Interview: बॉलीवुड इनसाइडर नहीं हूं, 17 साल फ़िल्मों से दूर रही थीं मां, नेपोटिज़्म पर बोले रति अग्निहोत्री के बेटे तनुज विरवानी

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Tanuj Virvani with mother Rati Agnihotri. Photo- Instagram

तनुज इन दिनों डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर आ रही रोमांटिक-कॉमेडी वेब सीरीज़ मर्डर मेरी जान में मुख्य किरदार में नज़र आ रहे हैं। तनुज ने जागरण डॉट कॉम के साथ अपनी वेब सीरीज़ करियर और फ़िल्मी परिवार से आने के विभिन्न पहलुओं पर खुलकर बातचीत की।

 दिल्ली। हिंदी सिनेमा की वेटरन एक्ट्रेस रति अग्निहोत्री के बेटे तनुज विरवानी ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की दुनिया का एक जाना-माना नाम बन चुके हैं। तनुज ने अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत फ़िल्मों से की, मगर अपने हिस्से की पहचान उन्हें मनोरंजन के इस माध्यम ने दी, जो आज सिनेमा के समानांतर खड़े होने की तैयारी में है। यह पर्दा बेशक सबसे छोटा है, मगर इसका असर काफ़ी बड़ा है।

तनुज इन दिनों डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर आ रही रोमांटिक-कॉमेडी वेब सीरीज़ 'मर्डर मेरी जान' में मुख्य किरदार में नज़र आ रहे हैं। तनुज ने जागरण डॉट कॉम के साथ अपनी वेब सीरीज़, करियर और फ़िल्मी परिवार से आने के विभिन्न पहलुओं पर खुलकर बातचीत की। 

मर्डर मेरी जान में पुलिस अफ़सर का किरदार निभा रहे हैं। इस किरदार को चुनने के पीछे क्या वजह रही?

आपने मुझे क्रिकेटर (इनसाइड ऐज) के रोल में देखा है। एक विलेन के रूप में देखा है। मेरी कोशिश रहती है कि जिस प्रोजेक्ट से अपना नाम जोड़ूं, उसमें कुछ अलग करूं। नहीं तो मुझे भी बोरियत होने लगेगी और ऑडिएंस भी पक जाएगी कि यह बंदा तो हर प्रोजेक्ट में एक जैसी एक्टिंग कर रहा है। मर्डर मेरी जान बहुत ही हल्का-फुल्का मज़ेदार ड्रामा है। यह खाकी पहनने वाला पुलिस अफसर नहीं है। यह एसीपी है। देखा जाए तो यह डिटेक्टिव रोमांटिक-कॉमेडी सीरीज़ है।

हमने बहुत तेज़ी से यह शूट किया था। मैंने जनवरी के अंत में इसकी कहानी सुनी थी और फरवरी में शूट किया। मार्च तक शूटिंग ख़त्म भी हो गयी और मई में रिलीज़ हो गया। हमने भोपाल में शूट किया था। मौजूदा हालात को देखते हुए काफ़ी रिस्की भी था, मगर प्रोड्यूसर्स की वजह से ठीक से हो गया। 

...आगे किन प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं?

मेरे पास अभी 4-5 प्रोजेक्ट हैं, जिनमें अलग-अलग किरदार कर रहा हूं। एक 'तंदूर' है, जो दिल्ली के तंदूर मर्डर केस पर आधारित है। उसमें मैं और रश्मि देसाई हैं। फिर कोड एम है, जिसमें जेनफिर विंगेट मेरे साथ हैं। यह पूरा होने वाला है। इसके अलावा एक शो कार्टेल है, जो ऑल्ट बालाजी के लिए बनाया जा रहा है। यह मुंबई के लैंड माफ़िया पर आधारित शो है। इसकी स्टार कास्ट भी तगड़ी है। रित्विक धनजानी, जितेंद्र जोशी (सेक्रेड गेम्स फेम), सुप्रिया पाठक, मोनिका डोगरा, तनिष्ठा चैटर्जी, समीर सोनी... कई दिग्गज कलाकार हैं। एक वेब सीरीज़ का सीज़न 3 साल के सेकंड हाफ में आ जाएगा। इललीगल 2 शुरू करने जा रहा हूं।

ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर सेंसरशिप को कितना ज़रूरी मानते हैं?

2016-17 में हमारे देश में जब ओटीटी का बूम आया, लोगों ने इसका फायदा उठाया था। सेंसरशिप जैसा कुछ था नहीं। अब सरकार ने निर्धारित कर दिया है कि निश्चित मानकों की ज़रूरत है। वो ठीक है। जब मेरा शो 'टैटू मर्डर्स' रिलीज़ होने जा रहा था, तो इस पर विवाद हुआ था। शो का नाम पहले कमाठीपुरा था। कमाठीपुरा में रहने वालों और वहां के विधायक को लगा था कि हम उनके एरिया को नेगेटिव लाइट में दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, जो कि हमारा इरादा बिल्कुल नहीं था। हमने तय किया कि हम किसी को आहत नहीं करना चाहते। जब आपके पास पॉवर होती है तो उसके साथ एक ज़िम्मेदारी का एहसास भी होना चाहिए

अगर अपनी बात करूं तो मैं ऐसे शोज़ में काम करना चाहता हूं, जिन्हें आप पूरे परिवार के साथ देख सकें। जैसे मर्डर मेरी जान आप पूरे परिवार के साथ देख सकते हैं। टैटू मर्डर्स में हिंसा है, क्योंकि वो डार्क किस्म की कहानी है। लेकिन, अगर किसी को लगता है कि पांच-छह गाली डालकर, पांच-छह भद्दे सीन डालकर, ऑडिएंस को टिटिलेट करके खींच सकता है तो वो ग़लत बात है। एक कलाकार होने के नाते आपको दर्शक को एंटरटेन करने के साथ उन्हें एजुकेट भी करना होता है।

बॉलीवुड इनसाइडर होने का कभी फायदा या नुक़सान हुआ?

मैं अपने आपको इनसाइडर नहीं मानता हूं। आप मेरी जर्नी देखिए, मेरे शोज़ और फ़िल्में देखिए, तो मुझे नहीं लगता कि मैं एक इनसाइडर हूं। आपको ये भी समझना होगा कि जब मेरी मां (रति अग्निहोत्री) ने शादी की थी तो उसके बाद 17 सालों तक फ़िल्मों से वनवास लिया था और जब उन्होंने वापसी की, तब तक मैं 16-17 साल का हो चुका था। मेरा परिवार फ़िल्मी प्रोसेस ज़्यादा नहीं रहा। वो चाहते हैं कि मैं अपना नाम ख़ुद बनाऊं। वैसे भी मॉम का सरनेम अग्निहोत्री है और मेरा विरवानी तो इंडस्ट्री में लोग वो कनेक्शन नहीं बना पाते, जो मेरे लिए अच्छा ही है। 

एक कलाकार के तौर पर ओटीटी प्लेटफॉर्म और फ़िल्मी माध्यम में आपको क्या फर्क महसूस होता है?

ओटीटी या वेब सीरीज़ लेखक का माध्यम है। अक्सर सीज़न या एपिसोड के साथ डायरेक्टर्स बदलते रहते हैं, लेकिन लेखकों की टीम सामान्यत: वही रहती है। यह स्टोरी टेलिंग का लॉन्ग फॉर्मेट है। इसमें ज़्यादा मज़ा आता है। किसी फ़िल्म में जब किरदार निभा रहे होते हैं तो 3-4 गाने होंगे, इंटरवल पॉइंट होगा। ढाई घंटे में आपको इंट्रो, कॉन्फ्लिक्ट, रेजोल्यूशन, सब दिखाना होता है। आप सेक्रेड गेम्स, मिर्ज़ापुर या मेरा शो इनसाइड ऐज देख लीजिए, इतने सारे कैरेक्टर्स होने के बावजूद हरेक का एक कैरेक्टर ग्राफ होता है। 40-50 मिनट का एक एपिसोड है तो उसमें वक़्त मिल जाता है सब दिखाने का। पात्र ज़्यादा मज़ेदार लगते हैं। वहीं, जब फ़िल्म में काम करते हैं तो वो एक लार्जर दैन लाइफ है। उसकी रीच अलग है। उसका स्केल अलग है। दोनों के अपने फायदे हैं। मैं दोनों मीडियम में काम करना चाहता हूं।

विदेशी वेब सीरीज़ से देसी कंटेट को मिलने वाली चुनौती को लेकर आप क्या सोचते हैं?

यह स्वस्थ प्रतिस्पर्धा है, क्योंकि दर्शक को जो कंटेंट अच्छा लगता है, वो वही देखेगा। शो बनाने वालों को भी कॉम्पीट करने को मिलता है। वो भी सोचते हैं कि उन्हें बेहतर कंटेंट बनाना है।

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