अंतिम संस्कार और एंबुलेंस सेवाओं के रेट तय करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से गुहार, नीति बनाने की मांग

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अंतिम संस्कार और एंबुलेंस सेवाओं के लिए अधिक शुल्क लिए जाने पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है।

कोरोना के दौरान अंतिम संस्कार और एंबुलेंस सेवाओं के लिए कथित रूप से अधिक शुल्क लिए जाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है। इसमें मृतकों के अधिकारों की रक्षा के लिए केंद्र को नीति बनाने का निर्देश देने की मांग की गई है...

नई दिल्ली कोरोना महामारी के दौरान अंतिम संस्कार और एंबुलेंस सेवाओं के लिए कथित रूप से अधिक शुल्क लिए जाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है। इसमें केंद्र को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि वह राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को सलाह दे कि वे एंबुलेंस सेवाओं और कोरोना संक्रमण से मरने वालों के अंतिम संस्कार के शुल्क निर्धारण के लिए जल्द से जल्द दिशानिर्देश तैयार करें। जिसका अनुपालन न करने पर कड़ी कार्रवाई का प्रविधान हो।

गैर-सरकारी संगठन डिस्ट्रेस मैनेजमेंट कलेक्टिव द्वारा अधिवक्ता जोस अब्राहम के जरिये दाखिल याचिका में मृतकों के अधिकारों की रक्षा के लिए केंद्र को नीति बनाने पर विचार करने के निर्देश देने की मांग भी की गई है। याचिका के मुताबिक, 'यह देखना दुखद है कि लोग पैसे के अभाव में अपने प्रियजनों के शवों को गंगा जैसी नदियों में बहा रहे हैं। प्राथमिक तौर पर इसकी वजह एंबुलेंस सेवाओं और अंतिम संस्कार के लिए मांगी जा रही अत्याधिक धनराशि है।'

इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी हाल में मृतकों की गरिमा बरकरार रखने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए एक एडवाइजरी जारी की है। लेकिन इस मसले से निपटने के लिए अधिकारियों ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है।

याचिका में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों का हवाला भी दिया गया है जिसमें कहा गया था कि मृतक की गरिमा बरकरार रखी जानी चाहिए और उसका सम्मान किया जाना चाहिए। इसमें कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने इस मसले पर पहले दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। 

हाई कोर्ट ने छह मई को याचिकाकर्ता को यह स्वतंत्रता दी थी कि वह संबंधित नगर निगमों के समक्ष अपना पक्ष रखे और नगर निकायों से कहा था कि वे कानून के मुताबिक उस पर फैसला करें। एनजीओ ने आरोप लगाया कि उसने 11 मई को सभी नगर निगमों के समक्ष अपना प्रतिनिधित्व दाखिल किया था, लेकिन किसी ने अभी तक इसकी प्राप्ति की सूचना भी नहीं दी है। इस आशय का एक प्रतिनिधित्व केंद्र सरकार को भी भेजा गया है जिसमें इस संदर्भ में कानून बनाने के लिए तत्काल कदम उठाने का अनुरोध किया गया है।

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