जामिया से पहले भी देशभर में कई बार छात्रों ने किया है विभिन्‍न मुद्दों पर धरना प्रदर्शन

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RGA न्यूज़ दिल्ली

नई दिल्‍ली:- नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जामिया मिलिया इस्‍लामिया यूनिवर्सिटी में हुआ हिंसक विरोध प्रदर्शन को लेकर छात्र, जामिया यूनिवर्सिटी की कुलपति, पुलिस और राजनीतिक पार्टियों के अपने-अपने तर्क हैं। इन सभी को लेकर जांच भी चल रही है। लेकिन जहां तक छात्रों के विरोध प्रदर्शनों की बात की जाए तो यह न तो पहली बार देखने को मिला है और न ही इस तरह के विरोध प्रदर्शनों में पहली बार हिंसा हुई है। आइए जानते हैं कब-कब और किन-किन मुद्दों पर छात्रों ने सड़कों पर उतर इस तरह का प्रदर्शन किया है। 

हिंदी के खिलाफ प्रदर्शन 

1965 में तमिलनाडु में हिंदी भाषा के खिलाफ जबरदस्‍त प्रदर्शन हुआ था। यह प्रदर्शन 1963 के आधिकारिक भाषा अधिनियम के चलते हुआ था, जिसमें बड़ी संख्‍या में छात्र सड़कों पर उतर आए थे। इस अधिनियम के तहत अंग्रेजी के साथ हिंदी को भी आधिकारिक भाषा बनाया गया था। 1964 में जब कांग्रेस सरकार ने तीन भाषा फार्मूला पेश किया तो इसके खिलाफ छात्र भड़क गए और सड़कों पर उतर आए थे। 

जेपी आंदोलन

जय प्रकाश का आंदोलन देश के सबसे चर्चित आंदोलनों में से एक रहा है। 1974 में इस आंदोलन की शुरुआत उनके नेतृत्‍व में पटना विश्‍वविद्यालय से हुई थी। यह आंदोलन उन्‍होंने चतरा संघर्ष समिति के तहत हुआ था। पटना से शुरू हुआ ये आंदोलन जल्‍द ही देश के दूसरे हिंदी भाषी राज्यों में फैल गया था। छात्रों ने इसमें बढ़चढ़कर हिस्‍सा लिया था। देश और राज्‍यों के कई बड़े नेताओं की राजनीति की शुरुआत भी इसी आंदोलन से हुई थी। 

भोजन शुल्‍क वृद्धि के खिलाफ 

यह आंदोलन 1973 में अहमदाबाद कॉलेज हॉस्‍टल की मैस में मिलने वाले भोजन में हुई शुल्‍क वृद्धि के खिलाफ किया गया था। इसकी शुरुआत यहां के एक इंजीनियरिंग कॉलेज से हुई थी। इसको लेकर काफी संख्‍या में छात्र सड़कों पर उतरे थे। 1974 में भी जब इसी मुद्दे पर गुजरात यूनिवर्सिटी के छात्रों ने हड़ताल और विरोध प्रदर्शन किया तो इस दौरान उनकी पुलिस से तीखी झड़प भी हुई थी। 

इमरजेंसी के खिलाफ 

इंदिरा गांधी के तानाशाही रवैये के खिलाफ 1975 में जो देशव्‍यापी विरोध प्रदर्शन हुआ उसको सफल बनाने में छात्रों की भूमिका काफी अहम थी। इसमें कई राज्‍यों की यूनिवर्सिटी के लाखों स्‍टूडेंट्स ने हिस्‍सा लिया था। कई छात्रों ने अंडरग्राउंड रहते हुए भी इस आंदोलन को जारी रखा था।

असम आंदोलन 

असम में अवैध प्रवासियों के खिलाफ असम में करीब पांच वर्षों तक जबरदस्‍त विरोध प्रदर्शन हुए थे। इन प्रदर्शनों में सबसे बड़ी भूमिका छात्रों ने ही निभाई थी। प्रफुल कुमार महंत जो असम के मुख्‍यमंत्री भी रह चुके हैं, इसी छात्र आंदोलन के दौरान राजनीति का बड़ा चेहरा बनकर उभरे थे। उन्‍होंने असम आंदोलन का नेतृत्‍व भी किया था। इसके बाद 1985 में जब राज्‍य में विधानसभा चुनाव हुए तो उनकी असम गण परिषद को सबसे अधिक सीटें मिली थीं और वो मुख्‍यमंत्री बने थे। असम में अब भी नागरिकता संशोधन कानून का विरोध हो रहा है। 

मंडल आयोग के खिलाफ 

1990 में मंडल आयोग के खिलाफ देश के कई राज्‍यों में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुआ था। यह आंदोलन सरकारी नौकरियों में ओबीसी को 27 फीसद आरक्षण देने के खिलाफ हुआ था। इसके खिलाफ दिल्‍ली यूनिवर्सिटी में जो विरोध प्रदर्शन हुआ उसमें राजीव गोस्‍वामी बड़ा चेहरा बन गए थे। उन्‍होंने प्रदर्शन के दौरान खुद को आग तक लगा ली थी। यह घटना कुछ ही समय में पूरे देश में फैल गई थी। राजीव उस वक्‍त देशबंधु कॉलेज के छात्र थे। इसके बाद वो यूनिवर्सिटी के चुनाव में बतौर अध्‍यक्ष चुने गए थे। फरवरी 2004 में उनका निधन हो गया था। 

आरक्षण के खिलाफ आंदोलन 

आरक्षण के खिलाफ 2006 में एक बार फिर से आंदोलन हुआ था। यह आंदोलन सरकारी व निजी शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी के लिए आरक्षण व्यवस्था लागू करने के खिलाफ था। इस को यूपीए सरकार ने लागू किया था  

छात्र की पिटाई के खिलाफ 

जादवपुर विश्वविद्यालय पुलिस की बर्बरता के खिलाफ सैकड़ों की संख्‍या में छात्रों ने सड़कों पर उतरकर धरना प्रदर्शन किया था। इसकी वजह पुलिस द्वारा एक छात्र की जबरदस्‍त पिटाई थी। इसके खिलाफ छात्र सड़क पर उतर गए।

दलित छात्रों का प्रदर्शन 

हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित छात्र रोहित वेमुला के फांसी लगाकर जान देने की घटना के बाद 2016 में सैकड़ों की संख्‍या में छात्र सड़कों पर उतर आए थे। यह विरोध प्रदर्शन कई दिनों तक चला था। रोहित पीएचडी का छात्र था। 

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