आधार अध्यादेश को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती, 9 जुलाई को होगी अगली सुनवाई

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Rga news

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि अध्यादेश के जरिये सरकार ने निजी क्षेत्र की कंपनियों को परोक्ष रूप से आधार के इस्तेमाल की इजाजत दी है जबकि सुप्रीम कोर्ट इस पर रोक लगा चुका है।...

नई दिल्ली:-मोबाइल फोन सिम व बैंक खाते खुलवाने के लिए आधार की इजाजत देने वाले आधार अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने केंद्र सरकार (Union Government) से जवाब मांगा है। हाई कोर्ट की पीठ ने केंद्र सरकार से मामले पर अपना पक्ष स्पष्ट करने का आदेश दिया है। याचिका पर अगली सुनवाई 9 जुलाई को होगी।

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि अध्यादेश के जरिये सरकार ने निजी क्षेत्र की कंपनियों को परोक्ष रूप से आधार के इस्तेमाल की इजाजत दी है, जबकि सुप्रीम कोर्ट इस पर रोक लगा चुका है। याचिका के अनुसार, सरकार ने भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम में संशोधन कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया है।

याचिकाकर्ता ने अध्यादेश को असंवैधानिक बताते हुए इसे निरस्त करने की मांग की है। याचिकाकर्ता ने कहा कि अध्यादेश के जरिये टेलीकॉम कंपनियां किसी व्यक्ति की पहचान सत्यापन के लिए आधार का इस्तेमाल कर सकती हैं, जबकि इसकी जरूरत नहीं थी। 

यहां पर यह बताना जरूरी है कि देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पिछले महीने आधार अधिनियम’ को अपनी मंजूरी दी थी। इसके तहत मोबाइल सिम कार्ड हासिल करने और बैंक खाते खुलवाने के लिए आईडी प्रूफ के तौर पर आधार के स्वैच्छिक इस्तेमाल की इजाजत है। इस अध्यादेश की जरूरत इसलिए पड़ी थी क्योंकि इस सिलसिले में लोकसभा में पारित एक विधेयक को राज्य सभा की मंजूरी नहीं मिल सकी थी।

यहां पर बता दें कि अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने पिछले साल सितंबर में यह घोषणा की थी कि आधार योजना संवैधानिक रूप से वैध है, लेकिन इसे बैंक खातों, मोबाइल फोन और स्कूल में दाखिलों से जोड़े जाने सहित इसके कुछ प्रावधानों को उसने रद कर दिया था। 

याचिकाकर्ता का कोर्ट में तर्क

  • याचिकाकर्ता रीपक कंसल और यदुनंदन बंसल के मुताबिक अध्यादेश निजी क्षेत्र को भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम में संशोधन कर पिछले दरवाजे से आधार ढांचे के इस्तेमाल की इजाजत देता है।
  • यह टेलीकॉम कंपनियों को पहचान सत्यापन के लिए आधार आईडी का इस्तेमाल करने की इजाजत देता है।
  • ऐसी कोई असाधारण स्थिति नहीं है, जिसके लिए ऐसे किसी अध्यादेश को जारी करने की जरूरत थी।
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