मंदी के बावजूद फाइनेंशियल सिस्टम स्टेबल : आरबीआइ

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रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू मोर्चे पर चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में मांग में कमी बनी रही। ...

 नई दिल्ली :-  रिजर्व बैंक ने कहा है कि मंदी के बावजूद देश के फाइनेंशियल सिस्टम में स्थिरता बनी हुई है। बैंक का मानना है कि साल 2019-20 की दूसरी तिमाही में घरेलू मोर्चे पर मांग कमजोर रही है। अर्थव्यवस्था से जुड़े हर क्षेत्र में जोखिम बने हुए हैं, लेकिन अगले एक साल में बैंकिंग सेक्टर में सुधार की गुंजाइश बनी हुई है।

रिजर्व बैंक ने अपनी फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट में कहा गया है कि स्ट्रैस्ड असैट्स को निपटाने के मामले में इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड के जरिए निरंतर स्थिति में सुधार हो रहा है। हालांकि रिपोर्ट में बैंक क्रेडिट की रफ्तार धीमी रहने पर चिंता जतायी गयी है। रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर 2019 में सरकारी बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ 8.7 परसेंट रही जो पिछले साल के मुकाबले कम है। लेकिन निजी बैंकों का प्रदर्शन इस मामले में बेहतर रहा है। इन बैंकों ने 16.5 परसेंट की वृद्धि बैंक क्रेडिट में दर्ज की है। रिजर्व बैंक के मुताबिक सितंबर 2019 में सरकारी बैंकों की कैपिटल एडिक्वेसी रेश्यो भी सुधर कर 15.1 परसेंट रही है।

ऐसा बैंकों में रिकैपिटलाइजेशन होने की वजह से हुआ। जहां तक बैंकों के एनपीए का सवाल है मार्च से सितंबर 2019 की अवधि में एनपीए का रेश्यो 9.3 परसेंट पर बना रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू मोर्चे पर चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में मांग में कमी बनी रही। पूंजी प्रवाह का रुख भी सकारात्मक बना हुआ है। अलबत्ता निर्यात को लेकर स्थिति चिंताजनक बनी हुई है।

आरबीआइ के मुताबिक वैश्विक स्तर पर मंदी के चलते देश के निर्यात में कमी बनी हुई है। लेकिन कच्चे तेल की कीमतों में नरमी के चलते सरकार का करंट एकाउंट डेफिसिट नियंत्रण में है। गौरतलब है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी की दर छह साल के न्यूनतम 4.5 परसेंट पर आ गई है। आर्थिक विकास की धीमी रफ्तार को देखते हुए रिजर्व बैंक को निरंतर ब्याज दरों में कमी करनी पड़ी है। रिजर्व बैंक ने सभी बैंकों से कर्ज की दर को भी रेपो रेट से जोड़ने का निर्देश दिया जो अब पांच परसेंट है।

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