जीडीए घूसकांड : नक्‍शा कहीं का भी हो, फाइल दीपा के पास से होकर ही जाती थी

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RGA न्यूज़ गोरखपुर

जीडीए में 20 हजार रुपये घूस लेते रंगे हाथ पकड़ी गई दीपा प्रियदर्शिनी तिवारी अपने सेक्टर के साथ ही दूसरे सेक्टर के कामों की जिम्मेदारी भी लेती थी।...

गोरखपुर:- गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) में 20 हजार रुपये घूस लेते रंगे हाथ पकड़ी गई दीपा प्रियदर्शिनी तिवारी अपने सेक्टर के साथ ही दूसरे सेक्टर के कामों की जिम्मेदारी भी लेती थी। काम कराना है तो दीपा के पास जाकर ही 'बात' बनती थी। एंटी करप्शन टीम को तलाशी में अलमारी की जांच में दूसरे सेक्टर की भी फाइलें मिलीं थीं।

कई अभियंताओं के 'कलेक्‍शन' की जिम्‍मेदारी थी दीपा पर

एंटी करप्शन की पूछताछ में दीपा ने भी इस बात को स्वीकार किया कि जीडीए में कई अभियंता एवं बाबू अपने हिस्से की ऊपरी कमाई के कलेक्शन के लिए दीपा पर ही भरोसा करते थे। काम कराने के लिए संबंधित व्यक्ति को उसके पास भेजा जाता था।

लिफाफों पर लिखे होते थे अलग-अलग कोड

एंटी करप्शन टीम को मिले सात लिफाफों को लेकर चर्चा खूब है, हालांकि अभी नाम सार्वजनिक नहीं हो सके हैं। सभी लिफाफों पर अलग-अलग कोड हैं। दीपा मानचित्र अनुभाग में सेक्टर तीन की जिम्मेदारी संभालती थी, लेकिन उसकी अलमारी से सेक्टर दो की कुछ फाइलें भी मिली थीं। शिकायतकर्ता शैलेश का मानचित्र सहायक अभियंता की आपत्ति पर जनवरी में स्वत: निरस्त हुआ था। इसके बाद दोबारा प्रक्रिया शुरू करनी होती है। एक आवेदन देकर सचिव स्तर से अनुमति लेनी होती है।

मानचित्र निरस्त होने से जीडीए को होता है नुकसान

मानचित्र स्वीकृत होना जीडीए के लिए भी फायदेमंद होता है। यदि किसी कारण से मानचित्र निरस्त किया जाता है तो सीधा नुकसान प्राधिकरण को उठाना पड़ता है। मानचित्र से होने वाली आय का 90 फीसद हिस्सा निर्माण कार्यों में खर्च किया जाता है। जीडीए सचिव राम सिंह गौतम का कहना है कि जीडीए की कोशिश होती है कि सारे मानक पूरे हों तो जल्द मानचित्र स्वीकृत कर दिया जाए।

दीपा के खिलाफ पहले भी हुई थी शिकायत

लोगों ने पहले भी दीपा की शिकायत की थी, लेकिन जीडीए में ही प्रभावशाली भूमिका रखने वाले एक कर्मचारी की मदद से कोई शिकायत ऊपर तक नहीं पहुंच पाती थी। चर्चा यह भी है कि दीपा कर्मचारियों का पटल परिवर्तन कराने तक की क्षमता भी रखती थी।

जीडीए की चुप्पी भी चर्चा में

दीपा के पास से बरामद लिफाफों पर दर्ज कोड व शिकायतकर्ता की वायस रिकार्डिंग में लिए गए नामों को लेकर जीडीए की ओर से जांच न करने की बात भी चर्चा में है। लिफाफा सचिव के पास खोला जरूर गया था, लेकिन उसे एंटी करप्शन टीम अपने साथ ले गई है। जीडीए अधिकारियों का कहना है कि लिफाफे एंटी करप्शन के पास हैं, इसलिए जांच शुरू नहीं हो सकी है।

क्या है वॉयस रिकार्डिंग में

शिकायतकर्ता के पास मौजूद वायस रिकार्डिंग में एक अवर अभियंता, एक प्राइवेट कर्मचारी और एक बाबू का नाम लिया जा रहा है। रिकार्डिंग के तथ्यों के अनुसार अवर अभियंता कार्यालय में नहीं रहते हैं। उनकी जगह प्राइवेट कर्मचारी काम देखता है। एक दूसरे जेई का जिक्र भी है, जो 20 हजार रुपये में मानचित्र स्वीकृत कराने का दावा करता है। एक अन्य जेई मानचित्र स्वीकृति के लिए 75 हजार रुपये की मांग कर रहा था।

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