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RGA न्यूज़
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली (फाइल फोटो
नई दिल्ली। एक क्रिकेटर के तौर पर विराट कोहली का कोई जोड़ नहीं है। बल्लेबाजी, फील्डिंग, फिटनेस और आक्रामकता में उनका कोई सानी नहीं है। वह वर्तमान समय में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर हैं लेकिन कप्तान के तौर पर वह चोकर साबित हो रहे हैं। वह चाहे टीम इंडिया की कप्तानी कर रहे हों या रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी) की, बड़े टूर्नामेंट में उनके फैसले गलत साबित होते हैं। उनके चाहने वाले तर्क दे सकते हैं कि उन्होंने भारत को 89 में 62 वनडे, 55 में 33 टेस्ट जिताए हैं।
वह भारत को सबसे ज्यादा टेस्ट विजय दिलाने वाले कप्तान हैं। उन्होंने अंडर-19 विश्व कप में भी जीत दिलाई थी। ये सारी बातें सही हैं लेकिन यह भी सच है कि वह बड़े टूर्नामेंट में जाकर फिसड्डी हो जाते हैं। वह टीम इंडिया को एक भी आइसीसी ट्रॉफी नहीं दिला पाए हैं। वह आरसीबी की आठ साल से कप्तानी कर रहे हैं और एक बार भी चैंपियन नहीं बने हैं। आइपीएल में किसी भी कप्तान को बिना ट्रॉफी दिलाए इतने लंबे समय तक कप्तानी करने का मौका नहीं मिला है।
टीम चयन है विराट की समस्या : अगर विराट की टीम मैदान पर मैच हारे तो कोई दिक्कत नहीं होती। जब वह कप्तानी करते हैं तो उनकी टीम ड्रेसिंग रूम के प्रदर्शन से ही हार जाती है। वह ऐसे अंतिम एकादश का चयन करते हैं जो मैदान पर उतरने से पहले ही हारा हुआ लगता है। अगर वह अंतिम एकादश भी अच्छा चुन लेते हैं तो टॉस में गलत फैसला कर लेते हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ। सनराइजर्स हैदराबाद के खिलाफ शुक्रवार को एलिमिनेटर जैसे महत्वपूर्ण मुकाबले में उन्होंने अंतिम एकादश में चार बदलाव किए जबकि सनराइजर्स हैदराबाद ने सिर्फ एक बदलाव किया वह भी मजबूर होकर क्योंकि रिद्धिमान साहा फिट नहीं थे। ऐसा लगता है कि विराट को अंतिम एकादश बदलने में मजा आता है।
वह टेस्ट मैचों में लगातार एकादश बदलने का रिकॉर्ड भी बना चुके हैं। वर्ष 2019 में भारत के विश्व कप हारने की वजह सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड का शानदार प्रदर्शन नहीं था बल्कि विराट के खराब फैसलों के कारण ही भारतीय टीम 240 रन के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाई थी। उस मैच में महेंद्र सिंह धौनी को दिनेश कार्तिक और हार्दिक पांड्या के बाद सातवें नंबर पर बल्लेबाजी के लिए भेजा गया। उस अंतिम एकादश में चार विकेटकीपर केएल राहुल, धौनी, कार्तिक और रिषभ पंत खेल रहे थे
वह तो आइसीसी का फॉर्मेट ऐसा था कि विराट की टीम सेमीफाइनल तक पहुंच गई वर्ना यह टीम पूरे टूर्नामेंट में अपने चौथे नंबर के बल्लेबाज की खोज में ही लगी रही जबकि यह खोज 2017 में हुई आइसीसी चैंपियंस ट्रॉफी से शुरू हुई थी। लंदन के ओवल मैदान में चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में भी विराट के फैसलों के कारण ही भारत को पाकिस्तान के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा था।
यहां विराट ने टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी का फैसला किया था और पाकिस्तान ने पहले खेलते हुए चार विकेट पर 338 रन बना लिए थे। दबाव में भारतीय टीम 158 रनों पर ऑलआउट हो गई थी। मुझे आज भी याद है कि जब उस मैच को कवर करने के बाद बाहर निकल रहा था तो एक पाकिस्तानी प्रशंसक ने कहा कि अपने कप्तान को समझाइये कौन इतने बड़े मैच में टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी करता है? मेरे पास उस कुटिल मुस्कान वाले पाकिस्तानी के सवाल का कोई जवाब नहीं था। मैं बस यह सोचता रहा कि जो ये आम प्रशंसक सोच रहा है वह इतनी बड़ी टीम का कप्तान, कोच और सहयोगी स्टाफ क्यों नहीं सोच सका?
और भी खराब फैसले : ऐसा नहीं है कि विराट सिर्फ बड़े टूर्नामेंट में ही गलत फैसलों से टीम इंडिया को फंसाते हैं। अगर वह ऐसे फैसले नहीं करते तो भारतीय टीम 2018 में दक्षिण अफ्रीका में तीन मैचों की टेस्ट सीरीज और इंग्लैंड में पांच मैचों की टेस्ट सीरीज जीत सकती थी। ये दो सीरीज तो विराट और टीम प्रबंधन के खराब फैसलों के लिए ही जानी जाती हैं। इसके पीछे एक बड़ी समस्या है। धौनी के समय टीम का चयन इस आधार पर होता था कि किन-किन खिलाडि़यों को चुना जाना है और अब इस आधार पर चयन होता है कि किन-किन को नहीं चुनना है। जब नापसंद लोगों को बाहर कर दिया जाता है उसके बाद बचे हुए खिलाडि़यों में से टीम का चयन होता है। 2019 विश्व कप में इसीलिए अंबाती रायुडू नहीं गए थे और विजय शंकर को मौका मिला था। कुछ ऐसा ही आरसीबी के साथ भी है।
नंबर गेम-
-2013 में कोहली ने आरसीबी की कप्तानी संभाली लेकिन तब से अब तक आठ सत्र में केवल तीन बार ही टीम प्लेऑफ तक पहुंच सकी। 2016 में टीम जरूर उपविजेता रही लेकिन पिछले दो सत्र में यह टीम अंक तालिका में अंतिम टीमों में शामिल रही
-2017 में चैंपियंस ट्रॉफी और 2019 में विश्व कप में भी विराट की कप्तानी में भारतीय टीम खिताब नहीं जीत सकी