RGA न्यूज़ नई दिल्ली
1999 में आज ही के दिन सोनाली बनर्जी देश की पहली महिला मरीन इंजीनियर बनीं थीं। चार साल की कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने यह खिताब हासिल किया। ...
नई दिल्ली :- 20 साल पहले आज ही के दिन सोनाली बनर्जी देश की पहली महिला मरीन इंजीनियर बनी थीं। आज बहुत सी महिलाएं इस क्षेत्र में आगे आ रही हैं। 20 साल पहले कोई महिला एक मरीन इंजीनियर के तौर पर करियर बनाने के बारे में महिलाएं सोचती भी नहीं थीं। ऐसे समय में सोनाली ने ना सिर्फ मरीन इंजीनियर बनने के बारे में सोचा, बल्कि तमाम वर्जनाओं को दरकिनार करते हुए अपने इस सपने को सच भी कर दिखाया।
अपने अंकल से मिली प्रेरणा
सोनाली को वैसे तो बचपन से ही समंदर और जहाजों से लगाव था, लेकिन इस कोर्स को पूरा करने की प्रेरणा उन्हें अपने अंकल से मिली। सोनाली के अंकल नौसेना में थे, जिन्हें देखकर वो भी हमेशा जहाजों पर रहकर काम करना चाहती थीं। अपने इसी सपने को पूरा करने की दिशा में कदम उठाते हुए उन्होंने मरीन इंजीनियरिंग में दाखिला लिया।
चार साल की कड़ी मेहनत के बाद मिली सफलता
सोनाली ने 1995 में IIT की प्रवेश परीक्षा पास की और मरीन इंजीनियरिंग कोर्स में एडमिशन लिया। उन्होंने कोलकाता के निकट तरातला स्थित मरीन इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (MERI) से यह कोर्स पूरा किया। बताया जाता है कि 1949 में भी एक महिला ने मरीन इंजीनियरिंग में दाखिला लिया था, लेकिन किन्हीं वजहों से कोर्स बीच में ही छोड़ दिया था। सोनाली जिस वक्त मरीन इंजीनियर बनीं उस वक्त उनकी उम्र केवल 22 साल थी
जब सोनाली को लेकर कॉलेज के सामने खड़ी हुई समस्या
सोनाली ने एमईआरआई में दाखिला तो ले लिया, लेकिन अकेली महिला स्टूडेंट होने के कारण कॉलेज के सामने एक नई समस्या खड़ी हो गई। कॉलेज प्रशासन को समझ नहीं आ रहा था कि वो एक अकेली महिला स्टूडेंट को आखिर रखेगी कहां। तब तमाम डिबेट और विचार-विमर्श के बाद उन्हें अधिकारियों के क्वार्टर में रहने की जगह दी गई। सोनाली 1500 कैडेट्स में अकेली महिला कैडेट थीं। 27 अगस्त, 1999 को वह भारत की पहली महिला मरीन इंजीनियर बनकर एमईआरआई से बाहर निकलीं।
प्री-सी कोर्स के लिए हुआ था चयन
कोर्स पूरा होने के बाद मोबिल शिपिंग को (Mobil Shipping Co) द्वारा सोनाली का 06 महीने के प्री-सी (Pre-Sea) कोर्स के लिए चयन किया गया। इस दौरान उन्होंने सिंगापुर, श्रीलंका, थाईलैंड, हॉगकॉग, फिजी और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अपनी ट्रेनिंग पूरी की। यह समय उनके लिए काफी कठिन था, क्योंकि इस दौरान वो घर परिवार से मीलों दूर थीं। ऐसी तमाम दिक्कतों का सामना करते हुए आखिरकार वो अपने लक्ष्य तक पहुंच ही गईं।