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RGA न्यूज़
सिद्धार्थननगर के बांसी तहसील मुख्यालय से तीन किमी दूर स्थित तेजगढ़ रणबाकुरों का वह गांव है जिन्होंने अंग्रेजों के पिट्ठू रहे एक सामंत की बहुत यातनाएं झेली पर आजादी की लड़ाई में पीछे नहीं हटे। तेजगढ़ के रणबाकुरों का संघर्ष देखकर चद्रशेखर आजाद भी प्रभावित हुए थे
तेजगढ़ गांव में लगी पंडित चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा
गोरखपुर, सिद्धार्थननगर के बांसी तहसील मुख्यालय से तीन किमी दूर स्थित तेजगढ़ रणबाकुरों का वह गांव है, जिन्होंने अंग्रेजों के पिट्ठू रहे एक सामंत की बहुत यातनाएं झेली पर आजादी की लड़ाई में पीछे नहीं हटे। तीन- तीन बार इस गांव को उस सामंत ने फुंकवा दिया और गांव के 56 किसानों को पेड़ में बांध कर पिटवाया। रणबाकुरों के इस गांव में चन्द्रशेखर आजाद पार्क व उनकी प्रतिमा के साथ गांव के उन 56 क्रांतिकारी किसानों के नाम का लगा शिलापट्ट गौरवशाली इतिहास की गवाही करता है।
शभारत छोड़ो आंदोलन में जेल गए थे ढाई सौ सत्याग्रही
1942 के आंदोलन के दौरान जिले भर के लगभग ढाई सौ सत्याग्रही जेल गये। जिसमें इस गांव के किसान भी शामिल थे। नमक आंदोलन में इस गांव के किसानों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। इनका नेतृत्व करने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी द्वारिका प्रसाद यादव के साथ इन रणबाकुरों को 14 दिन तक जेल में बंद कर यातनाएं भी दी गईं। पर वह आजादी की लड़ाई में तनिक भी नहीं डिगे। सामंत के अत्याचार की कहानी चंद्रशेखर आजाद तक को पता चल गई थी। नतीजतन वह उसे मारने का मन बना लिए थे।
आंदोलन ने छात्रों को किया था प्रेरित
इन क्रांतिकारी किसानों के आंदोलन ने छात्रों को भी प्रेरित कर दिया। 13 अगस्त 1942 को रतन सेन इंटर कालेज के छात्रों ने हड़ताल की जो इस भू-भाग के किसी भी विद्यालय की पहली हड़ताल थी। भयानक लाठीचार्ज में दर्जनों छात्र घायल हुए संघर्ष चलता रहा। अंत में स्वाधीनता की घोषणा हुई।
अंग्रेज सामंत को मारने बांसी आए थे आजाद
वर्ष 1920 की बात है। अंग्रेज सामंत का तेजगढ़ गांव व उसके किसानों पर बढ़ रहे अत्याचार व आतंक की सूचना पंडित चंद्रशेखर आजाद को भी हो गई और वह अंग्रेज सामंत को मारने बांसी आ धमके। पखवारे भर तक वह बगल के गांव तिवारीपुर में ठहरे थे। पंडित चंद्रशेखर आजाद दिन भर बांसी में घूमते और रात में नगर निवासी मुंशी हर नारायण लाल या फिर तिवारीपुर ग्राम निवासी पं शेषदत्त त्रिपाठी के घर जाकर रुक जाते। पंडित शेषदत्त त्रिपाठी के नाती अतुल चंद्र त्रिपाठी कहते हैं कि उस समय तक उनके बाबा को यह नहीं पता था कि घर पर रुकने वाले व्यक्ति चंद्रशेखर आजाद हैं। चंद्रशेखर आजाद उनके घर पर चंदू के नाम से रुके थे। चंद्रशेखर आजाद के आने की खबर किसी तरह से अंग्रेज समर्थक सामंत को लग गई। औऱ वह लखनऊ भाग गया।
अचानक गायब हो गए थे आजाद
सामंत को एहसास हो गया था कि आजाद उसकी हत्या के लिए आएं हैं। ऐसे में वह लखनऊ भाग गया। करीब 15 दिन बाद आजाद भी यहां से अचानक गायब हो गए। अतुल चंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि फरवरी 1931 में उनके बाबा किसी काम से प्रयागराज गए थे। वहां आजाद के निधन की खबर फोटो के साथ छपी थी। फोटो देखने के बाद वह जान सके कि उनके घर में रुकने वाले पंडित चंद्रशेखर आजाद थे।
1948 को गांधी ग्राम का मिला दर्जा
गांव के किसानों का नेतृत्व करने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी द्वारिका प्रसाद यादव के अथक प्रयास से 30 जनवरी 1948 को तेजगढ को गांधी ग्राम का दर्जा मिला। 2 अक्टूबर 1995 को गांधी जी की 125वीं जयंती पर गांधी चबूतरा व चंद्रशेखर आजाद पार्क का द्वारिका प्रसाद यादव ने उद्घाटन कराया। पर आज शासन की उपेक्षा का दंश झेल रहे। गांव का मार्ग तक सुदृढ़ नहीं है।