जेल से मिली आजादी अब राजघाट में स्मृतियों को अमर करने की कवायद

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गोरखपुर जेल परिसर स्थित पं. रामप्रसाद बिस्मिल की प्रतिमा। 

19 दिसंबर 1927 को पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का अंतिम संस्कार राजघाट पर हुआ था। उनकी मौत के 93 साल बाद भी राजघाट में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे देखकर जाना जा सके कि यहां बिस्मिल का अंतिम संस्कार हुआ था।

गोरखपुर, काकोरी कांड के नायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की स्मृतियां जेल से आजाद हो चुकी हैं। बिस्मिल बैरक, पार्क, फांसी घर सहित जेल से जुड़ी उनकी यादों को पर्यटन विभाग की वेबसाइट पर लाने की तैयारी अंतिम चरण में है। इसके साथ ही तमाम संस्थाएं राजघाट में उनकी स्मृतियों को अमर करने की कवायद में जुट गई है। राजघाट पुल को बिस्मिल के नाम से करने व राजघाट में उनकी प्रतिमा स्थापित करने की मांग जोर पकड़ने लगी है। इसे लेकर कुछ संस्थाएं जल्द ही मुख्यमंत्री से मुलाकात करने वाली हैं।

गोरखपुर जेल में हुई थी फांसी, यहां का बैरक, पार्क और जुड़ी यादें पर्यटन के नक्शे पर

19 दिसंबर 1927 को पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का अंतिम संस्कार राजघाट पर हुआ था। उनकी मौत के 93 साल बाद भी राजघाट में कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसे देखकर जाना जा सके कि यहां पंडित बिस्मिल का अंतिम संस्कार हुआ था। गुरुकृपा संस्थान के संस्थापक बृजेश त्रिपाठी का कहना है वह पर्यटन विभाग सहित कई स्थानों पर इसे लेकर पत्र लिख चुके हैं। उन्होंने कहा कि जल्द ही वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर पुल को बिस्मिल पुल व राजघाट में बिस्मिल प्रतिमा स्थापित करने की मांग करेंगे।

ताकि वर्षों तक जिंदा रहें स्मृतियां

पंडित जी को जहां फांसी दी गई थी, जिस चौकी पर वह विश्राम करते थे, साधना केंद्र, उनकी स्मृतियों से जुड़ीं सभी वस्तुओं का पर्यटन विभाग जीर्णोद्धार कर चुका है। आगंतुकों यहां आने के लिए अब किसी के अनुमति की जरूरत नहीं है। वह यहां आसानी से आकर एक-एक वस्तुओं, फांसी घर, उनकी बैरक आदि को देख कर आभास कर सकते हैं कि पंडित जी ने यहां चार माह का वक्त यहां कैसा बीता होगा। इसके लिए जेल के बाहर से एक रास्ता बनाकर उसे खोल दिया गया है। फांसी घर, बिस्मिल बैरक आदि को ऊंची बाउंड्री के जरिये जेल से अलग कर दिया गया है। फांसीघर, लकड़ी के फ्रेम, लीवर को आज भी उसी प्रकार सुरक्षित रखा गया है, जिस तरह यह आज के 93 वर्ष पूर्व दिखता था। बैरक की छत अभी भी खपरैल की है। आंगन ठीक कराया गया है। जेल से सटे बिस्मिल पार्क व यात्री हाल बनवाया गया है। शौचालय ठीक कराया गया है।

कमरा नंबर सात में रहते थे पंडित बिस्मिल

जंग-ए-आजादी की सबसे अहम घटनाओं में काकोरी कांड शामिल है। 9 अगस्त 1925 को पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्लाकुल्ला खां, राजेंद्र लाहिड़ी सहित आजादी के दीवानों ने शाहजहांपुर से लखनऊ जा रही ट्रेन को लूटकर ब्रिटिश सरकार के खजाने में सेंध लगाई थी। बाद में अंग्रेजों ने पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को पकड़कर लखनऊ की जेल में बंद कर दिया था। 10 अगस्त 1927 को उन्हें गोरखपुर की जेल में लाया गया। यहां उन्हें कोठरी संख्या सात में रखा गया था। उस समय इसे तन्हाई बैरक कहा जाता था। गोरखपुर में आने के बाद बिस्मिल ने कमरे को साधना केंद्र के रूप में प्रयोग किया था। इस कोठरी को अब बिस्मिल कक्ष और शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल बैरक के नाम से संरक्षित किया गया है।

जल्द ही मुख्यालय से इसके लिए कोई फोटोग्राफर हायर किया जाएगा। वह फांसी घर समेत प्रत्येक चीजों को शूट करेंगे। उसके बाद उसे वेबसाइट से जोड़ने का कार्य किया जाएगा

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