ट्रैकिंग के हैं शौकीन या फिर बिताने हैं सुकून के चंद लम्हे; यहां चले आएं, हर ख्वाहिश होगी पूरी

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पार्वती घाटी की कल्पना करते ही जेहन में बरबस ऐसी तस्वीर घूम जाती है। हिमाचल के इस ठिकाने को आप ताउम्र संजोकर रखना चाहेंगे।...

पूर्वी कमालिया:-हिमाचल प्रदेश में कल कल कर बहती पार्वती नदी का वर्णन शब्दों से परे है। अनुपम छटाओं से घिरी इस नदी की घाटी में बसे हर गांव की अपनी खास पहचान है। यदि आप ट्रेकिंग के शौकीन हैं या फिर यूं ही सुकून के चंद लम्हे बिताना चाहते हैं तो पार्वती घाटी एक सुंदर विकल्प है। वो पार्वती नदी के बहते पानी की कल-कल, सूरज की किरणों से चमकता नीलगगन, वो भोले-भाले चेहरों की मुस्कान और टिमटिमाते तारों से सजा आसमान, देवभूमि में ऋषि जमदग्नि का संसार, उस पर ऐसे प्रकृति के रंगों की बौछार, वो रसभरे मीठे फलों का जायका, जल की रानी ट्राउट का मायका, कसोल-रसोल का मायाजाल और पहाड़ी पंछियों के सुरताल, खीरगंगा में ट्रेकर्स की कतार और बीच-बीच में आसमान से बरसती फुहारें, शांतिमय पुलगा, कलगा और बरशैणी, वो बर्फीली चट्टानें सुनाती अनकही दास्तानें..।

पार्वती घाटी की कल्पना करते ही जेहन में बरबस ऐसी तस्वीर घूम जाती है। हिमाचल के इस ठिकाने को आप ताउम्र संजोकर रखना चाहेंगे। गर्मी के मौसम में यहां पर्यटकों की बड़ी तादाद देखी जाती है। इनमें उन लोगों की संख्या ज्यादा है, जो या तो ट्रेकर्स हैं या फिर वे पेशेवर, जो कामकाज की उलझनों से दूर प्रकृति के बीच रहकर नई ऊर्जा से ओतप्रोत होना चाहते हैं।

चुलबुली-झूमती नदी में राफ्टिंग : कल-कल कर बहती पार्वती नदी यहां हरे-भरे पहाड़ों और जंगलों के बीच से गुजरती है। हिमाचल की इस सुंदरतम घाटी की जन्मदाता एवं पालक पार्वती नदी ही है। यह नदी मन तलई ग्लेशियर से जन्म लेकर नन्ही बालिका की तरह उछलती-कूदती पहाड़ों को रौंदती हुई ‘भुंतर’ नामक गांव तक बहती है। वहां से वह ब्यास नदी में मिल जाती है। इस नदी के तेज बहाव को रोक पाना संभव नहीं। पार्वती के बहाव की गति के साथ दौड़ लगाने का साहस करना हो तो कसोल के पास स्थित ‘राफ्टिंग एडवेंचर’ का अनुभव लेना न भूलें।

‘टच मी नॉट विलेज’ : कहा जाता है कि घोर तपस्या के बाद ऋषि जमदग्नि ने भगवान शिव से वरदान में शांत एवं प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर वादियों से घिरी हुई एक घाटी की मांग की थी। आदि योगी शिव ने उन्हें पार्वती घाटी में स्थित एक गुप्त स्थान मलाना जाने को कहा। मलाना आज एक प्रसिद्ध गांव बन गया है। यहां आज भी ऋषि जमदग्नि के मंदिर को इस गांव की सबसे पवित्र जगह के रूप में देखा जाता है। यह मंदिर हिमाचली वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना भी है। हालांकि यहां आने वाले यात्री केवल दूर से ही इस मंदिर की खूबसूरती और उसके भीतर की नक्काशी को देख सकते हैं। क्योंकि इस मंदिर के नजदीक जाना या मंदिर के किसी भी भाग को छूना मना है। इस नियम के कारण विदेशी यात्रियों में मलाना ‘टच-मी-नॉट विलेज’ के नाम से भी प्रख्यात है।

मलाना की अलग-अनूठी भाषा : मलाना एक अनूठा गांव है, जिसकी संस्कृति और भाषा भी अलग है। मलाना की अपनी भाषा है- कनाशी या रक्श। यह भाषा भारत की किसी भी भाषा से नहीं मिलती। गांव के बुजुर्गों की मानें तो यह भाषा उन्हें एक राक्षस बाणासुर से प्राप्त हुई है। कनाशी भाषा मलाना को घाटी के सारे गांवों में अनूठा बनाती है। मलाना की संस्कृति और भाषा अलग होने के कारण यहां के लोग सिकंदर के बिछड़े हुए सैनिकों से अपना संबंध बताते हैं। पर इतिहासकारों के अनुसार, यह तथ्य सही नहीं है।

कसोल है मिनी इजरायल : भुंतर में बस और टैक्सी वाले जब कसोल-कसोल की आवाजें लगाते हैं तो आम भारतीय यात्री भले ही कौतूहल से देखते हों, पर टैटू से सजी गोरी चमड़ी वाले इजरायली, रूसी, यूरोपीय तथा बाकी पाश्चात्य देशों के लोगों के लिए कसोल का नाम ही काफी है। यहां आप जमैका के संगीतकार ‘बॉब

मारले’ के चित्रों तथा उनके सुविचारों से सजी दुकानें देख सकते हैं, जहां युवा पीढ़ी का खूब जमघट होता है। कहते हैं मलाना से नजदीकी और चारों तरफ चरस के उत्पादन तथा सेवन ने बॉब मारले को कसोल की गलियों की ओर खींचा था। बॉब मारले के प्रशंसक ही नहीं, बल्कि आम युवा भी कसोल को ‘गोवा’ के बाद सबसे प्रिय स्थल मानते हैं। कसोल में इजरायली व रूसी भाषा में लिखे पोस्टर्स तथा मेन्यू कार्ड ज्यादा नजर आते हैं। यहां के लोगों ने कसोल में बसे हुए इजरायलियों से उनकी भाषा सीख ली है।

कसोल से जा सकते हैं रसोल : सप्ताहांत में चंडीगढ़ और दिल्ली से आती गाड़ियां कसोल की गलियों को जाम कर देती हैं। ‘पॉप संस्कृति’ के लिए मशहूर कसोल में हर साल पश्चिमी संगीत पर आधारित ‘पार्वती फेस्टिवल’ नामक समारोह होता था, लेकिन चरस सेवन के कारण इसे बंद कर दिया गया। अब गांव की महिलाएं

 

भांग के पौधों को नष्ट करने में प्रशासन की मदद करती हैं। कसोल युवाओं के लिए इजरायली व्यंजन खाने एवं पार्वती के किनारे प्रकृति का आनंद उठाने का स्थल है। जाहिर है भीड़ अधिक है। इसलिए आप यहां से कसोल के जुड़वां गांव रसोल तक ट्रेकिंग करके जा सकते हैं। रसोल भी कम लुभावना नहीं। बता दें कि कसोल की भीड़भाड़ से दूर रसोल में ठहरना एवं खाना-पीना काफी किफायती है।

ट्रेकिंग के शौकीनों का स्वर्ग

सर पास : बर्फ से ढके पहाड़ पर साहसिक ट्रेकिंग घाटी का सबसे रोमांचक ट्रेक हाई सर पास ट्रेक है। यह नगारू नामक कैंप साइट में नगाड़े की तरह गूंजती तेज हवाओं के लिए मशहूर है। बर्फ से ढके पहाड़ों पर सर पास तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं है। ट्रेकिंग गाइड यहां अपने जूतों को बर्फ में पीट कर एक निशान बनाता चलता है, जिन पर उनके पीछे चल रहे लोग चलते हैं। चुनौतियों से भरी इस ट्रेक में साहसिकता का आनंद लेने मई से सितंबर तक सैकड़ों ट्रेकर्स पार्वती घाटी आते हैं। इस ट्रेक का रूट कसोल-ग्रहण- पदरी-मिंग थात्च-नगारु-बिस्केरी-भंडक थात्च-बरशैनी से कसोल तक 9-10 दिन में पूरा किया जाता है।

चंद्रखानी पास

चंद्रखानी पास रोमांचक होने के साथ एक पवित्र तीर्थ-यात्रा भी है। चल गांव के निवासी गर्मियों में इस पास पर मलाना के देव ऋषि जमलू की पूजा कर प्रसाद बांटते हैं। ट्रेक के दौरान भी आप यहां गांव वालों द्वारा स्थापित पत्थर के देवों के दर्शन कर उनकी लोक कथाएं सुन सकते हैं और बर्फ में बैठकर गरमा-गरम चाय और मैगी का लुत्फ उठा सकते हैं। यह ट्रेक जरी से शुरू होकर योस्गो-मलाना से चंद्रखानी पास पहुंचता है।

खीर गंगा और पिन पार्वती पास

कहा जाता है कि पार्वती नदी के दूध जैसे सफेद पानी की वजह से खीर गंगा के नाम से मशहूर इस पवित्र स्थल पर पार्वती पुत्र कार्तिकेय ने सैकड़ों साल तपस्या की थी। पुराणों के अनुसार, देवी पार्वती द्वारा कार्तिकेय के लिए बनाई गई खीर के धरती पर गिरने से खीर गंगा का जन्म हुआ। ट्रेक की थकान के बाद खीर गंगा की भूमि पर स्थित प्राकृतिक गर्म पानी का झरना सारी थकान दूर कर देता है। मान्यता है कि पार्वती घाटी में स्थित गर्म पानी के स्नोत में स्नान आर्थराइटिस, चर्मरोग और अन्य रोगों को दूर कर देता है। खीर गंगा से आगे काफी चुनौतीपूर्ण पहाड़ों से ट्रेकिंग कर पिन पार्वती पास एवं ग्लेशियर तक पहुंचा जा सकता है। यदि आप इस ट्रेक के लिए योजना बनाते हैं तो करीब 17 दिनों की आवश्यकता होगी। इसलिए यहां आने के लिए इतने दिनों की पूरी तैयारी पहले ही करनी होगी।

यह साहसिक ट्रेक कभी नहीं भूल पाएंगे आप

ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका देवी का आश्रय स्थान माना जाता है ग्रहण गांव। यहां जाने तक का कोई पक्का रास्ता नहीं है, पर हिमालयन नेशनल पार्क से गुजरता पथरीला पैदल रास्ता आपको 2-3 घंटे में इस गांव की मनभावन वादियों में ले जा सकता है। 2014 तक केवल सर पास जाने वाले यात्री इस गांव में रात्रि वास करते थे, लेकिन यहां के लुभावने प्राकृतिक दृश्य कई साहसी पर्यटकों को ग्रहण तक ट्रेक करने पर मजबूर करते हैं। यही वजह है कि एक जमाने में ‘होटल’ शब्द से भी अपरिचित इस गांव में आज कई होमस्टे और लॉज हैं।

यदि आप प्रकृति के साथ एकांत के कुछ पल बिताने की चाह रखते हैं तो ग्रहण बेहतरीन विकल्प है। बर्फीले पहाड़ों पर चलते बादलों को ताकते रहें या गांव के बच्चों के साथ वॉलीबॉल व फुटबॉल खेलते रहें, लिंग्डी के अचार के चटकारे लेते रहें या बुरांश के बागानों से ताजा रस का पान करते रहें, ग्रहण की धरती पर आपको शहरों की चकाचौंध फीकी नजर आएगी। साहस और रोमांच के शौकीनों के लिए स्थानीय चरवाहों के साथ मिंग थात्व तक ट्रेकिंग करने का विकल्प भी अनोखा अनुभव हो सकता है। सर पास तक ट्रेक करने के लिए आप एक गाइड, टेंट तथा खाने-पीने की सामग्री लेकर दो दिनों तक बर्फीले पहाड़ों में भी रह सकते हैं और रमणीय सर ताल को देख सकते हैं।

ग्रहण गांव की रोचक यात्रा

ग्रहण पार्वती घाटी का प्रसिद्ध गांव है। यहां संक्रांति के दिन देवी रेणुका के मंदिर में पार्वती घाटी के सभी गांवों से लोग देवी के दर्शन एवं पूजन हेतु इकट्ठा होते हैं। साल भर अचल शांति में डूबे रहने वाले ग्रहण में संक्रांति के दिन विशाल जनसागर उमड़ पड़ता है। यहां आने का मन हो तो आप कसोल से एक गाइड ले सकते हैं या फिर स्थानीय लोगों की मदद से उनसे बातचीत करते हुए भी ग्रहण गांव तक की यात्रा पूरी कर सकते हैं।

कलगा व पुलगा गांव की ठंडी छांव

गर्मियों में चुभती ठंड का मजा और उस पर देवदार के वृक्षों से छनकर आती कोमल धूप में जंगल में छिपे झरनों में नहाना और चूल्हे पर पका स्वादिष्ट भोजन खाना, न कहीं जाने की जल्दी, न कोई परेशानी, बस प्रकृति की गोद में चैन की नींद। व्यवसायीकरण से परे कलगा व पुलगा गांव में जिंदगी कुछ ऐसी है कि कई इंजीनियर, चित्रकार व योग गुरु यहां आ बसे हैं। हर मोड़ पर एक झरना और गरजते जलप्रपातों की प्रतिध्वनि किसी परीकथा सरीखा एहसास कराएगी। कलगा गांव से खीरगंगा की तरफ जाते हुए आपको ऐसे कई जलप्रपात मिलेंगे, जिन्हें देखकर आप अभिभूत हो जाएंगे।

‘ड्रीम कैचेर्स’ व टोपियों की खरीदारी

घाटी का सबसे बड़ा बाजार कसोल में स्थित है और सपनों-सी सुंदर इस नगरी में ‘ड्रीम कैचेर्स’ या सपनों को सच करने वाला एक अनोखा हॉल यात्रियों द्वारा काफी पसंद किया जाता है। रंगबिरंगी जैकेट्स, हेरम और हिमाचली टोपियों से भरे इस बाजार में आपको संगमरमर की कलाकृतियां भी मिलेंगी। यदि आप बॉब मारले के प्रशंसक हैं तो आप कसोल से उनकी थीम पर आधारित टीशर्ट और कुर्तियां भी खरीद सकते हैं।

भांग केक और ट्राउट मछली

पार्वती घाटी में भांग से बने पकौड़े, पेन केक, लड्डू जैसे कई व्यंजन गर्मियों की शुरुआत में हर घर में पकाए जाते हैं। यहां भांग से बने व्यंजनों से ज्यादा नशा नहीं होता, बल्कि उससे विभिन्न रोगों तथा दर्द में राहत मिलती है। हां, यदि आप इन व्यंजनों का स्वाद लेना चाहते हैं तो आपको ये केवल गांवों के घरों में ही मिलेंगे, क्योंकि रेस्टोरेंट्स में ऐसे व्यंजन परोसने की अनुमति नहीं है। कुछ बेहतरीन रेस्टोरेंट्स कसोल में स्थित हैं। ‘एवर ग्रीन’ नाम के रेस्टोरेंट में आपको घाटी के अनोखे स्वाद चखने को मिल सकते हैं। इसके अलावा, कसोल में मिलने वाले मोमोज पूरी घाटी में विख्यात हैं। आपको घाटी के हर गांव में हिमाचली छोले और इजरायली फल हूमूस से लेकर ताजा ट्राउट मछली तक विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का जायका मिल जाएगा। ट्राउट यहां के मीठे पानी के झरनों में मिलने वाली स्वादिष्ट मछली होती है।

इन्हें भी जानें

पार्वती नदी की उप-नदी मलाना के जलसंग्रह से बना मलाना हाइड्रो पॉवर प्लांट 86 मेगावॉट की क्षमता के साथ उत्तर हिमाचल में बिजली की जरूरत पूरी करता है। बरशैणी गांव में निर्माणाधीन पार्वती हाइड्रो पॉवर प्लांट 2100 मेगावॉट के उत्पादन के साथ भारत का सबसे ज्यादा जल-विद्युत उत्पाद करने वाला प्लांट बन जाएगा। नाकथान गांव में स्थित ‘हीलिंग हिमालयाज फाउंडेशन’ विशेष ट्रेक आयोजित करती है। इसमें पर्यावरण प्रेमी जुटते हैं।

कैसे और कब जाएं?

दिल्ली से कुल्लू-मनाली जाने वाली हर बस भुंतर बस अड्डे पर छोड़ेगी। वहां से टैक्सी एवं बस के रूप में कसोल, मणिकर्ण तथा बरशैणी तक सवारी मिल जाती है। पंजाब परिवहन निगम की बसें सीधे कसोल तक भी जाती हैं। नजदीकी हवाई अड्डा भुंतर में स्थित है। मार्च से अक्टूबर तक का समय यहां जाने का आदर्श समय है।

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