टैक्स में राज्यों की हिस्सेदारी कई पहलुओं पर आधारित, वित्त आयोग ने कहा- टैक्स बंटवारे पर राज्यों का रखा खयाल

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टैक्स में राज्यों की हिस्सेदारी P C : Flickr

वेबिनार में राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने कहा कि कुल टैक्स राजस्व में बंटवारे के लायक राजस्व की हिस्सेदारी लगातार घट रही है क्योंकि सकल टैक्स राजस्व में सेस और सरचार्ज की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है

नई दिल्ली। वर्तमान वित्त आयोग ने टैक्स में राज्यों की हिस्सेदारी पर निर्णय लेते समय निरंतरता और भविष्य के अनुमानों को तरजीह दी। 15वें वित्त आयोग के चेयरमैन एनके सिंह ने शनिवार को कहा कि इसी कारण कुल पूल में राज्यों की हिस्सेदारी को 41 फीसद पर बनाए रखा गया है। सिंह ने सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) द्वारा आयोजित एक वेबिनार में कहा कि इससे पहले के प्रत्येक वित्त आयोग ने कुछ हद तक टैक्स में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ाई है। लेकिन 15 वें वित्त आयोग ने कोविड-19 के चलते केंद्र और राज्यों दोनों के राजस्व में कमी को ध्यान में रखते हुए सभी विकल्पों पर गौर किया।

वेबिनार में राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने कहा कि कुल टैक्स राजस्व में बंटवारे के लायक राजस्व की हिस्सेदारी लगातार घट रही है, क्योंकि सकल टैक्स राजस्व में सेस और सरचार्ज की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है।

उल्लेखनीय है कि इस वर्ष संसद में पेश अपनी सिफारिश में 15 वें वित्त आयोग ने कहा है कि राज्यों को 2021-22 से 2025-26 की अवधि के दौरान केंद्र से बंटवारे लायक टैक्स का 41 फीसद हिस्सा दिया जाएगा। इससे पहले 14 वें वित्त आयोग ने भी राज्य की हिस्सेदारी इसी स्तर पर रखने की सिफारिश की थी।

15वें वित्त आयोग के अनुसार समीक्षाधीन पांच वर्षो की अवधि के लिए सकल कर राजस्व (जीटीआर) 135.2 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। इनमें से केंद्र और राज्य में बंटवारे लायक टैक्स की मात्रा करीब 103 लाख करोड़ रुपये होगी। इसमें भी समीक्षाधीन पांच वर्षो के लिए राज्यों का अनुमानित हिस्सा 42.2 लाख करोड़ रुपये है।

सिंह ने कहा कि अब तक प्रत्येक वित्त आयोग ने केंद्र और राज्य में बंटवारे लायक टैक्स में राज्यों की हिस्सेदारी लगातार बढ़ाई है। हमारे पास इस चलन को जारी रखने का भी विकल्प था। लेकिन हमने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि बदली परिस्थितियों में केंद्र और राज्य दोनों के राजस्व में लगातार कमी हो रही है। उनके मुताबिक वित्त आयोग के पास राज्यों की हिस्सेदारी घटाने का भी विकल्प था, लेकिन उसे पिछली बार के स्तर पर बरकरार रखा गया।

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