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RGAन्यूज़
राज्य पुरातत्व विभाग के तत्कालीन निदेशकमें संतकबीर नगर के लहुरादेवा के टीले की खोदाई वर्ष 2001 से 2006 के बीच हुई थी तो वहां आठ हजार वर्ष पहले की धान की भूसी और चावल के दाने के साक्ष्य मिले थे
पाषाण कालीन स्थल लहुरादेवा और खोदाई में मिले साक्ष्य।
गोरखपुर, । दुनिया की प्राचीनतम बस्ती के साक्ष्य स्वरूप मौजूद संत कबीरनगर जिले का नव पाषाणकालीन स्थल लहुरादेवा बहुत जल्द पुरातत्व में रुचि रखने वालों पर्यटकों को भ्रमण के लिए आमंत्रित करेगा। पुरातत्व विभाग ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। विभाग उसे संजोने जा रहा है, दर्शनीय स्थल बनाने जा रहा है। इसके लिए संरक्षण की कार्यवाही पूरी कर ली गई है, अब सीमांकन की तैयारी है। सीमांकन के बाद विभाग उसे चहारदीवारी या तार से घेरवाकर पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करेगा। विभाग की वहां एक छोटा संग्रहालय बनाने की भी योजना है। उस संग्रहालय में प्रदर्श के तौर वह चीजें रखी जाएंगी, जो लहुरादेवा की खोदाई में मिली हैं।
पुरातत्वविदों ने 10 हजार वर्ष पहले बस्ती होने की पुष्टि की
राज्य पुरातत्व विभाग के तत्कालीन निदेशक डा. राकेश तिवारी के नेतृत्व में लहुरादेवा के टीले की खोदाई वर्ष 2001 से 2006 के बीच हुई थी तो वहां आठ हजार वर्ष पहले की धान की भूसी और चावल के दाने के साक्ष्य मिले थे। इस आधार पर विभाग के पुरातत्वविदों ने वहां 10 हजार वर्ष पहले बस्ती होने की पुष्टि की थी। इससे पहले कोलडिहवा में पांच हजार वर्ष पहले चावल पैदा होने के साक्ष्य मिले थे। लहुरादेवा में उससे भी 3000 वर्ष पुराना साक्ष्य मिलने से धान के फसल की प्राचीनता आठ हजार साल पहले तक चली गई है। लहुरादेवा से अनाज भंडारण के लिए डेहरी, चूल्हे, पक्के व कच्चे मकान के साक्ष्य, काले और लाल भृदुभांड भी प्राप्त हुए हैं, जिन्हें संग्रहालय में प्रदर्श के तौर में रखा जाएगा
साढ़े छह एकड़ में थी लहुरादेवा की बस्ती
पुरातत्व विभाग ने खोदाई के आधार पर माना है कि लहुरादेवा में बस्ती का दायरा करीब साढ़े छह एकड़ में फैला हुआ था। यही वजह है कि विभाग ने इतने ही क्षेत्र को संरक्षित और सीमांकित करने का निर्णय लिया। निर्धारित भू-भाग के सीमांकन के लिए ही पुरातत्व विभाग ने राजस्व विभाग को पत्र लिखा है। राजस्व विभाग ने सीमांकन के लिए हामी भी भर दी है।