हरेला पूजन की तैयारियां शुरू, जानिए क्‍या है अनोखे पर्व की परंपरा 

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RGA News, उत्तराखंड हल्द्वानी

डीएम सविन बंसल ने शहर में जलभराव का कारण बने नालों नहरों और सड़कों को व्यवस्थित करने के लिए एक सप्ताह की मोहलत दी है। ...

हल्द्वानी:- हल्द्वानी जी रया जागि रया, यों दिन मास भेटनै रया...।' यानी कि आप जीते-जागते रहें। हर दिन-महीनों से भेंट करते रहें (दीर्घायु हों)...यह आशीष वचन हरेले के दिन परिवार के वरिष्ठ सदस्य परिजनों को हरेला पूजते हुए देंगे। इस दौरान हरेले के तिनकों को सिर में रखने की परंपरा आज भी कायम है। यही है कुमाऊं का धार्मिक व पौराणिक पर्व हरेला। पहाड़ की समृद्ध लोक परंपरा का एहसास कराता हरियाली का यह पर्व इस वर्ष 17 जुलाई को मनाया जाएगा। घर-घर में इसकी तैयारी जोरशोर से चल रही है।

हरियाली का प्रतीक है त्योहार
ग्रीष्मकाल में पेड़-पौधों सूख चुके होते हैं। इधर, सावन में रिमझिम बारिश के साथ ही बेजान पेड़-पौधे खिल उठते हैं। चारों ओर हरियाली छा जाती है। पंडित नवीन चंद्र जोशी कहते हैं, यही कारण है कि प्राचीन समय से ही इस मौसम में हरेला मनाने की परंपरा रही है। आज के समय में पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से इस त्योहार की महत्ता और बढ़ गई है।

श्रावण माह के हेरेले का है खास महत्व 
कुमाऊं में हरेला पर्व धार्मिक व पौराणिक महत्व का है। श्रावण मास के प्रथम दिन मनाए जाने वाले इस त्योहार को कर्क संक्रांति के रूप से भी जाना जाता है। इस दिन से सूर्य दक्षिणायन हो जाता है और कर्क रेखा से मकर रेखा की ओर बढऩे लगता है। इसलिए इसे कर्क संक्रांति व श्रावण संक्रांति भी कहा जाता है। वैसे तो कुमाऊं  में हरेला पर्व साल में तीन बार चैत्र, श्रावण व आश्विन माह के अंतिम दिन दशहरे पर मनाया जाता है, लेकिन श्रावण मास के हरेले पर्व का खास महत्व है। 

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