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RGA news
यह टैबलेट की प्रतीकात्मक फाइल फोटो है
नई दिल्ली। दुनिया की तकरीबन 50 फीसदी जीडीपी प्रकृति पर निर्भर है, ऐसे में पर्यावरण संरक्षण काफी अहम हो जाता है। पर्यावरण संरक्षण में टेक्नोलॉजी काफी मदद कर सकती है। बता दें कि भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश रोज़ाना 147,613 मीट्रिक टन कचरा पैदा करते हैं। इसमें बेकार कागज़ की मात्रा काफी ज्यादा रहती है। न्यूजप्रिंट और शैक्षणिक कार्यों से सबसे ज्यादा बेकार कागज निकलता है। साल 2015 में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक भारत में हर साल न्यूज़प्रिन्ट से तकरीबन 1.2-2.4 मिलियन टन तथा कार्डबोर्ड एवं मिश्रित कागज़ से 2.4-4.3 मिलियन टन बेकार कागज उत्पन्न होता है।
इसके अलावा, ओद्यौगिक संस्था एसोचैम के मुताबिक, 2017-18 के दौरान भारत कागज़ के सबसे तेज़ी से विकसित होते उपभोक्ता के रूप में उभरा है, जहां 10 फीसदी सालाना बढ़ोतरी के साथ 20 मिलियन टन से अधिक उत्पादन दर्ज किया गया। साफ है, इतनी तेज़ी से कागज के उपयोग एवं ठोस व्यर्थ के उत्पादन से पर्यावरण पर बड़ा प्रभाव पड़ रहा है। हाल ही में सरकार ने डिजिटल इंडिया, जैम ट्रिनिटी के माध्यम से बड़े कदम उठाए हैं। साथ ही पीएम मोदी की तरफ से डिजिटल इंडिया को बढ़ावा दिया जा रहा है। वहीं, राज्य सरकारें भी डिजिटल माध्यमों को अपनाने के लिए तेज़ी से काम कर रही हैं। डिजिटल इंडिया का फायदा लॉकडाउन के दौर में देखने को मिला है।
डिजिटलीकरण से कागज़ पर निर्भरता को बहुत अधिक कम किया जा सकता है। डिजिटलीकरण से कागज के उपयोग में कटौती की जा सकती है। ऐसे में ज़रूरी है कि डिजिटलीकरण को अपनाया जाए। शिक्षा क्षेत्र में, खासतौर पर डिजिटल गेमिफिकेशन और गेम-बेस्ड लर्निंग, अध्ययन के तरीकों में बड़े बदलाव ला सकती है। गेमिफिकेशन और गेम-बेस्ड लर्निंग- पारम्परिक किताबों और व्याख्यानों के लिए कारगर साबित हुए हैं। ऐसे में यह बेहद अनुकूल हो सकता है।
हालांकि, अकादमिक एवं मीडिया उद्योग का डिजिटलीकरण तभी संभव है, जब हम राष्ट्रीय स्तर पर डिजिटल संरचना को अपनाएं, ज़रूरी टेलीकम्युनिकेशन उपकरणों जैसे फोन, टैबलेट एवं अन्य किफ़ायती उपकरणों को देश के हर छात्र एवं व्यक्ति के लिए सुलभ बनाएं। भारत में तकनीक को बढ़ावा देकर इस दिशा में हम अच्छे परिणाम हासिल कर सकते हैं। साथ ही लोगों के व्यवहार में भी बदलाव लाने की ज़रूरत है, ताकि कागज़ के उपयोग को कम किया जा सके।
दुनिया आज इलेक्ट्रिक एवं कनेक्टेड दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं। 21 वीं सदी की डिजिटल तकनीकें जैसे आर्टीफिशियल इंटेलीजेन्स, आईओटी, बिग डेटा, क्लाउड कम्प्युटिंग, ब्लॉक चेन, ज्यॉग्राफिक इन्फोर्मेशन सिस्टम का उपयोग पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कारगर साबित हो सकता है।
कोविड-19 से वर्क फ्रॉम होम के चलन से पर्यावरण को काफी फायदा मिलेगा। इस दौरान उर्जा की काफी बचत हुई है, जो पर्यावरण के लिहाज से काफी अच्छा कदम है। स्टार्ट-अप्स, इलेक्ट्रिक, हाइड्रो एवं ज्योथर्मल उर्जा के अलावा सौर एवं पवन उर्जा को अपनाने पर भी ज़ोर दे रहे हैं, जो अधिक स्वच्छ एवं स्थायी समाधान है। कोविड-19 संकट के बाद अब दुनिया धीरे-धीरे ऐसा करना सीख रही है। इस दिशा में दूसरों की मदद कर आप एक इंटरकनेक्टेड एवं एक-दूसरे पर निर्भर दुनिया के निर्माण में योगदान देते हैं।
पर्यावरण सुधार में तकनीक बड़े पैमाने पर सक्रिय भूमिका निभा सकती है, साथ ही लोगों को पर्यावरण के बारे में शिक्षित एवं जागरुक बनाना, उनके व्यवहार में अनुकूल बदलाव लाना तथा आम लोगों एवं समुदायों को इस दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करना भी ज़रूरी है।
नोट - इस आर्टिकल को डॉ सुबी चतुर्वेदी ने लिखा है, जो एक प्रख्यात सार्वजनिक नीति पेशेवर, प्रतिबद्ध पर्यावरणविद तथा मल्टीस्टेकहोल्ड अडवाइज़री ग्रुप युनाईटेड नेशन्स इंटरनेट गवर्नेन्स फोरम की पूर्व सदस्य तथा फिक्की सब कमेटी ऑन वुमेन इन टेक्नोलॉजी, पॉलिसी एण्ड लीडरशिप की चेयरपर्सन हैं।