अटल बिहारी वाजपेयी ने कश्मीर पर जीता था लोगों का दिल

Raj Bahadur's picture

RGANEWS

अटल बिहारी वाजपेयी को अप्रैल 2003 में श्रीनगर में दिए गए उनके उस भाषण के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान की तरफ दोस्ती के हाथ बढ़ाए थे। उन्होंने जोर देकर कहा कि बंदूक समस्या का समाधान नहीं हो सकता है और उन्होंने पाकिस्तान के साथ समग्र वार्ता प्रक्रिया शुरू की।
उसका परिणाम ये हुआ कि अगले एक दशक तक कश्मीर में आतंकवाद में भारी कमी देखने को मिली। नवंबर 2003 में सीमा पर संघर्ष विराम को लेकर समझौता हुआ और शांति महसूस की गई। सीमा पार बस सेवा और कश्मीर के दोनों तरफ व्यापार शुरू किए गए। वाजपेयी जनवरी 2004 में कश्मीरी अलगाववादियों से मिले। जबकि, पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावना के तहत जनमत संग्रह कराने की अपनी मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया।

कश्मीर समस्या सुलझाने को लेकर वाजपेयी का विजन इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत के तहत था। यही वजह थी कि उन्हें चाहे अलगावादी हो या फिर मुख्यधारा के राजनेता सभी पसंद करते थे।
    
अलगाववादी नेता अब्दुल गनी भट ने कहा- “कश्मीर समस्या का समाधान करते वक्त वाजपेयी इन सभी चीजों से ऊपर उठ कर सोचते थे।” भट ऐसा मानते हैं कि अगर वाजपेयी ने 2004 का चुनाव नहीं हारा होता तो कश्मीर में स्थिति आज कुछ और होती।

सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर के पूर्व डीन नूर बाबा ने कहा कि जरूरत पड़ने पर वाजपेयी कठिन रास्ते पर चलने के लिए भी तैयार थे। उन्होंने कहा- “वह बिल्कुल स्पष्ट थे और इस बात को जानते थे भारत को पाकिस्तान के साथ शांति बनाए रखना होगा।” बाबा ने बताया कि झटका लगने के बावजूद उन्होंने वार्ता को आगे बढ़ाया।
 
पाकिस्तान के सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ के साथ 2001 में वाजपेयी की आगरा की असफल वार्ता का हवाला देते हुए हुए नूर बाबा ने कहा- “वाजपेयी के 1999 के लाहौर दौरे के बाद करगिल की लड़ाई हुई उसके बाद भी वह पाकिस्तान के साथ वार्ता करना चाहा.... लेकिन, आगरा में एक और झटका लगा.. लेकिन वह उनके चलते नहीं।” 

बाबा ने कहा कि कश्मीर की जनता शांति को लेकर वाजपेयी की प्रतिबद्धता को समझते थे और इसलिए वे हमेशा उनका हवाला देकर ये कहते हैं- “ना सिर्फ मुख्यधारा के राजनेता बल्कि अलगाववादियों ने भी ऐसा महसूस किया कि वाजपेयी अलग थे।”

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी नेता वाहीद उर रहमान ने कहा वाजपेयी ने कश्मीरियों का दिल जीत लिया क्योंकि उन्होंने उन लोगों को यह बताया कि वे सभी घाटी के मालिक हैं। सीपीएम नेता मोहम्मद तारागमी ने कहा कि सबसे पहले रमजान के दौरान संघर्ष विराम की घोषणा वाजपेयी के शासनकाल 2000 में की गई थी। 

कांग्रेस नेता सैफुद्दीन सोज ने कहा कि वाजपेयी हर वक्त समाधान में उत्सुक रहते थे। “यही वजह है कि बीजेपी के बड़े नेता होने के बावजूद कश्मीर उन्हें पसंद करता है। दुर्भाग्य से व्यवस्था ने उन्हें असफल कर दिया।”

News Category: 

Scholarly Lite is a free theme, contributed to the Drupal Community by More than Themes.