चौंकिए मत..ये किसी दूसरे देश या प्रदेश का नजारा नहीं, बल्कि आपकी दिल्ली का ही है

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RGAन्यूज़

ग्रेटर फ्लैमिंगों भी दिल लगा बैठे हैं।

दिल्ली की वादियां चौंकिए मत..ये किसी दूसरे देश या प्रदेश का नजारा नहीं बल्कि आपकी दिली..दिल्ली का ही है। जहां ग्रेटर फ्लैमिंगों भी दिल लगा बैठे हैं। इस बार इन्हें भी यहां की आबोहवा खूब रास आई। सौजन्य बलबीर अरोड़ा

नई दिल्‍ली/ गुडगांव  सरहदें भी छोटी हैं, पक्षियों की उन्मुक्त उड़ान को। तभी तो परिंदे भौगोलिक दीवारों से कहीं ऊंची उड़ान भरते हुए आ पहुंचते हैं दिल्ली- एनसीआर को। गुलजार करते हैं इस माहौल को। कई तरह के पक्षी होते हैं जो यहां एक साथ मिलकर प्रकृति के खूबसूरत नजारों से रूबरू करवाते हैं। पर्यावरण में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं।

दिल्ली बर्ड क्लब से जुड़े पंकज गुप्ता का कहना है कि इस समय दिल्ली के वातावरण में पक्षियों की चहचहाहट, उनके रंग और उनकी मौजूदगी का आभास दिल्ली को जीवंत बनाता है। इस समय प्रवासी मेहमान पक्षियों का आगमन होता है और देसी पक्षियों के चेहरों पर उस खुशी को करीब से महसूस किया जा सकता है। इस समय प्रवासी पक्षियों के साथ-साथ पैसेज यानी की राही परिंदे और ब्रीर्डस यानी की प्रजनन करने वाले पक्षी यहां पर एक साथ नजर आते हैं। पैसेज पक्षी असल में उत्तरी इलाकों से आते हैं और दक्षिण तक जाते हैं। यह हफ्ते या दो हफ्ते तक यहां रुकते हैं और चले जाते हैं।

किंगफिशर, ग्रीन बार्बेट और कठफोड़वा.. पहचानते हैं इन पक्षियों को ये तो दिल्ली के निवासी पक्षी हैं। हरे भरे इलाकों में बारह मास नजर आते हैं

इस बार दुलर्भ पक्षियों का रहा डेरा : दिल्ली के पक्षी प्रेमी तो बिग बर्ड डे भी मनाते हैं। इस बार 21 फरवरी, रविवार को बर्ड वाचर्स दूरबीन और कैमरों से लैस होकर पक्षियों के झुंड वाले स्थानों पर निकले। जहां सामान्य से लेकर दुर्लभ पक्षियों तक दर्शन हुए। दिल्ली बर्ड फाउंडेशन समूह के सदस्य पंकज गुप्ता के मुताबिक नार्दर्न लैप ¨वग, क्रेक और वाटर रेल जैसे पक्षी देखने को मिले। हालांकि फरवरी महीने में कम बरसात की वजह से इस बार पक्षियों की गतिविधियां कम नजर आई। हां, कुछ दुर्लभ पक्षी जरूर नजर आए हैं लेकिन उनकी संख्या में कमी है। बलबीर अरोड़ा के मुताबिक कोविड महामारी का असर भी मान सकते हैं कि इस बार दुर्लभ प्रजातियों के पक्षी नजर आए

घाट-घाट पर पक्षियों का है डेरा : बिग बर्ड डे के नोएडा प्रभारी बलबीर अरोड़ा के मुताबिक अधिकतर पक्षियों का अनुकूलन उन स्थानों पर होता है जहां पर जल स्नोत होते हैं। ऐसे में अगर आप पक्षी प्रेमी हैं और सुकून के चंद पलों को जी भरकर जीना चाहते हैं तो ओखला पक्षी अभयारण्य, धनौरी, असोला, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, भोंडसी नेचर पार्क, सुल्तानपुर लेक, नोएडा स्थित यमुना बैंक, सूरजपुर वेटलैंड और अरावली जैसे स्थानों का रुख कर सकते हैं, इन स्थानों पर वर्ष भर पक्षियों की गतिविधियां नजर आती हैं।

 

पंखों को फैला चलों उड़ चलें उन्मुक्त गगन में..

दुर्लभ पक्षियों से संवरे अभयारण्य: इस समय दिल्ली की फिजा में जो परिंदे अपने पर फैला रहे हैं उनमें मुख्य रूप से यूरेसियन स्पैरहाक, बाज, कामन केस्ट्रल, बूटेड ईगल, ग्रेटर स्पाटेड बाज, लंबे पैरों वाले बजार्ड, काले गिद्ध, मार्च हैरियर, शिकरा, पेरेगाइन के अलावा इस बार के बिग बर्ड डे में ओखला पक्षी अभयारण्य में दुर्लभ स्लेटी रंग की गर्दन सिर वाले फिश ईगल भी देखने को मिले हैं। अन्य दुर्लभ पक्षियों में भूरे हाक ईगल, प्रेस्ट वैगटेल, मार्गेंजर, बड़े कानों वाले उल्लू और बड़ी सफेद बतख भी बर्ड वाचर ने देखे।

बदला माहौल तो साइबेरियन क्रेन ने मुंह मोड़ा: एक समय था जब दिल्ली-एनसीआर प्रवासी पक्षियों के आकर्षण का केंद्र था लेकिन धीरे-धीरे आबादी बढ़ी, प्राकृतिक जल स्नोत घटे तो पक्षियों का अनुकूलन घटने लगा। यही कारण है कि कभी पूरे देश में साइबेरियन क्रेन आते थे लेकिन पिछले बीस बरसों में यदाकदा ही इन पक्षियों का नजारा मिला और अब तो यह बिलकुल नहीं आते। इसका एक और कारण बताते हुए वन अधिकारी सुंदर लाल कहते हैं कि साइबेरियन क्रेन के ब्रीडिंग इलाके में ही व्यवधान आने लगे हैं। इसके अलावा कई मार्गो पर इनका शिकार होने लगा है।

असल में जो प्रवासी पक्षी आते हैं उनमें अनुवांशिक रूप से ही एक रूटमैप सेट होता है और वे उसी राह पर उड़ान भरते हैं। यह पक्षी उत्तरी अमेरिका के अलावा पुराने सोवियत रहे रूस, मंगोलिया, और चीन के ऊपरी हिस्से से आते थे। प्रवासी पक्षी तापमान, भोजन और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए विभिन्न स्थानों पर जाते हैं। इस समय में आर्कटिक से नीचे और हिमालय के ऊपर के हिस्सों में स्नोकैपिंग हो जाती है, ऐसे में उन इलाकों से पक्षी माइग्रेट कर जाते हैं। हालांकि यह पक्षी आठ महीने यहां बिताते हैं और चार महीनों के लिए अपने देशों को जाते हैं लेकिन इन्हें प्रवासी कहा जाता है, जबकि यह प्रवासी की ग्लोबल रेजीडेंट पक्षी हैं। असल में जहां पर पक्षियों की ब्रीडिंग होती है, उसी को उनका रेजीडेंट इलाका मान लिया जाता है। प्रवासी पक्षी दिल्ली-एनसीआर में उन स्थानों पर देखने को मिलते हैं जहां मानव जनसंख्या कम है और भोजन की उपलब्धता और वातावरण का अनुकूलन है। अब साइबेरियन क्रेन की ही तरह मालर्ड डक की संख्या भी घटी है।

पंछी करते हैं सकारात्मक ऊर्जा का संचार: बर्ड वाचर और पर्यावरणविद् एम सरूप गुप्ता दिल्ली-एनसीआर ही नहीं, देश-विदेश के जंगलों में भी पक्षियों को देखने जाते हैं। उनका कहना है कि जो सुख प्रकृति के जीवंत नजारे को देखने में मिलता है, वह प्रकृति के किसी अन्य रूप में नहीं मिल सकता। पक्षियों का आकार-प्रकार, उनकी शारीरिक बनावट, उनके रंग और उनकी लाइव गतिविधियां एक अलग ही दुनिया में ले जाती हैं। सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं। उनके घर पर भी तकरीबन बीस से तीस प्रजाति के पक्षी आते हैं क्योंकि घर में प्रकृति को कंकरीट से ज्यादा तरजीह देते हुए बड़ा हिस्सा बगीचों को समíपत किया है। तकरीबन तीन वर्ष पहले सुल्तानपुर झील में साइकर्स नाइट जार प्रजाति को देखने वाले बर्ड वाचर कवि नंदा ने बिग बर्ड डे में इस बार सुल्तान पुर पार्क के निकट चंदू गांव में ब्लैक नेक ग्रीव और ग्रेट क्रस्टेड ग्रीव जैसे दुर्लभ पक्षी देखे। नंदा का कहना है कि उनके लिए बर्ड वाचिंग केवल दुर्लभ प्रजातियों की तलाश भर नहीं बल्कि बालकनी में बैठकर किसी भी पक्षी की गतिविधि देखना है। दूर से बैठे उसे निहारना, उसकी गतिविधियों को नोटिस करना और फिर वातावरण में घुलते प्रकृति के बदलते रंगों को देखना किसी भी मनोरंजन से बढ़कर है। बर्ड वाचर पंकज गुप्ता के मुताबिक परिंदों की उड़ान, उनकी गतिविधियों से प्रकट होती चाहतें, चेहरे से झलकती उनकी खुशी सब कुछ देखना पसंद है।

पक्षी प्रेमियों के लिए ये दौर मानो रोमांच भरा है.. कभी कैमरे में उसकी हंसी कैद करते हैं, कभी इठलाते, इतराते अंदाजों पर उनकी निगाह रुक जाती है। पक्षी जीते ही ऐसे हैं कि उनकी हर अदा पर कैमरे की नजर फिदा हो जाती है। 

निवासी पक्षियों का कलरव: दिल्ली की राज्य पक्षी गरया है लेकिन यहां कि फिजाओं में इनकी संख्या काफी कम हो गई है। एम सरूप गुप्ता के मुताबिक गौरैया के अनुकूलन खत्म होता जा रहा है। प्रदूषण, हाइटेंशन तारों और ऊंचे-ऊंचे भवनों की वजह से यह पक्षी विलुप्त होते जा रहे हैं। हालांकि लाकडाउन के बाद से यह पक्षी नजर आने लगे हैं और पर्यावरण को बचाकर इन्हें फिर से पाया जा सकता है। दिल्ली में अन्य पक्षियों में तकरीबन 250 प्रजातियां हैं जो यहां के रेजीडेंट हैं और यहीं ब्रीड करते हैं। आमतौर पर दिल्ली और आसपास के इलाकों में लापिंग बर्ड, नीलकंठ (किंगफिशर), कठफोड़वा, ग्रीन बी ईटर, बार्बेट, शकरखोरा (सन बर्ड), बब्बल (बैब्लर) आदि इस समय अपनी मौजूदगी से प्राकृतिक खूबसूरती में चार चांद लगा रहे हैं। इन्हें जरा सा दुलार दिया जाए तो केवल वन क्षेत्रों में ही नहीं, घरों में, बगीचों तक में चले आते हैं। इसका नमूना हम लाकडाउन के कारण साफ हुई आबोहवा में देख चुके हैं।

निगाहें नहीं हटती, मुस्कराते पक्षियों से: वन अधिकारी सुंदर लाल के मुताबिक केवल दिल्ली-एनसीआर के हाटस्पाट ही नहीं, बल्कि आसपास के गांवों में भी पक्षियों के कलरव से वातावरण खुशनुमा होता है। नोएडा के पास यमुना खादर, नजफगढ़ ड्रेन, बसई झील, सुल्तानपुर लेक और ओखला के इलाकों में ढाई सौ प्रजातियां पाई जाती हैं। जब यह पक्षी अपनी गतिविधियां दिखाते हैं तब माहौल और सुर मय हो उठता है। केवल इनके रंग और इनकी आवाज ही नहीं पक्षियों को देखकर लगता है कि प्रकृति ने इनमें ऐसी सुंदरता भरी है कि आप निगाहें हटा ही नहीं सकते। कई पक्षियों का वेशभूषा बेहद खूबसूरत होती है, मोर की तरह सार्स क्रेन भी सुंदर नृत्य करते प्रतीत होते हैं। पक्षी केवल खूबसूरती ही नहीं, प्रकृति संवर्धन में भी सहायक साबित होते हैं और पेड़ों के बीजों को एक जगह से दूसरी जगह तक लाने-ले जाने का काम करते हैं।

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