ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर असर और कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि से महंगाई बढ़ने का खतरा: क्रिसिल

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क्रिसिल का कहना है कि कच्चे तेल की कीमत इस वक्त 65 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है जो पिछले वर्ष इन्हीं दिनों के मुकाबले दोगुने स्तर पर है। खाद्य तेलों के दाम सालाना आधार पर 57 फीसद अधिक हैं और धातु सूचकांक भी 76 फीसद अधिक है।

नई दिल्ली अग्रणी रेटिंग एजेंसी क्रिसिल (Crisil) ने बुधवार को कहा है कि विभिन्न उद्योगों के लिए पिछले कुछ समय के दौरान लागत मूल्य में तेज बढ़ोतरी हुई है। इसके साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था के तेजी से पटरी पर लौटने की गति को भी कोरोना की दूसरी लहर से धक्का लगा है। इन परिस्थितियों में महंगाई दर के एक बार फिर से बढ़ जाने का खतरा पैदा हुआ है। क्रिसिल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इसके कारण खुदरा महंगाई दर के पांच फीसद से ऊपर चले जाने का जोखिम है।

उल्लेखनीय है कि सब्जियों, अनाज और खाने- पीने की दूसरी वस्तुओं के दाम घटने से खुदरा महंगाई की रफ्तार अप्रैल में सुस्त होकर 4.29 फीसद रही। यह पिछले तीन महीनों में खुदरा महंगाई की सबसे निचली दर है। वहीं खाने-पीने का सामान, कच्चा तेल और उत्पादित वस्तुओं के दाम बढ़ने से अप्रैल में थोक महंगाई दर 10.49 फीसद के साथ अब तक के उच्च स्तर पर जा पहुंची।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने दो फीसद उतार-चढ़ाव के साथ खुदरा महंगाई दर चार फीसद पर रखने का लक्ष्य निर्धारित किया हुआ है। बीते वित्त वर्ष के दौरान महंगाई की ऊंची दर के चलते ही आरबीआइ पूरे वर्ष भर नीतिगत ब्याज दरों में कटौती नहीं कर सका।

क्रिसिल ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन के कारण अप्रैल और मई, 2020 के आंकड़ों का संग्रह नहीं हो सका है। ऐसे में इस वर्ष अप्रैल और मई के बहुत से आंकड़ों की तुलना पिछले वर्ष से करना उचित नहीं होगा। रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर जिंसों के दाम में तेजी से कच्चे माल की लागत बढ़ रही है। इससे मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों पर बुरा असर पड़ा है और घरेलू बाजार में महंगाई बढ़ रही है।

क्रिसिल का कहना है कि कच्चे तेल की कीमत इस वक्त 65 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है, जो पिछले वर्ष इन्हीं दिनों के मुकाबले दोगुने स्तर पर है। खाद्य तेलों के दाम सालाना आधार पर 57 फीसद अधिक हैं और धातु सूचकांक भी 76 फीसद अधिक है। पेट्रोल-डीजल की महंगाई के चलते परिवहन लागत बहुत बढ़ गई है। कच्चे माल के बढ़ते दाम का भार फिलहाल उपभोक्ताओं से अधिक निर्माताओं पर है। इसका असर यह होगा कि जैसे ही मांग बढ़ेगी, यह बोझ ग्राहकों पर डाल दिया जाएगा।

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