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RGA न्यूज़ दिल्ली
सड़क मंत्रालय ने राज्य सरकारों को टोल वाले राष्ट्रीय राजमार्गों के समानांतर टोल फ्री स्टेट हाईवे बनाने के खिलाफ आगाह किया है।...
नई दिल्ली:- सड़क मंत्रालय ने राज्य सरकारों को टोल वाले राष्ट्रीय राजमार्गों के समानांतर टोल फ्री स्टेट हाईवे बनाने के खिलाफ आगाह किया है। मंत्रालय का कहना है कि इससे सड़क बनाने वाली कंपनियों को नुकसान हो रहा है और बैंक उन्हें कर्ज देने में आनाकानी कर रहे हैं। ऐसा करने वाले राज्यों में असम, केरल, तमिलनाडु और गुजरात शामिल है।
कई राज्य सरकारों ने राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल के खिलाफ जनता के विरोध को देखते हुए समानांतर टोल फ्री स्टेट हाईवे (एसएच) का निर्माण करा दिया है या कराने की घोषणा की है, जबकि कुछ राज्यों ने उन एसएच को एनएच में तब्दील करा लिया है जो एनएच के समानांतर हैं। इससे नेशनल हाईवे का निर्माण करने वाली कंपनियों के साथ-साथ एनएचएआइ को भी नुकसान हो रहा है। दरअसल, जहां-जहां एनएच के आसपास एसएच का विकल्प उपलब्ध है वहां लोग टोल से बचने के एसएच का इस्तेमाल करना पसंद करते हैं।
सड़क मंत्रालय को ये चेतावनी इसलिए देनी पड़ी है, क्योंकि जहां एक तरफ पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले सेस से एकत्रित इंफ्रास्ट्रचर फंड में उसकी हिस्सेदारी कम हो गई है। वहीं दूसरी तरफ नए हाईवे बनने के हिसाब से टोल संग्रह में इजाफा नहीं हुआ है। इसके अलावा टीओटी स्कीम के तहत एकमुश्त रकम के बदले कुछ एनएच पर टोल वसूली का अधिकार निजी कंपनियों को दिए जाने का भी टोल राजस्व पर असर पड़ा है, जबकि भारतमाला परियोजना के कारण सड़क निर्माण के लक्ष्यों में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हो गई
टोल वाले एनएच के समानांतर बिना टोल वाले एसएच विकसित करने का मुद्दा पिछले दिनो सड़क निर्माता कंपनियों ने सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के साथ आयोजित एक परिचर्चा में भी उठाया था, जिस पर गडकरी ने भी माना था कि कुछ राज्य सरकारें ऐसा कर रही हैं। यही नहीं, उन्होंने ये भी कहा था कि असम और केरल की सरकारों को उनके मंत्रालय की ओर से चेतावनी दी गई है कि अगर एचएच के समानांतर एसएच बनाना जारी रखा तो उनके यहां एनएच का निर्माण बंद कर दिया जाएगा। इसी के बाद एनएचएआइ ने भी इस मुद्दे को राज्यों के साथ उठाना शुरू किया है।
एनएचएआइ के अधिकारियों का कहना है कि टोल भुगतान के बगैर सड़क के उपयोग को बढ़ावा देने की राज्यों की घोषणाओं से संपूर्ण सड़क निर्माण कार्यक्रम में बाधा पड़ सकती है। क्योंकि सड़क बनाने वाली कंपनियां टोल के जरिए ही अपनी लागत और लाभ निकालती हैं। यदि कंसेशन एग्रीमेंट के मुताबिक, टोल संग्रह नहीं हुआ तो उन्हें घाटा होगा और फिर अगली परियोजनाओं के लिए कोई बैंक उन्हें कर्ज नहीं देगा। यदि राज्यों ने बात नहीं मानी तो उसे स्टेट सपोर्ट एग्रीमेंट के अनुसार कानूनी कदम उठाने को बाध्य होना पड़ेगा।