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RGA न्यूज़ दिल्ली
नई दिल्ली:- महाराजा हरि सिंह की ओर से जम्मू-कश्मीर के देश में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर करने के लगभग 72 साल बाद अब राज्य का देश के साथ पूरा मिलन हो गया है। दावा किया जाता रहा कि अनुच्छेद 370 के आधार पर जम्मू-कश्मीर भारत से जुड़ पाया, जबकि हकीकत यह है कि बाद में जोड़े गए प्रावधान ही राज्य को पूरे देश से मिलने से रोक रहे थे। अनुच्छेद 370 के पक्षकार यह भी कहते रहे कि राजा विशेष दर्जे के पक्ष में थे, लेकिन वह इस तथ्य को नकार नहीं सकते कि 1930 के दशक में गोलमेज सम्मेलन में राजा ने साफ शब्दों में कहा था कि भारत जब एक स्वतंत्र राष्ट्र बनेगा तो वह उसका हिस्सा बनेंगे।
यह है अधूरा सच
केंद्र सरकार के विधेयक से अब 72 सालों के अधिमिलन के बाद सोमवार को जम्मू-कश्मीर का भारत से पूरा मिलन हो गया। इससे पूर्व जब इन प्रावधानों को हटाने की बात की जाती तो कहा जाता कि तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने विशेष परिस्थितियों में राज्य की विशेष पहचान के संरक्षण का यकीन दिलाए जाने पर ही विलय समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसलिए यह अनुच्छेद जरूरी है, लेकिन यह पूरा सच नहीं है।
दंगों की जमीन हुई तैयार
इतिहास के जानकार मानते हैं कि अनुच्छेद 370 के पक्षकार इस तथ्य को नहीं नकार सकते कि राजा ने गोलमेज सम्मेलन में ब्रिटिश राज को चुनौती देते हुए कहा था कि भारत और इसके लोगों के साथ-साथ और ब्रिटिश इंडिया से बाहर की सभी भारतीय रियासतों से बराबरी का व्यवहार होना चाहिए। हालांकि, इस सम्मेलन के बाद जम्मू- कश्मीर का सियासी घटनाक्रम तेजी से बदला और महाराजा के खिलाफ अचानक विरोध की आवाज तेज हो गई। लाहौर और पश्चिमी पंजाब (फिलहाल पाकिस्तान में) से कई मुस्लिम लोगों का कश्मीर में आगमन हुआ और 1931 के दंगों की जमीन तैयार हुई।
मुस्लिम कॉन्फ्रेंस का उभार
उसके बाद मुस्लिम कॉन्फ्रेंस रियासत में विशेषकर कश्मीर घाटी में तेजी से उभरी। इसके प्रमुख नेता शेख अब्दुल्ला ने लाहौर, अलीगढ़ समेत अन्य राज्यों में अपने संपर्कों और कांग्रेस के तत्कालीन नेता जवाहर लाल नेहरू से अपने रिश्तों का पूरा इस्तेमाल किया। भारतीय उपमहाद्वीप में बदलते घटनाक्रम को देखते हुए शेख अब्दुल्ला ने गैर मुस्लिमों को जोड़ने के लिए अपने संगठन का नाम बदलकर नेशनल कॉन्फ्रेंस कर दिया। इस दौरान आजादी तो मिली, लेकिन बंटवारे का दर्द भी दे गई। शायद राजा ने इसकी कल्पना नहीं की थी।