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Rga news नई दिल्ली
उत्तर प्रदेश के एक मामले में जमीन की कीमत बढ़वाने के लिए पीआईएल दायर करवाने और अपने पक्ष में आदेश पास करवाने का खेल सुप्रीम कोर्ट खुल गया, जिसके बाद शीर्ष अदालत ने जमीन मालिक के पक्ष में दिया गया हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने यह फैसला देते हुए कहा कि हाई कोर्ट को सरकार को यह आदेश देने का अधिकार नहीं है कि अधिगृहित की गई भूमि पर तहसील की इमारत का ही निर्माण किया जाय।
पीठ के जज जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि वह इलाहाबाद हाईकोर्ट में रह चुके हैं और यह अच्छी तरह से जानते है कि वहां कैसे फ्रेंडली पीआईएल दायर करवाई जाती है। यह केस भी वैसा ही है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील अशोक श्रीवास्तव से पूछा कि अधिगृत भूमि के सामने उनकी भूमि है कि नहीं। उसने कहा बिल्कुल है। कोर्ट ने कहा हमें मालूम है, यह फ्रेंडली पीआईएल का ही मामला है। हम इस मामले में हाईकोर्ट का मूल आदेश रद्द कर रहे हैं और मामले का निपटारा कर रहे हैं। पीठ ने कहा आदेश देने से पहले हाईकोर्ट को मामले का यह पक्ष जांचना चाहिए था। अधिग्रित की गई भूमि पर सरकार कुछ भी बनवा सकती है, ये नहीं वहां सिर्फ तहसील की इमारत ही बने।
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मामले के अनुसार अमरोहा जिले में एक तहसील की इमारत को गिराकर नई इमारत बनवाने के लिए शासन ने भूमि अधग्रहण किया। लेकिन अधिग्रहण के कई बरस बाद भी इमारत नहीं बनवाई गई। इस पर अधिगृहित जमीन के सामने वाले व्यक्ति ने हाई कोर्ट में पीआईएल डलवाई और कहा कि अधिगृहीत भूमि का प्रयोग नहीं किया जा रहा है, वहीं तहसील न होने से लोगों को परेशानी हो रही है। हाईकोर्ट ने 13 अक्तूबर 2017 को राज्य सरकार को आदेश दिया कि अधिगृहित भूमि पर तहसील का निर्माण किया जाए।
इस फैसले का उस व्यक्ति को पता लगा जिसके क्षेत्र में पुरानी तहसील थी। उसने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की और कहा कि तहसील बननी है तो पुरानी जगह पर ही बने। क्योंकि नई जगह तहसील बनने से पूरा बिजनेस वहीं चला जाएगा। इस पर कोर्ट ने यूपी सरकार को नोटिस किया था लेकिन सरकार कुछ स्पष्ट करती कोर्ट की समझ में खेल आ गया।