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RGA:- न्यूज़
नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित अन्य स्वास्थ्य संगठनों का मानना है कि कोविड-19 ने मनुष्य के लिए मानसिक सेहत की चुनौती को और बढ़ा दिया है। हालांकि जितनी सजगता की जरूरत शरीर को बीमारियों से दूर रखने की होती है, मन की सेहत को उतना ही अनदेखा किया जाता है। मन को बेहतर बनाए रखने में हमसे कहां हो जाती है चूक? क्या होनी चाहिए हमारी प्राथमिकताएं? विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्टूबर) के मौके पर विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर बता रही हैं सीमा झा..
एक दिन आपदा का अंत अवश्य होगा। पर यह कब खत्म होगा? हम इससे उबरने के लिए लगातार यूं ही खुद को कब तक खींचते रहेंगे?’ पूछते हैं कारोबारी रोहन राठी। अनलॉक के बाद वे काम पर तो जाने लगे हैं, पर बंदिशों का जो एहसास घर पर था, वह अब भी हर जगह हावी है। मानसिक थकान ऊब के साथ-साथ मन में लगातार बेचैनियां पैदा कर रही है। रोहन अपने इन एहसासों को पत्नी श्रीजा से बांटना चाहते हैं, पर नहीं कह पाते।
श्रीजा शिक्षिका हैं। ऑनलाइन कक्षाओं के इस दौर का अनचाहा दबाव उन्हें भी असहज कर रहा है, पर वह भी इस पीड़ा को मन में ही दबाए चल रही हैं। ठीक-ठीक बताना मुश्किल लग रहा है। घर पर बुजुर्ग मां-बाप और दोनों बच्चों को भी देखकर लगता है, वे भी इस समय सबसे मुश्किल दौर से जूझ रहे हैं, जहां कहने को कितना कुछ है, पर किसी से कह नहीं पा रहे हैं।
संभव है, यह कहानी आपको अपनी-सी जान पड़ रही हो। इस बारे में हिंदू राव अस्पताल, दिल्ली के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. एलसी सुंदा कहते हैं, ‘जिस तरह से वायरस ने मन पर गहरा आघात किया है, वहां एंग्जायटी अब हर उम्र की आम समस्या बनती जा रही है। यह एक चेतावनी भी है कि यदि हम शरीर की तरह मन की सेहत को लेकर सजग नहीं हुए तो हमारी मुश्किलें अधिक बड़ी बन सकती हैं।’ यदि आपके सब्र और संकल्प का बांध टूट रहा है, तो याद रखें, यह मनोदशा है, जो और खराब हो सकती है। हां, यह इस पर निर्भर है कि आप अपने मन का खयाल रखते हैं या नहीं और इसकी सेहत की बेहतरी व मजबूती के लिए किस तरह की रणनीति अपनाते हैं।
चौतरफा घिर जाने की चुनौती
‘कभी-कभी लगता है कि हमें कैद कर दिया गया है अपने ही घर में, यह एहसास बाहर आकर भी कम नहीं होता।’ कहती हैं दीपिका सिंह। वह एक गृहिणी हैं। वह वही कह रही हैं, जो इन दिनों अधिकतर लोगों को महसूस हो सकता है। पर ऐसे में आप उनके बारे में सहज कल्पना कर सकते हैं, जिन पर आपदा ने सीधा प्रहार किया है यानी जिन्होंने नौकरियां गंवाई हैं, कोरोना से उबरने के बाद भी जो सामाजिक बहिष्कार की स्थितियां ङोल रहे हैं या व्यवसाय बंद हो जाने के कारण विकल्प को लेकर परेशान हैं।
अलग-अलग कारणों के चलते मानसिक सेहत की चुनौती से समाज पहले ही जूझ रहा था, पर अब जैसा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेताया है कि कोविड-19 ने पहले से मौजूद इस चुनौती को और मुश्किल बनाने का काम किया है। इस चिंता की चर्चा हाल ही में अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोध-पत्र में भी की गई है।
कोरोना महामारी को लेकर डर और अनिश्चितता मानसिक सेहत को और ज्यादा खराब करने में ईंधन का काम कर सकती है। नौकरी के संकट, आय की असुरक्षा, स्कूल बंद होने और परिवारों पर चौतरफा दबाव के बीच जिंदगी आगे तो बढ़ रही है, पर इसके लिए कीमत भी चुका रहे हैं लोग। डॉ. सुंदा के मुताबिक, इस समय बीमार लोगों की देखभाल, घरेलू हिंसा की स्थिति और हर वक्त वायरस से संक्रमित होने का डर भी है।
साझा करें मन की बातें
किसी की बात पर यकीन न करने, एकाग्र न हो पाने, छोटी-छोटी बातें दिल पर लगने जैसी परेशानियों से घिरे हैं आप? यदि हां, तो इसे साझा क्यों नहीं करते? अमेरिकन सेंटर ऑफ डिजीज सेंट्रल ऐंड प्रिवेंशन के अनुसार, इस समय ज्यादातर लोग भावनात्मक रूप से खुद को कमजोर महसूस कर रहे हैं। यदि आपके साथ भी ऐसा है, तो क्यों नहीं इसे दूसरों, खासकर अपने करीबियों से साझा कर रहे हैं? यही वह सवाल है, जो मानसिक सेहत की राह में बड़ी बाधा बना हुआ है।
जाने-माने मनोचिकित्सक डॉक्टर समीर पारीख कहते हैं, जिस तरह सर्दी, खांसी या बुखार आदि की स्थिति में हम सतर्क हो जाते हैं। दवा लेते हैं, चिकित्सक के पास जाते हैं, उसी तरह मन की परेशानियों को लेकर भी सतर्क हो जाएं तो मानसिक सेहत को लेकर एक बड़ी अड़चन दूर हो सकती है। वहीं, डॉक्टर सुंदा मानते हैं, ‘मानसिक सेहत को लेकर डॉक्टर के पास जाना आज के आधुनिक समय में भी एक सामाजिक लांछन माना जाता है। आज भी ज्यादातर लोग अपनी मानसिक परेशानी बताने में हिचकते हैं कि कहीं लोग कुछ गलत न समझ लें।’
वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉ. पंकज कुमार झा की मानें तो सच एक ही है कि यदि आप मन को लेकर सतर्क नहीं हैं, इससे जुड़ी परेशानियों को गंभीरता से नहीं लेते हैं, तो जटिल और जानलेवा शारीरिक बीमारियों को भी अधिक समय तक खुद से दूर नहीं रख पाएंगे। एम्स, दिल्ली से जुड़े रहे वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सुधीर खंडेलवाल के अनुसार, खुद के प्रति जिम्मेदारी उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी समाज या परिवार के लिए हमारी चिंता। आज ही यह खूबसूरत पहल करें।
अनचाहे बोझ को उतार फेंकें, मन को आराम दें, इसे मुक्त करें
कभी मन को भी अवकाश दें अर्थात वह समय जब आपका मन पूरी तरह से बाहरी दबावों से मुक्त हो। दरअसल, हम काम करें या मनोरंजन, उस दौरान हमारा दिमाग बाहरी प्रभावों में जकड़ा हुआ होता है। यहां तक कि जब आराम भी कर रहे होते हैं तो सोशल मीडिया, टीवी या फिर खयालों में खोये रहने के कारण यह दबाव कम नहीं होता। इससे शरीर में जकड़न रहती है और सांसों की गति असंतुलित। इसलिए दिनचर्या में कुछ समय खुद को खुला छोड़कर देखें। यह अवधि तीस सेकंड से तीन मिनट तक हो सकती है, जब आप अपनी चेतना को बाहरी प्रभाव से मुक्त करने का प्रयास करें।
मन की सेहत में निवेश करके समस्याओं से पाएं मुक्ति
एंग्जायटी ‘साइकोसिस’ भी इन दिनों एक बड़ी समस्या बन रही है। यह वास्तविकता को ठीक तरह से न समझने के कारण होता है। इससे यकीनन हम खुद को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं, पर ऐसा तभी होगा जब आप मन को लेकर सजग न हों। शेयर नहीं करेंगे। चुप हो जाएंगे। एक मनोचिकित्सक होने के नाते और विश्व स्वास्थ्य संगठन आदि के साथ काम करने के अनुभव के आधार पर कहना चाहूंगा कि ऐसी कोई परेशानी नहीं, जो ठीक नहीं हो सकती। वहीं मन अच्छा न हो तो जीवन की अच्छी से अच्छी स्थिति भी अचानक बिगड़ सकती है। मन को ठीक रखने के लिए इसमें निवेश करें। दिनचर्या को लेकर गंभीरता बरतें। उन बाधाओं को पहचानें, जो आपको कमजोर करती हैं। धीरे-धीरे आप खुद देखेंगे कि आपके मूड और आपकी ऊर्जा पर कितना सकारात्मक असर पड़ रहा है।
इस तरह से मिल सकती है शांति
- नियमित सांस से जुड़ी क्रिया।
- प्रकृति के बीच रहें। धूप, खुली हवा में कुछ समय गुजारें।
- नृत्य करें या बस यूं ही अपने आंगन, पार्क आदि में कुछ देर टहलें।
- धीमी गति का शांत, मधुर, मन को सुकून देने वाला संगीत सुन सकते हैं।
खुद का ध्यान रखें, न करें ये गलतियां
- सुबह जगते ही फोन या गैजेट का इस्तेमाल।
- बिना ब्रेक लिए लगातार घंटों काम में लगे रहना।
- मास्क और सैनिटाइजर-साबुन के साथ सुरक्षा नियमों को लेकर लापरवाही बरतना। खतरे को हल्के में लेना।
काम की बातें, जिन्हें जानना है जरूरी
- मन में अधिक समय तक कोई बात रखना मुश्किल हो तो उसे लिखें। बेहतर होगा किसी के साथ बांट लें। याद रखें, बांटने से दुख कम होता है और खुशियां बढ़ती हैं।
- मन की सेहत को लेकर जो पहल करते हैं, जो इलाज कराना चाहते हैं, उनसे सवाल न करें, बल्कि उन्हें समानुभूतिपूर्वक सुनें। यह उनकी सबसे बड़ी मदद हो सकती है।
- याद रखें, विश्वसनीय तथ्यों, सूचनाओं के जरिए आप संक्रमण के डर को कम कर सकते हैं। देश और दुनिया के आधिकारिक सूचना स्नेतों पर ही भरोसा करें। सोशल मीडिया पर फैली भ्रामक सूचनाओं से प्रभावित न हों।