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Water Crisis in Bastar बस्तर जो देश-दुनिया में नक्सली समस्या के लिए जाना जाता है। यहां गर्मी के दिनों में जीवन कितना कठिन हो जाता है यह बाहरी दुनिया शायद ही जान पाती है।...
रायपुर:-बिना पानी के जीवन कैसा होगा यह सोच कर ही रूह कांप उठती है जरा सोचे पूरे दिन के लिए अगर आपको मात्र एक मटका पानी मिले तो कैसी हालत होगी। यह महज कहानी नहीं असलियत है बस्तर की। जी हां दक्षिण छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग जो देश-दुनिया में नक्सली समस्या के लिए जाना जाता है। यहां गर्मी के दिनों में जीवन कितना कठिन हो जाता है, यह बाहरी दुनिया शायद ही जान पाती है।
बूंद-बूंद के लिए तरसते हैं दर्जनों गांव
बस्तर जिले के दरभा ब्लॉक में दर्जनों गांव ऐसे हैं, जहां ग्रामीणों को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ रहा है।हालात ऐसे हैं कि एक गगरी से अधिक पानी लेने वालों पर जुर्माना लगता है। पंचायत को पानी का दुरुपयोग रोकने के लिए इस तरह का फरमान जारी करना पड़ा है। ये हालात पानी की कमी को लेकर देशव्यापी चिंता का सबसे बड़ा उदाहरण कहा जा सकता है। जिस तरह से भूगर्भ जल का दोहन हो रहा है, देश भर में आने वाले दिनों में ऐसा नजारा दिख सकता है।
पानी की बर्बादी पर लगेगा फाइन
छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में भू-जल स्तर वैसे भी काफी नीचे है और यहां जल स्रोतों का भी अभाव है। ऐसे में अब यहां पानी की एक-एक बूंद के लिए लोग संघर्ष करते नजर आ रहे हैं। बस्तर जिले के दरभा ब्लॉक के मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर लेण्ड्री गांव में पंचायत ने पानी के दुरुपयोग को रोकने के लिए एक अनूठा फरमान जारी किया है। यहां जरूरत से ज्यादा पानी लेने पर या पानी को व्यर्थ बहाने पर पंचायत प्रति बाल्टी या गगरी 50 स्र्पये जुर्माने का प्रावधान किया है।
लोगों में है जुर्मानेे का डर
हालांकि अभी तक किसी पर भी जुर्माना लगाया नहीं गया है। जुर्माने के डर से लोग खुद ही पानी का दुरूपयोग करने से बच रहे हैं और उतना ही पानी जल स्रोतों से ले जा रहे हैं, जितने की उन्हें जरूरत है। लेण्ड्रा गांव में जनपद पंचायत द्वारा एक टंकी स्थापित की गई है। इस टंकी में पंचायत द्वारा एक नोटिश चस्पा किया गया है, जिसमें लिखा है कि एक गुण्डी लाओ और पानी ले जाओ। 10 गुण्डी लाओगे तो 50 स्र्पये प्रति गुण्डी के हिसाब से जुर्माना लगेगा।
थम गई पानी की बर्बादी
इस व्यवस्था के चलते यहां पानी की व्यर्थ बर्बादी रुकी है। ग्राम पंचायत के सचिव और सरपंच का कहना है कि ऐसी व्यवस्था होने से गांव के हर एक परिवार को जरूरत के हिसाब से पानी मिल पा रहा है। इस व्यवस्था को कायम कर हम जल संकट के दौर से उबरने की कोशिश कर रहे हैं। दरभा ब्लाक के लेण्ड्रा सहित चिंगपाल, नेगनार आदि गांव में भी इसी तरह की परेशानी नजर आ रही है। कोण्डागांव, कवर्धा, दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर जिले के गांवों में भी अमूमन इसी तरह का नजारा देखने को मिल रहा है।
पानी के लिए कहीं जमीन तो कहीं पहाड़ ही खोद डाला
चित्रकोट के बदामपारा में 50 परिवार रहते हैं। यहां पानी के लिए ग्रामीणों ने पहाड़ खोद दिया है। ऐसे जगह पहाड़ को अथक मेहनत कर तोड़ा है जहां स्रोत का पानी आता है। अब इस गड्ढे में जमा होने वाला पानी ग्रामीण पेयजल के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। जगदलपुर क्षेत्र में आडावाल-तीरिया मार्ग पर स्थित कालागुडा के ग्रामीण गड्ढे का पानी उबाल कर पी रहे हैं। इस गांव में करीब 45 आदिवासी परिवार रहते हैंं। गांव में बरसात के दिनों में गड्ढे में जमा पानी ग्रामीण पीने को मजबूर हैं। कुकानार क्षेत्र के दर्जनों गांवों में भी इसी तरह का हाल नजर आ रहा है।
लगातार गिर रहा भूजल स्तर
बस्तर क्षेत्र मूल रूप से पठारी स्थलाकृति वाला क्षेत्र है। पठारों में वर्षा जल का बहाव तेजी के साथ होता है। भूजल विशेषज्ञ प्रो. दुर्गापद कुईति के मुताबिक बस्तर में दण्डकारण्य का पठार आर्कियन युगीय शैल समूहों से निर्मित है, जिसमें मध्य छत्तीसगढ़ में पाए जाने वाले धाड़वाल शैल समूह यानी चूना पत्थर वाली संरचना के मुकाबले जल भरण क्षमता काफी कम होती है।
यहां जमीन के अंदर पानी पहुंचाने वाले ज्वाइंट कम पाए जाते हैं जिसकी वजह से जल भरण नहीं हो पाता और भूजल स्तर गिर रहा है। बस्तर में एक दशक पहले तक करीब 19 हजार हेक्टोमीटर भूजल उपलब्ध था जो अब घटकर 17 हजार हेक्टोमीटर के करीब रह गया है। यहां भूजल के दोहन की दर वर्तमान में करीब 13 फीसद है, जो एक दशक पहले 7 फीसद के करीब थी। बिहार में फल्गू नदी का उदाहण लेकर इसे समझा जा सकता है। यहां बारिश में नदी में बाढ़ आती है, लेकिन गर्मियों के दिनों में नदी पूरी तरह सूख जाती है। बस्तर का हाल भी कुछ इसी तरह है।
पानी के लिए कई मीलों का सफर
बस्तर संभाग के कई गांवों में ग्रामीणों को पीने का पानी लाने के लिए दो से पांच मील का सफर करना पड़ रहा है। पौ फटते ही गांव की महिलाएं पानी की तलाश में दूसरे गांवों के लिए निकल जाती हैं। महिलाओं का पूरा दिन पानी जुटाने में ही बीत जा रहा है। पानी की खोज में निकलने वाले ग्रामीण जंगलों में नम जमीन ढ़ूंढकर वहां गड्ढ़ा खोदते हैं जिसे झिर्री कहा जाता है। जगह-जगह झिर्रियों के सहारे ही ग्रामीण अपने जल की जरूरत को पूरा कर रहे हैं।
वन की आग से भी गिर रहा जलस्तर
साल के वनों में लगने वाली आग भी जलस्तर में गिरावट का कारण बस्तर को साल वनों का द्वीप कहा जाता है। यहां बहुत ही सघनता वाले साल के वन हैं। इन वनों में हर साल गर्मी के दिनों में आग लगती है और आग फैलकर एक बड़े हिस्से को प्रभावित करती है। भूजल विशेषज्ञों के मुताबिक साल वनों में लगने वाली आग भी यहां भूजल स्तर में गिरावट की एक बड़ी वजह है।
वैकल्पिक व्यवस्था करेगा प्रशासन
जनपद पंचायत के सीईओ अरुण वर्मा का कहना है कि क्षेत्र में भू-जल स्तर गर्मी के दिनों में काफी नीचे चला जाता है। इस वजह से हर साल यहां जल संकट की स्थिति बनती है। विभाग पूरी तरह अलर्ट है और जिन हैंण्डपंप में जल स्तर नीचे चला गया है, उन्हें सुधारा जा रहा है। पंचायत पदाधिकारियों को कहा गया है कि जल संकट की स्थिति में तत्काल विभाग को सूचना दें, ताकि वैकल्पिक व्यवस्था की जा सके।