बोफोर्स घोटाले पर सीबीआइ के पूर्व निदेशक राघवन ने अपनी किताब में उठाए कांग्रेस पर सवाल

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RGAन्यूज़

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) के पूर्व निदेशक आरके राघवन की किताब में दावा।

नई दिल्ली:-केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) के पूर्व निदेशक आरके राघवन की किताब से बोफोर्स का जिन्न एक बार फिर जगने के आसार पैदा हो गए हैं। अपनी आत्मकथा 'ए रोड वेल टै्रवेल्ड' में राघवन ने बोफोर्स तोप सौदे में दलाली की जांच को रफा-दफा करने के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। कहा है कि तथ्यों को उजागर न करने के कारण मामला अदालत में टिक नहीं सका और आरोपी बरी हो गए। स्वीडन की बोफोर्स कंपनी के साथ सन 1986 में हुए 1,437 करोड़ रुपये के तोप सौदे में 64 करोड़ रुपये की दलाली ली गई थी।

दलाली की यह रकम लेने में कांग्रेस नेताओं, सरकारी अधिकारियों और हथियार दलालों के नाम सामने आए थे। भ्रष्टाचार के इस मामले के चलते तत्कालीन राजीव गांधी सरकार सत्ता से दूर हो गई थी। सीबीआइ ने चार जनवरी, 1999 से 30 अप्रैल, 2001 के बीच मामले की जांच की थी, उस समय एजेंसी के निदेशक राघवन थे। अपनी किताब में उन्होंने मामले में कांग्रेस की भूमिका पर सवाल तो उठाए हैं लेकिन यह पुष्ट नहीं किया है कि पार्टी के पास किस रूप में और किस नेता को दलाली का धन मिला। मामले में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के शामिल होने के भी आरोप लगे थे। 

राघवन ने लिखा है कि बोफोर्स मामला उदाहरण है कि किस प्रकार से एक सही मामले को सरकार पटरी से उतार देती है और सही आरोप दम तोड़ देते हैं। इस दौरान बहुत सी बातें जनता से छिपा ली जाती हैं। ..और इस सबके लिए जांच एजेंसी सीबीआइ को जिम्मेदार ठहराया जाता है। हालांकि कांग्रेस के पीवी नरसिंह राव 1991 से 1996 तक और उसके बाद 2004 से 2014 तक डॉ. मनमोहन सिंह की सरकारें रहीं। 1990-91 में कुछ महीने के लिए चंद्रशेखर की सरकार भी रही तो उसे कांग्रेस का बाहर से समर्थन रहा। स्वीडिश रेडियो और हिंदू अखबार के रहस्योद्घाटनों से उपजे जन विरोध के बीच 1988 में सीबीआइ ने मामले की जांच शुरू की थी। लेकिन यह एक तरह की लीपापोती थी। उस समय केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी।

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