हिंदी और भारतीय भाषाओं में इंजीनियरिंग की शिक्षा पर वेब-गोष्ठी का आयोजन

Praveen Upadhayay's picture

RGAन्यूज़ 

अनेक महाविद्यालयों एवं 14 संस्थानों ने अपनी मातृभाषा में तकनीकी शिक्षा देने के लिए अनुमोदन मांगा है।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ताओं एवं अतिथियों का स्वागत रंजन कुमार केन्द्रीय हिंदी संस्थान आगरा ने किया। डॉ. राजेश कुमार ने कहा कि जिन देशों में प्राथमिक एवं उच्च शिक्षाएं अपनी भाषाओं में दी जाती हैं वहाँ विकास एवं शोध का स्तर भारत से बहुत ऊँचा है

नई दिल्ली। नई शिक्षा नीति 2020 के आलोक में 'हिंदी और भारतीय भाषाओं में इंजीनियरिंग की शिक्षा' विषय पर रविवार 6 जून, 2021 को केंद्रीय हिंदी संस्थान और विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से एक वेब-संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें देश विदेश के अनेक विद्वानों ने भाग लिया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ताओं एवं अतिथियों का स्वागत रंजन कुमार, केन्द्रीय हिंदी संस्थान आगरा ने किया। संगोष्ठी के प्रारम्भ में डॉ. राजेश कुमार ने कहा कि यह बात निर्विवाद रूप से स्थापित है कि जिन देशों में प्राथमिक एवं उच्च शिक्षाएं अपनी भाषाओं में दी जाती हैं वहाँ विकास एवं शोध का स्तर भारत से बहुत ऊँचा हैै

विद्वान वक्ता आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर अविनाश कुमार अग्रवाल ने विश्व मानचित्र में अंग्रेजी के सीमित क्षेत्र एवं अन्य भाषा भाषियों के प्रतिशत को दर्शाते हुए महत्वपूर्ण तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित किया कि जब ब्रिटेन में 1800 स्कूल थे, उस समय भारत में एक लाख गुरुकुल थे। आपने पिछले 200 वर्षों के शिक्षा तंत्र के इतिहास के महत्वपूर्ण घटनाक्रमों एवं द्स्तावेजों के साथ उल्लिखित किया। प्रवेश, शैक्षणिक एवं अवसरंचनात्मक सभी पहुलुओं को ध्यान में रखकर बनाई इस योजना से आईआईटी, एनआईटी एवं अन्य सीएफटीआई संस्थानों में इस योजना को लागू करने के सभी पक्षों को विस्तार से समझाया कि इसका प्रारम्भ जेईई की परीक्षा को भारतीय भाषाओं में उत्तीर्ण करने से शुरु होगा और आगे की शिक्षा उनकी भाषा में ही होने का पूरा ढांचा तैयार किया जाएगा और उनके रोजगार, शोध तक सभी पहलुओं तक पहुंचेगा।

ए.आई.सी.टी.ई. के अध्यक्ष अनिल सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि अनेक महाविद्यालयों एवं 14 संस्थानों ने अपनी मातृभाषा में तकनीकी शिक्षा देने के लिए अनुमोदन मांगा है, यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है। नए अनुवाद उपकरण की प्रणाली से पाठ्यपुस्तक एवं प्रश्नपत्र आदि के अनुवाद भी किए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि आगे वीडियो के ऊपर शीर्षक सब- टाइटिल के रूप में नहीं चलेंगे बल्कि पूरी सामग्री की डबिंग लक्ष्य भाषा में होगी जिससे विद्यार्थी का संपूर्ण ध्यान पाठ्यक्रम पर रहे।

विमर्श में अपनी भावना को व्यक्त करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने कहा कि इन पहलों और प्रयासों के जब परिणाम आएँगे तो निश्चित ही भारतीय शिक्षा एवं भारतीयों की अंग्रेजी के पिछलग्गू रहने के भ्रम की मनोवृत्ति में भी बदलाव आएगा। वह एक सुखद दिन होगा जब विद्यार्थी अंग्रेजी के आतंक से मुक्त होकर अपनी मातृभाषा में प्रारम्भिक से लेकर उच्चतम शिक्षा प्राप्त करेगा।

एमएनआईटी प्रयागराज के निदेशक प्रो. राजीव त्रिपाठी ने कहा कि यदि हम अपने देश भारत में हिंदी नहीं बोलेंगे तो फिर कौन बोलेगा, हम अपने देश में अपनी भाषा में शिक्षा नहीं देंगे तो कौन देगा। आपने कहा कि मैं हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों को लेकर अलग से बैठता था और उनका आत्मविश्वास बढ़ाता था कि अपने तकनीकी ज्ञान पर विश्वास रखिए कि तकनीकी कौशल और ज्ञान किसी भी भाषा का आश्रित नही

पूर्व प्रशासनिक अधिकारी एवं तकनीकविद् निर्मलजीत सिंह कलसी ने अपने संबोधन में आशा व्यक्त की कि अगले दस वर्षों में निश्चित ही बदलाव आएगा और अपनी भाषा के माध्यम से पढ़े हुए अभियंता या डिप्लोमा धारी मूल चिंतक होंगे और अंग्रेजी माध्यम से पढ़े हुए सहकार्मिकों से बेहतर होंगे और उनके कौशल का बेहतर विकास होगा।

संकल्प के संस्थापक संतोष तनेजा ने कहा कि इतने कम समय में यह काम व्यवहारिक रुप में हुआ जिससे कौशल संपन्न अभियंता तैयार होंगे जो विश्व में अपना लोहा मनवाएंगे। प्रो. विनोद मिश्र ने प्रश्न उठाया कि क्या अंग्रेजों के आने से पहले क्या भारत में कोई ज्ञान नहीं था और आपने आशा व्यक्त की कि निश्चित ही भविष्य सुखद है।

संगोष्ठी में प्रो. जीवन लाल भागोड़िया, अनूप भार्गव, जापान से टॉमियो मिजोकामी, विजय कुमार मल्होत्रा ने अपने विचार प्रस्तुत किए। समाहार करते हुए संस्थान के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ लेखक अनिल शर्मा 'जोशी' ने सभी वक्ताओं की महत्वपूर्ण बातों को सार रूप में रखा और सभी के प्रति अपना आभार व्यक्त किया। उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था में मैकाले तंत्र एवं अंग्रेजी के महिमामंडन के षडयंत्र को रेखांकित किया कि कैसे आजादी के बाद से भारतीय शिक्षा तंत्र में भारतीय भाषाओं को हाशिए पर धकेला गया और डॉ दौलत सिंह कोठारी जी के प्रयासों को परिणित तक नहीं ले जाया सका इसलिए हम इतना पिछड़ गए हैं। उन्होंने कहा कि अभी भी मार्ग कठिन है क्योंकि हिंदी भाषी समाज की आत्महंता एवं हीन भावना से भी संघर्ष करना होगा। आभार

News Category: 

Scholarly Lite is a free theme, contributed to the Drupal Community by More than Themes.