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लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजने के साथ कनॉट प्लेस का माहौल पप्पू की चाय की दुकान सरीखा हो गया है। 2-3 लोगों में शुरू हो रही चुनावी बहस 30-40 लोगों की भागीदारी में तब्दील हो जा रही है।...
नई दिल्ली:-बनारस के अस्सी घाट पर पप्पू की चाय की दुकान और दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस में क्या समानता हो सकती है? एक समानता है, दोनों जगह मोदी हैं। लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजने के साथ कनॉट प्लेस का माहौल पप्पू की चाय की दुकान सरीखा हो गया है। दो-तीन लोगों में शुरू हो रही चुनावी बहस 30-40 लोगों की भागीदारी में तब्दील हो जा रही है। जो नौकरी पर जा रहे या जो नौकरी की तलाश में निकले हैं, सबके कदम यह आम बहस ठहरा दे रही हैं। वह भी अपना योगदान दे आगे बढ़ जा रहे हैं।
मंच सजा है, बस लोग बदलते जा रहे हैं। जो आस-पास सुस्ताए से बैठे हैं। वह भी शब्दों से न सहीं, पर मन से शामिल हैं। कान लगाकर तन्मयता से सुन रहे हैं कि यह जंग किस ओर जा रही है। बहस में स्थानीय के साथ अंतरराष्ट्रीय मुद्दा भी शामिल है, जो इस चुनाव की दशा-दिशा तय करने वाला है।
अंग्रेजों की बसाई इस लकदक नगरी में पेड़ की छांव लिए आम लोगों की राजनीतिक बैठकी जमी है, जिसमें चुनाव की बहस कुछ इतनी तेज, की लगे जैसे बस अभी हाथापाई में तब्दील हो जाए। पर ऐसा नहीं, बीच-बीच में हंसी के ठहाके भी गूंज रहे हैं। इस स्वस्थ आम भागीदारी से लोकतंत्र मजबूत होता प्रतीत हो रहा है। पीछे पालिका बाजार का गेट नंबर-1 सामने सेंट्रल पार्क। सड़क के उस पार सेंट्रल पार्क में ऊंचा तिरंगा लहरा रहा है।
हवा में चुनावी महीना और गर्माहट ला रहा है। धूप भी पसीना ला देने वाला है। कनॉट प्लेस की यह जगह सुस्ताने के लिए अच्छी है। घेरे में कुर्सियां लगी है। पेड़ को घेर कर चबूतरा बना है। यह बहस-चर्चाओं के लिए ठीक भी है। सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी अवधेश कुमार मोदी सरकार के कामकाज से नाराज नजर आते हैं।
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में खामियों और बेरोजगारी में वृद्धि को सरकार की नाकामी के तौर पर गिनाते हैं। उनका साथ बगल में बैठे 45 पार के रमाकांत दे रहे हैं जो नोटबंदी के फैसले को बेतुका बताते हैं। मोदी की तरफ से मोर्चा थामे खुद का बिजनेस करने वाले बृजेंद्र जीएसटी को अच्छा कदम बताते हैं। सर्जिकल स्ट्राइक का मुद्दा भी उठाते हैं। पर उनकी नहीं चल रही, क्योंकि कांग्रेस समर्थकों का खेमा उनपर भारी पड़ रहा है। पेड़ की गोलाई में नजदीक ही बैठी युवती मुड़कर बार-बार इधर देख रही है। तभी बहस में युवाओं का एक दल हवा के झोंके की तरह उतर पड़ता है। इसमें मोबाइल डाटा क्रांति के साथ एयर स्ट्राइक अंतरिक्ष में बादशाहत जैसे फैसले भी जुड़कर तेज हो जाते हैं। बहस फिर कई गुटों में बंट जाता है। इसका आकार भी बड़ा हो जाता है। कई और लोग जुड़ते चले जाते हैं। मोदी-मोदी के नारे गूंजने लगते हैं।
एक युवाओं का दल स्मार्टफोन लेकर आता है। पूछने पर यूट्यूबर बताते हैं। उनके भी सवालों में मोदी और राहुल गांधी है। माइक के आगे इनमें से कुछ लोग भाजपा और कांग्रेस पार्टी का पक्ष रखते दिखते हैं। मुद्दा रोजगार पर आ टिकता है। राहुल गांधी के निश्चित आय की गारंटी के साथ रोजगार देने के सरकारी दावे की दोनों पक्ष धज्जियां उड़ाने लगता है।
सेंट्रल पार्क में तेज धूप से बचने के लिए पेड़ों की छांव में जोड़े बैठे हैं। अकेले टिफिन खोलकर खाना खाते रमेश कुमार कहते हैं मोदी का पलड़ा भारी है। जहां वह रहते हैं उस गाजियाबाद में जनरल वीके सिंह को भी टक्कर देने वाला कोई नहीं है। पेड़ की छांव में नजफगढ़ के भाई-बहन सन्नी और मनीषा ने टिफिन खोला ही था। वह यहीं कनॉट प्लेस में अलग-अलग आउटलेट्स में नौकरी करते हैं वे भी मोदी लहर में डूबे हैं।