एम्स के गेट से ही लौटाए जा रहे मरीज, गंभीर मरीजों को नहीं म‍िल रहा इलाज

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RGA न्यूज़

गोरखपुर में एम्स शुरू होने के ढाई साल बाद भी यहां गंभीर रोगों के मरीजों को इलाज नहीं मिल पा रहा है। मरीजों को बिना परीक्षण गार्ड ही गेट से लौटा दे रहे हैैं। जो किसी तरह अंदर पहुंच जा रहे हैैं उन्‍हें रेफर क‍िया जा रहा है।

एम्‍स गोरखपुर में मरीजों को ठीक से इलाज नहीं म‍िल रहा है।

गोरखपुर, आम आदमी को सुपर स्पेशलिस्ट इलाज मिलने के जिस सपने के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2016 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की नींव रखी थी, वह साकार होता नहीं दिख रहा। वाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) शुरू होने के ढाई साल बाद भी यहां गंभीर रोगों के मरीजों को इलाज नहीं मिल पा रहा है। मरीजों को बिना परीक्षण गार्ड ही गेट से लौटा दे रहे हैैं। जो किसी तरह अंदर पहुंच जा रहे हैैं, चिकित्सक उनका इलाज करने से हाथ खड़ाकर बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कालेज या अन्य संस्थानों को रेफर कर दे रहे हैैं। सपनों के अस्पताल में इलाज की आशा लेकर पहुंच रहे गोरखपुर-बस्ती मंडल के साथ बिहार व नेपाल के मरीजों को निराश होकर लौटना पड़ रहा है। आइसीयू और सुपर स्पेशलिस्ट डाक्टर न होने से एम्स में बेहतर इलाज की उम्मीदें दम तोड़ रही हैैं।

आइसीयू और सुपर स्पेशलिस्ट डाक्टर नहीं, गंभीर बीमारियों के मरीजों के सामने इलाज का संकट

बस्ती के गुनजोत निवासी 72 वर्षीय झिनकू प्रसाद को डाक्टरों ने उन्हें गंभीर बताकर वापस कर दिया। उनकी किडनी में इंफेक्शन और हीमोग्लोबिन 5.9 ग्राम है। 15 दिन पहले उनके बेटे बृजेश ने घंटों लाइन में लगकर पिता को दिखाने की तिथि ली। बृजेश ने बताया कि सुबह पांच बजे लाइन में लगने के बाद नौ बजे अंदर जाने का मौका आया। अंदर जा ही रहे थे कि गार्डों ने रोक लिया। कहा- मेडिसिन विभाग फुल हो चुका है। अब वहां मरीज नहीं देखे जाएंगे। एक परिचित कर्मचारी की मदद से किसी तरह अंदर गए। चलने में लाचार पिता को गोद में लेकर गए। न ह्वील चेयर मिली ना ही स्ट्रेचर। वहां पहुंचे तो डाक्टरों ने गंभीर बताकर बीआरडी मेडिकल कालेज रेफर कर दिया।

बिहार व नेपाल से भी आते हैं मरीज, लंबी लाइन में लगने के बाद मुख्य द्वार से किए जा रहे वापस

कुछ दिन पहले सड़क दुर्घटना में चोटिल होने के बाद पैर व कमर दर्द से पीडि़त कुशीनगर के 65 वर्षीय अखिलेश कई स्थानों से निराश होकर एम्स के दरवाजे पर आए थे। डाक्टर तक पहुंचने से पहले गार्डों ने मौखिक रूप से ही उन्हें मेडिकल कालेज के लिए रेफर कर दिया। कहा- यहां गंभीर रोगों का इलाज नहीं होता। ऐसे ही गोरखपुर के सैनिक विहार नंदानगर निवासी 29 वर्षीय बृजेंद्र सिंह कम दिखाई देने से परेशान होकर आए थे। उन्हें भी गार्डों ने बाहर से ही चलता कर दिया कि ओपीडी फुल हो चुका है। बकौल बृजेंद्र, गार्डों ने यह सलाह भी दी कि नेपाल चले जाइए। वहां कम पैसे में इलाज हो जाएगा। यहां 15 दिन तक ओपीडी फुल है।

मरीजों को गोद में लेकर अंदर जाते हैं स्वजन

एम्स के गेट पर एक भी व्हील चेयर या स्ट्रेचर नहीं है। तीमारदार मांगते हैैं तो भी नहीं मिलती है। कार या कोई अन्य वाहन गार्ड गेट पर ही रोक लेते हैैं। उन्हें अंदर नहीं जाने देते हैं। ऐसे में गुनीजोत के बृजेश की तरह कई तीमारदार अपने मरीजों को गोद में ले जाने के लिए मजबूर होते हैैं। दुश्वारी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ओपीडी मुख्य दरवाजे से करीब सौ मीटर दूर है।

एम्स में अभी आइसीयू की व्यवस्था नहीं हो पाई है। गंभीर मरीज इसलिए रेफर किए जाते हैैं ताकि उनका दूसरी जगह बेहतर इलाज हो सके। मरीजों के मांगने पर व्हील चेयर उपलब्ध कराई जाती है। अगर गार्ड डाक्टर को बिना सूचना दिए मरीजों को वापस कर रहे हैं तो सिक्योरिटी इंचार्ज से बात की जाएगी। 

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