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भारत ने इस दिशा में पहला लेकिन प्रभावी कदम बढ़ा दिया है और दुनिया में ऐसी उपलब्धि हासिल करने वाले चार देशों के क्लब में शामिल हो चुका है।...
नई दिल्ली:-दुनिया के सभी युद्ध विश्लेषक और रणनीतिकार इस मसले पर एक मत हैं कि भविष्य में वही विश्व पर हुकूमत करेगा जिसके जखीरे में स्पेस वार जीतने के ब्रह्मास्त्र होंगे। आने वाले दिनों के युद्ध तोप और बंदूकों के बल पर न तो लड़े जाएंगे और न ही जीते जा सकेंगे। इसमें विजयश्री हासिल करने के लिए अंतरिक्ष युद्ध की सामर्थ्य विकसित करनी होगी। भारत ने इस दिशा में पहला लेकिन प्रभावी कदम बढ़ा दिया है और दुनिया में ऐसी उपलब्धि हासिल करने वाले चार देशों के क्लब में शामिल हो चुका है।
एंटी सेटेलाइट वीपन
धरती की निचली कक्षा में गतिमान किसी सेटेलाइट को पृथ्वी से निशाना बनाना असाध्य काम है, लेकिन भारतीय रक्षा और अनुसंधान संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिकों ने दिन रात एक करके इसे कर दिखाया।
बड़ी उपलब्धि
अभी तक भारत ने चंद्रमा और मंगल मिशनों के अलावा लंबी दूरी की मिसाइलें विकसित कर परचम लहराया है। दुनिया इसके किफायती और सटीक अंतरिक्ष कार्यक्रमों से हतप्रभ है। मिशन शक्ति के तहत कक्षा में घूम रहे सेटेलाइट को धरती से निशाना बनाना इसलिए भी बड़ी उपलब्धि है क्योंकि दुनिया भर के देश अपनी समस्त गतिविधि सेटेलाइट केंद्रित कर चुके हैं।
संचार, जीपीएस, नेवीगेशन, सैन्य, मौसम, वित्त सहित आम जीवन से जुड़ी मनोरंजन के टेलीविजन चैनल्स, बिजली आदि तमाम चीजें कहीं न कहीं सेटेलाइट से नियंत्रित होने लगी हैं। ऐसे में अगर दुश्मन देश के सेटेलाइट को नेस्तनाबूद कर दिया जाए तो एक तरह से उस पर संपूर्ण काबू हो जाएगा। वह बेबस हो जाएगा। उसके सारे गुप्त कोड लॉक हो जाएंगे। आपातकाल में मिसाइल जैसी चीज का भी इस्तेमाल नहीं कर पाएगा। लड़ाकू विमान और युद्ध पोत जहां के तहां खड़े रह जाएंगे।
एक तीर से दो निशाने
भारत ने मिशन शक्ति से न केवल सेटेलाइट को मार गिराने की विधा विकसित की बल्कि बैलिस्टिक मिसाइलों को पकड़ने (इंटरसेप्ट) वाली तकनीक का इससे आधार भी तैयार किया है।
ऐसे भेदा लक्ष्य
- धरती की निचली कक्षा में मौजूद गतिमान सेटेलाइट बना लक्ष्य
- तीन स्टेज वाली बीएमडी इंटरसेप्टर मिसाइल हुई तैनात
- धरती पर मौजूद रडार ने सेटेलाइट की पहचान की
- सेटेलाइट के हर हरकत पर रडार की रहीं निगाहें
- लांचर से मिसाइल हुई लांच
- रास्ते में मिसाइल के विभिन्न स्टेज स्वत: चालू होते गए
- मिसाइल को रडार दिशा देता रहा
- और सेटेलाइट हुआ तबाह
कब-कहां-कैसे परीक्षण
-बुधवार सुबह 11 बजकर 16 मिनट पर ओडिशा के बालासोर से ए-सैट मिसाइल दागी गई।
-इसने 300 किलोमीटर ऊपर जाकर पृथ्वी की निचली कक्षा (लियो) में एक पुराने सैटेलाइट को मार गिराया।
-'मिशन शक्ति' नाम के इस अभियान मात्र तीन मिनट में पूरा कर लिया गया।
यह होगा असर
1. अंतरिक्ष से मिसाइल दागने (स्टार वॉर) की दिशा में बढ़ सकेगा भारत।
2. दुश्मन देश के किसी भी संचार व सैन्य उपग्रह को नष्ट किया जा सकेगा।
3. संचार व्यवस्था ठप होने से शत्रु राष्ट्र की समूची सैन्य संचार प्रणाली ठप हो जाएगी।
4. देश की सुरक्षा के लिए एयर डिफेंस नेटवर्क को मजबूत कर सकेगा।
चार का दम
भारत से पहले दुनिया के तीन देशों के पास कक्षा में चक्कर लगा रहे सेटेलाइट को मार गिराने की क्षमता थी। भारत इस क्लब का सबसे नया सदस्य बना।
अमेरिका: जब दुनिया में सेटेलाइट को अंतरिक्ष में स्थापित करना बहुत दुर्लभ और नयी बात मानी जाती थी, अमेरिका ने 1959 में तभी एंटी सेटेलाइट वीपन की तकनीक विकसित कर ली थी। परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम बोल्ड ओरियन नामक बैलिस्टिक मिसाइल को सेटेलाइट को भी तबाह करने के दोहरे मकसद के लिए तैयार किया गया। तब इस सेटेलाइट को बमबर्षक लड़ाकू विमान से दागा गया था। यह एक्सप्लोरर 6 सेटेलाइट के बेहद करीब से गुजरी। अगर मिसाइल में हथियार लगाए गए होते तो यह सेटेलाइट तबाह हो गया होता। 1985 में अमेरिका ने एजीएम-135 को एफ-15 लड़ाकू विमान से दागा। इस मिसाइल ने अंतरिक्ष में जाकर खुद के सोलविंड पी78-1 उपग्रह को सफलतापूर्वक तबाह किया। 2008 में इस देश ने ऑपरेशन ब्रंट फ्रोस्ट को अंजाम दिया। इसके तहत उसने एसएम-3 मिसाइल को शिप से लांच करके अपने खराब हुए जासूसी उपग्रह को नष्ट किया।
सोवियत संघ: अमेरिकी उपलब्धि हासिल करने के दौरान ही तत्कालीन सोवियत संघ ने भी इस तरह के परीक्षण किए। 1960 और 1970 के बीच इसने ऐसे हथियार का परीक्षण किया जिसे कक्षा में भेजा जा सकता था और वह वहां जाकर दुश्मन के सेटेलाइटों को विस्फोटकों से उड़ा सकता था।
चीन: 1985 के अगले बीस साल तक एंटी बैलिस्टिक मिसाइल का कोई परीक्षण नहीं हुआ। अब बारी चीन की थी। 2007 में चीन ने उच्च ध्रुवीय कक्षा में मौजूद अपने एक पुराने मौसम उपग्रह को मिसाइल से ध्वस्त किया। इस परीक्षण ने धरती की कक्षा में अब तक का सबसे बड़ा मलबा तैयार कर दिया। इस मलबे में सेटेलाइट के तीन हजार छोटे छोटे टुकड़े अंतरिक्ष में तैरने लगे।
मलबे का मलाल
धरती की कक्षा में मौजूद मलबा भविष्य में किसी भी अंतरिक्ष अनहोनी के लिहाज से बड़ी चिंता का विषय है। इस मलबे को साफ करने के लिए तमाम शोध कार्य चल रहे हैं। ऐसे में किसी भी सेटेलाइट को मार गिराने के साथ ही उसके मलबे को लेकर विश्व समुदाय चिंतित हो जाता है। एंटी सेटेलाइट परीक्षण से तैयार हुआ मलबा दूसरे सेटेलाइटों या यानों के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है। हालांकि ये आकार में बहुत छोटे होते हैं लेकिन राइफल से दागी गई गोली के मुकाबले कई गुना तेज रफ्तार से कक्षा में घूम रहे हैं। किसी भी सेटेलाइट से टक्कर होने पर उसे तबाह होने में देर नहीं लगेगी।
इसीलिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र नियमित रूप से तेजी के साथ अपनी कक्षा बदलता रहता है। 2007 में चीन के परीक्षण के बाद भारी मात्रा में मलबा पैदा हुआ। चूंकि ये मलबा 800 किमी ऊंची धरती की कक्षा में पैदा हुआ इसलिए उसके तमाम छोटे-छोटे हिस्से कक्षा में ही मौजूद रहे। धरती का गुरुत्वाकर्षण उन्हें अपनी ओर खींचने में विफल साबित हुआ। 2008 के अमेरिकी परीक्षण में भी बड़े पैमाने पर मलबा पैदा हुआ। चूंकि ये विस्फोट निचली कक्षा में हुआ इसलिए पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव से ज्यादातर टुकड़े उसकी तरह आकर रास्ते में ही नष्ट हो गए। इसीलिए भारत के इस परीक्षण को मलबा मुक्त होने की बात कही जा रही है।
सहमा पड़ोस
अहम खुफिया और संचार सुविधा देने वाले किसी दुश्मन के सेटेलाइट को तबाह करने की सामर्थ्य आधुनिक जंग की अद्यतन क्षमता मानी जाती है। मंगलवार के अपने इस सफल परीक्षण के साथ भारत ने सैद्धांतिक रूप से अपने पड़ोसी देशों के उपग्रहों को खतरे में डाल दिया है। हाल ही में भारत की कूटनीति में आई आक्रामकता के साथ इस उपलब्धि को लेकर वे चिंतित भी हो सकते हैं।
पड़ोसी पाकिस्तान के कुछ उपग्रह कक्षा में काम कर रहे हैं। चीनी और रूसी रॉकेटों से उसने उन्हें अंतरिक्ष में स्थापित कर रखा है। सर्वाधिक चिंतातुर तो चीन को होना चाहिए जिसने पिछले साल दर्जनों उपग्रहों को अंतरिक्ष पहुंचाया है। चीन की आधिकारिक मीडिया भी भारत की इस क्षमता को खतरे से ज्यादा देख रही है।