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RGA News दिल्ली
एनडीए के सबसे पुराने साथियों में एक शिवसेना है। अन्य घटकों की तरह वह भी नाराज है। नाराज भी कम नहीं बल्कि बहुत ज्यादा है। इसलिए वह लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का फैसला कर चुकी है। भाजपा अभी भी शिवसेना को मनाने की कोशिश में जुटी है लेकिन सफल होती नहीं दिख रही है। राज्यसभा में शिवसेना के नेता संजय राउत से इन्हीं मुद्दों पर हिन्दुस्तान के ब्यूरो चीफ मदन जैड़ा ने बातचीत की-
आपकी भाजपा के साथ नाराजगी क्या है ?
हमने कभी नहीं कहा कि हमारी नाराजगी है। हमारा एनडीए से 25 साल से रिश्ता है। बीजेपी के साथ जब कोई नहीं था। हम और अकाली दल थे। हम उनके संकट के साथी हैं। हमने कभी बीजेपी के साथ ब्लैकमेलिंग नहीं की, ये चाहिए वह चाहिए। बाला साहेब ठाकरे के जमाने से हमारी कोशिश यह रही कि दिल्ली में बीजेपी की सरकार रहे। लेकिन राज्य में हम रहेंगे। दिल्ली में आप हमारे बड़े भाई हैं। महाराष्ट्र में हम बड़े भाई हैं। ये रिश्ता हमेशा रहा। हमने बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ने की कोशिश नहीं की। 2014 में बीजेपी ने हमसे एलायंस तोड़ा है। इसलिए यह सवाल बीजेपी से पूछना चाहिए।
अमित शाह ने कहा कि शिवसेना और भाजपा लोकसभा चुनाव साथ लडेंगे ?
शिवसेना क्या करेगी, क्या नहीं करेगी, यह कोई और पार्टी के अध्यक्ष और प्रवक्ता नहीं बोल सकते। हमारी पार्टी के प्रमुख बोलेंगे या हम बोलेंगे। हमारी पार्टी का निर्णय हो चुका है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी में बहुमत से पारित हो चुका है। आपकी मजबूरी है 2019 में इसलिए आप हमें साथ लाना चाहते हैं। तो बताइये 2014 में क्या हुआ था। पहले उसका कारण बताइए।
तब उनको लगता था कि वे अकेले चुनाव जीत जाएंगे ?
तो इस बार क्या हार रहे हैं क्या ? इसलिए शिवसेना की मदद चाहिए ?
एनडीए घटक छोड़कर जा रहे हैं, दो दल जा चुके हैं ?
अभी और भी जाएंगे। देखिए तेदेपा, रालोसपा और लोजपा ये एनडीए के परमानेंट मेंबर नहीं हैं बल्कि पेइंग गेस्ट थे। हम परमानेंट मेंबर हैं। हम एनडीए के संस्थापक हैं। एनडीए पर बीजेपी का मालिकाना हक नहीं। शिवसेना उस समय थी। तब समता पार्टी और जार्ज साहेब भी थे। कांग्रेस मुक्ता भारत का नारा कोई आज का नहीं है। तभी हमने यह नारा दिया था और इसमें सफल भी हो रहे थे।
आपने 25 सीट जीतने का लक्ष्य रखा है, हासिल कर पाएंगे ?
क्यों नहीं हासिल करेंगे। छत्तीसगढ़ में बीजेपी हार सकती है। राजस्थान, मप्र में हार सकती है। कांग्रेस को संजीवनी मिली है। महाराष्ट्र तो शिवसेना का गढ़ है। वैसे भी शिवसेना हार-जीत से नहीं बनी है। हम संघर्ष करने वाले लोग हैं। हम सत्ता के लिए नहीं हैं।
तो अगली सरकार में एनडीए का साथ देंगे ?
2019 में किसके साथ रहेंगे, यह समय बताएगा।
आपकी विचाराधारा उससे मिलती है ?
तो फिर बीजेपी ने क्यों गठबंधन तोड़ा ?
लेकिन यूपीए से आपकी विचाराधारा मैच नहीं करती ?
ये कौन कह रहा है कि यूपीए की सरकार बन रही है।
केंद्र सरकार के कामकाज को कैसे देखते हैं ?
बहुत से काम जिसका शुभारंभ हो रहा है, या हो गया है। उनमें से 95 फीसदी काम यूपीए के जमाने से हो रहे थे। जो उम्मीद आपसे की थी। जैसे जनता के खाते में 15 लाख रुपये देने का वादा किया था। भ्रष्टाचार और कालेधन को खत्म करने का वादा था। नौकरिया देने और महंगाई कम करने के वादे हुए। कश्मीर का वादा किया था। कितने पूरे हो गए, ये आप जनता को बताइये। बाकी तो सरकार चलती रहती है।
क्या आम चुनाव पर किसानों के मुद्दे हावी होंगे ?
कर्ज माफी का मुद्दा महत्वपूर्ण है। किसान देश की सबसे बड़ी कम्युनिटी है। महाराष्ट्र एक प्रोग्रेसिव स्टेट है। लेकिन सबसे ज्यादा किसान महाराष्ट्र में आत्महत्या करते हैं। किसानों को तकलीफ आसमान की भी है, सुल्तान की भी है। सरकार किसानों को मजबूती देने में नाकाम रही है। देश का तख्ता पलटने वाला किसान ही है। तीनों राज्यों में किसान बीजेपी के खिलाफ गया है। किसान को आर्थिक दृष्टि से मजबूत करना पड़ेगा।