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मछली के शरीर के ऊपरी हिस्से में एक लेबल चस्पा है जो सेंट पीटर्सबर्ग की ओर इशारा करता है। नार्वे के एक मछुआरे ने बड़ी मेहनत के बाद मछली के शरीर से इस लेबल को अलग किया। ...
नार्वें:-इन दिनों रूस की सफेद व्हेल मछली सुर्खियों में है। नार्वे के किनारे पाई गई इस मछली से कई देश चौकन्ने हो गए हैं। दरअसल, नॉर्वे के विशेषज्ञों का मानना है कि यह सफेद व्हेल रूसी जासूस हो सकती है। उसके शरीर पर एक खास किस्म का पट्टा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि संभव है कि उसे रूसी नौसेना ने प्रशिक्षित किया हो।
सफेद व्हेल आर्कटिक में पाई जाती है। इस व्हेल के बारे में जानकारी तब मिली जब ये व्हेल आर्कटिक द्वीप इंगोया में कई बार नॉर्वे के करीब पहुंची। यहां से 415 किलोमीटर दूर मर्नमांस्क में रूस के उत्तरी बेड़े का नौसैनिक का बड़ा ठिकाना है। इस लिए यह शक और गहरा गया कि यह मछली रूस की जासूस हो सकती है।
नॉर्वे ने एक ऐसा वीडियो जारी किया है, जिसमें व्हेल के शरीर से एक पट्टा निकाला जा रहा है। ये पट्टा सफेद व्हेल के शरीर में काफी मजबूती से लगाया गया था। हालांकि, यह गोप्रो कैमरे का होल्डर था। इसमें कैमरा नहीं था। मछली के शरीर के ऊपरी हिस्से में एक लेबल चस्पा है, जो सेंट पीटर्सबर्ग की ओर इशारा करता है। नार्वे के एक मछुआरे ने बड़ी मेहनत के बाद मछली के शरीर से इस लेबल को अलग किया।
हालांकि, इस बाबत रूस के एक पूर्व सैन्य अफसर ने नॉर्वे के दावे पर तो कुछ नहीं कहा, लेकिन इस बात से उन्होंने इंकार भी नहीं किया सफेद व्हेल रूसी नौसेना के बेड़े का हिस्सा रही हो। एक अन्य रूसी सैनिक का दावा है कि युद्ध संबंधी कार्यों के लिए हम डॉल्िफन मछली का इस्तेमाल करते हैं।
नौसैनिक बेड़े में डॉल्िफन मछली को शामिल किया गया है। उन्होंने इस बात से भी इंकार नहीं किया कि जीवों को जासूस के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। बता दें कि रूस के क्राइमिया में मिलिट्री डॉल्िफन का केंद्र है। वहां इन मछलियों को भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। इसमें जल क्षेत्र की रक्षा के साथ-साथ विदेश गोताखाेरों को ठिकाने लगाना और विदेशी जहाजों के नीचे विस्फोटक सामग्री लगाने तक का कार्य इनसे लिया जाता है।