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RGA न्यूज़
NSE यानी नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना 1972 में हुई थी।
अखबार न्यूज पोर्टल और टीवी पर Sensex में तेजी और गिरावट के बारे में आप अक्सर सुनते होंगे। बहुत संभव है कि आपने शेयरों की ट्रेडिंग के बारे में सुना हो लेकिन सेंसेक्स और निफ्टी को लेकर आपके मन में तमाम संशय हो।
नई दिल्ली। अखबार, न्यूज पोर्टल और टीवी पर Sensex में तेजी और गिरावट के बारे में आप अक्सर सुनते होंगे। बहुत संभव है कि आपने शेयरों की ट्रेडिंग के बारे में सुना हो लेकिन सेंसेक्स और निफ्टी को लेकर आपके मन में तमाम संशय हो। ऐसे में हम आज इस बात को लेकर चर्चा करेंगे कि आखिर सेंसेक्स और निफ्टी क्या होता है। इसके गिरने या चढ़ने का मतलब क्या होता है। इसमें तेजी या गिरावट का आधार क्या होता है। साथ ही हम BSE, NSE और बाजार पूंजीकरण के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।
Sensex और Nifty के बारे में किसी भी तरह की जानकारी प्राप्त करने से पहले आपको यह जानना होगा कि BSE और NSE क्या होता हैः BSE को पहले बंबई स्टॉक एक्सचेंज के नाम से जाना जाता था। यह मुंबई के दलाल स्ट्रीट में स्थित प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज है। इसकी स्थापना 1875 में हुई थी और यह एशिया का सबसे पुराना शेयर बाजार है।
दूसरी ओर, NSE यानी नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना 1972 में हुई थी। BSE पुराना स्टॉक एक्सचेंज है लेकिन बड़ी संख्या में दैनिक ट्रेड और अधिक टर्नओवर की वजह से हाल के समय में NSE का महत्व काफी अधिक हो गया है।
क्या है Sensex, Nifty
BSE और NSE स्टॉक एक्सचेंज हैं, जहां कंपनियों के शेयरों की लिस्टिंग और खरीद-बिक्री होती है। वहीं, Sensex और Nifty इसके प्रमुख संकेतक हैं। इसका मतलब है कि इससे शेयर बाजार के सेंटिमेंट का पता चलता है। हालांकि, यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि सेंसेक्स और निफ्टी में उतार-चढ़ाव हर शेयर के उतार-चढ़ाव को नहीं दिखाते हैं। हालांकि, इससे कुल-मिलाकर ये पता चलता है कि बाजार का माहौल क्या है। Sensex 30 सबसे बड़ी कंपनियों के शेयरों पर आधारित सूचकांक होता है। दूसरी ओर, Nifty 50 सबसे बड़ी कंपनियों पर आधारित सूचकांक है।
अब सवाल उठता है कि इन संकेतकों की जरूरत क्यों होती है। इसे आप इस तरह समझ सकते हैं कि BSE पर करीब 5,000 से अधिक कंपनियां लिस्टेड हैं। ऐसे में किसी भी निवेशक को सभी कंपनियों के शेयरों की रियल टाइम में चल रही कीमत को चेक करना कत्तई आसान नहीं रहता। ऐसे में लोगों की सुविधा के लिए यह सूचकांक बनाया जाता है। हालांकि, यह जरूरी नहीं है कि Sensex ऊपर रहने पर आपका पोर्टफोलियो भी हरे निशान में होगा।
कैसे तय होता है कि कौन-सी कंपनियां सेंसेक्स और निफ्टी में होंगी शामिल
यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर किस आधार पर सेंसेक्स या निफ्टी में किसी कंपनी को शामिल किया जाता है और क्यों कोई कंपनी सेंसेक्स में शामिल होती है या बाहर हो जाती है। किसी भी कंपनी के फ्री फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन के आधार पर यह गणना की जाती है।
इसके लिए यह समझना जरूरी है कि मार्केट कैपिटलाइजेशन या बाजार पूंजीकरण क्या होता है। इसकी गणना कंपनी के शेयरों की कुल संख्या और एक शेयर की कीमत को गुणा करके की जाती है। उदाहरण के लिए किसी कंपनी के एक शेयर की कीमत 10 रुपये है और उसके शेयरों की कुल संख्या 100 है तो कंपनी का बाजार पूंजीकरण 1000 रुपये का होगा। वहीं, फ्री फ्लोट मार्केट कैप की गणना के लिए कुल पूंजीकरण में से कंपनी के प्रमोटर या मालिक की हिस्सेदारी वाले मार्केट कैप को घटा दिया जाता है।
इसके बाद सबसे बड़ी 30 कंपनियों के वेटेज के आधार पर सेंसेक्स और 50 कंपनियों को निफ्टी में शामिल किया जाता है। ऐसे में जब किसी एक तिमाही में किसी एक कंपनी के शेयरों की कीमत नीचे आती है तो उसके बाजार पूंजीकरण में भी कमी आती है और इसी अवधि में किसी और कंपनी का फ्री फ्लोट मार्केट कैप ज्यादा होता है तो उसे सेंसेक्स या निफ्टी में जगह दे दी जाती है।
इस तरह सेंसेक्स और निफ्टी में शामिल कंपनियों के शेयरों के भाव में कमी आती है तो इन सूचकांकों पर उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है।