ठी में चावल लेकर माता का ध्यान करते हुए अर्पित करें। इसके बाद मां को चूनर चढ़ायें और लाल रोली की बिंदी लगायें। अंत में मां की आरती करके उन्हें प्रणाम करें।