निवेशकों को आकर्षित करते हैं विदेशी शेयर, जानिए किस तरह चुनें इंटरनेशनल फंड

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Investment in international fund P C : Pixabay

Investment in international fund अपनी रकम का एक हिस्सा विदेशी स्टॉक्स में निवेश करने के लिए वित्तीय तर्क तो होता ही है। इसके अलावा अल्फाबेट अमेजन एपल नेटफ्लिक्स जैसे नामों का ग्लैमर भी लोगों को इंटरनेशनल फंड में निवेश करने के लिए प्रेरित करता 

नई दिल्ली। हाल के वर्षों में अमेजन, अल्फाबेट, नेटफ्लिक्स और टेस्ला जैसी दमदार कंपनियों की जबर्दस्त कमाई और रिटर्न ने भारतीय निवेशकों को उन कंपनियों में निवेश को प्रेरित किया है। एक दशक से थोड़ा पहले की ओर चलें तो भारतीय कंपनियों और बाजारों की कमाई दुनिया के कई बाजारों के मुकाबले अधिक होती थी। लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं। ऐसे में निवेशकों को इंटरनेशल फंड में निवेश के बारे में सोचना चाहिए।

अपनी रकम का एक हिस्सा विदेशी स्टॉक्स में निवेश करने के लिए वित्तीय तर्क तो होता ही है। इसके अलावा अल्फाबेट, अमेजन, एपल, नेटफ्लिक्स जैसे नामों का ग्लैमर भी लोगों को इंटरनेशनल फंड में निवेश करने के लिए प्रेरित करता है। हालांकि, इंटरनेशनल फंड चुनने के लिए हमें फंड की उसी तरह से जांच-पड़ताल करनी चाहिए जिस तरह से हम घरेलू फंड चुनने से पहले करते हैं।

हाल में लांच किया गया एनवाईएसई फैंग प्लस नामक फंड निवेशकों को जागरूकता का नया स्तर मुहैया कराता है। यह फंड मिरे असेट का है और एक ईटीएफ फंड है। यह फंड ऊंचे कंसंट्रेटेड इंडेक्स पर आधारित है। फंड के पास सिर्फ दुनिया के सिर्फ 10 बड़े टेक स्टॉक्स हैं। इनमें अलीबाबा, फेसबुक, अल्फाबेट, एपल, अमेजन और टेस्ला जैसे बड़े नाम शामिल हैं।

पिछले कुछ वर्षों के प्रदर्शन के आधार पर निवेश के लिहाज से यह फंड बेहतर विकल्प है। हालांकि, हम जानते हैं कि पिछले कुछ वर्षों का प्रदर्शन सब कुछ नहीं होता है। सिर्फ यही नहीं, छोटे और फिक्स्ड पोर्टफोलियो के साथ ऐसे नाम भारतीय निवेशकों के लिए असामान्य चीज हैं। यह कुछ ऐसा है कि हमें प्रयास करना और समझना चाहिए।

ऐतिहासिक तौर पर कुछ प्रकार के म्यूचुअल फंड इंटरनेशनल फंड के तौर पर फायदेमंद हैं और वे भारतीय निवेशकों द्वारा अभी तक नजरअंदाज भी किए गए हैं। इसमें इंटरनेशनल डायवर्सिफिकेशन के फायदे के अलावा रुपये के अवमूल्यन की वजह से एक्सचेंज रेट का भी लगातार फायदा मिलता है। बहुत वर्षों तक विदेशी इक्विटी निवेश पर टैक्स की ऊंची दर एक बड़ी समस्या रही है।

भारत में इक्विटी फंड के रिटर्न पर टैक्स शून्य था। लेकिन यह छूट सिर्फ उन्हीं फंडों के लिए थी जो घरेलू इक्विटी में निवेश करते थे। इंटरनेशनल इक्विटी फंड से मिलने वाले रिटर्न पर इंडेक्सेशन के बाद 20 फीसद टैक्स लगता था। अब यह अंतर खत्म हो गया है क्योंकि घरेलू इक्विटी फंड रिटर्न पर इंडेक्सेशन के बिना 10 फीसद टैक्स लगता है।

इसका मतलब है कि व्यावहारिक तौर पर घरेलू इक्विटी में निवेश पर टैक्स का जो फायदा था, वह अब नहीं रहा। वास्तव में इंडेक्सेशन के आधार पर हो सकता है कि आप विदेशी इक्विटी पर कम टैक्स का भुगतान करें।

अब बात करते हैं फंड चुनने की। भारतीय फंड कंपनियों को लगभग 50 इंटरनेशनल फंड उपलब्ध हैं। इनमें से कुछ ही डायवर्सिफाइड फंड हैं। बेहतर होगा कि ग्लोबल डायवर्सिफाइड फंड या यूएस बेस्ड फंड चुना जाए जो बड़ी इंडस्ट्री और दुनियाभर के बिजनेस में निवेश करता हो। अगर आप अमेरिका में निवेश करने वाले कई तरह के फंड और रिटर्न पर नजर डालते हैं, तो आप पाएंगे कि एसएंडपी 500 और नास्डैक-100 पर आधारित फंड ने ज्यादा बेहतर प्रदर्शन किया है।

ऐसे भारतीय निवेशक जो विदेश में निवेश करने पर विचार कर रहे हैं, उनको इस मुश्किल सवाल का सामना करना होता है और इसका जवाब आसान नहीं है। यह काफी हद तक जोखिम और रिटर्न को लेकर व्यक्तिगत फैसला होता है। एक्सचेंज रेट का फायदा इसे थोड़ा आसान जरूर बनाता है।

आप कोई भी रास्ता चुनें लेकिन निवेशकों को इंटरनेशनल फंड को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। एक दशक से थोड़ा पहले चलें तो एक ऐसा भी दौर था जब भारतीय बाजार इंटरनेशनल से बेहतर था और आप विदेश में निवेश करने के खिलाफ तर्क दे सकते थे। वह समय गया। अब किसी को भी इंटरनेशनल फंड को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

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